- – यह कविता राधा और कृष्ण (बांके बिहारी) के प्रेम और झूले पर झूलने के दृश्य का सुंदर वर्णन करती है।
- – राधा की सुंदरता और श्रृंगार का चित्रण रेशम की डोर, कंचन पाती और रत्नों से किया गया है।
- – सावन के मौसम में ब्रज की महिलाएं सज-धज कर कृष्ण और राधा को झूला झुलाते हुए देखती हैं।
- – मुरली की मधुर धुन और सखियों द्वारा मल्हार राग की प्रस्तुति का उल्लेख है, जो माहौल को और भी मनमोहक बनाती है।
- – पक्षियों जैसे तोता, मैना, कोयल और मोर की चहचहाहट और नृत्य से वातावरण खुशहाल और जीवंत हो उठता है।
- – अंत में, राधा और कृष्ण के झूले का आनंद और प्रेम का संदेश बार-बार दोहराया गया है, जो भक्ति और सौंदर्य का प्रतीक है।

झूले राधा प्यारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी।।
रेशम डोर कदम्ब बंधवाई,
कंचन पाती रतन जड़ाई,
वा पर भानु दुलारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी,
झुले राधा प्यारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी।।
रिमझिम रिमझिम सावन बरसे,
सज श्रंगार चली घर से,
देखन सब ब्रज नारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी,
झुले राधा प्यारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी।।
झूले श्यामा श्याम झुलावे,
सखियाँ राग मल्हार सुनावे,
मुरली बजे मतवाली,
झुलाए रहे बांके बिहारी,
झुले राधा प्यारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी।।
तोता मैना कोयल बोले,
नाचे मोर मगन मन डोले,
महक रही फुलवारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी,
झुले राधा प्यारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी।।
झोंटा देत करे झकजोरी,
झूले जब श्री राधे गौरी,
‘लख्खा’ बिहारी जाए बलहारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी,
झुले राधा प्यारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी।।
झूले राधा प्यारी,
झुलाए रहे बांके बिहारी।।
