- – यह भजन भक्ति और आध्यात्मिक अनुभव की गहराई को व्यक्त करता है, जिसमें गुरु और प्रभु के नाम का महत्व बताया गया है।
- – भजन में मीरा और कबीर जैसे संतों का उल्लेख है, जो भक्ति के नशे में नाचे थे, और वही नशा पाने की कामना की गई है।
- – गुरु के नाम और उनकी दृष्टि पाने की प्रार्थना की गई है, जिससे मन और आत्मा में प्रकाश और शांति आए।
- – भजन में हनुमान जी की शक्ति और लंका दहन की कथा का संदर्भ देकर आध्यात्मिक ऊर्जा का आह्वान किया गया है।
- – यह रचना प्रेम, भक्ति और योग की अनुभूति को गहराई से व्यक्त करती है, जिसमें आत्मा की खोज और सतगुरु की महिमा का वर्णन है।
जिसको पीकर नाची मीरा,
नाचा दास कबीरा,
वही तुम हमे पिलादो।।
तर्ज – मिलो न तुम तो हम घबराए।
ओ नँगली वालिये,
दे दो हमे भी गुरु नाम रे,
नज़रो हमको अपनी,
कोई पिलादो ऐसा जाम रे,
पीकर जिसको हनुमत नाचा,
लँका सारी जला दी,
वही तुम हमे पिलादो।।
ओ हाराँ वालिये,
रँगलो प्रभू जी अपने रँग मे,
भर दो नशा तुम ऐसा,
आज मेरे अँग अँग मे,
जैसे दीप मे जले पतँगा,
प्रीत मे प्राण गँवाए,
वही तुम हमे पिलादो।।
आँखो मे तेरी सूरत,
मूरत बसादो तन मन मे,
दीप जलाके सतगुरू,
कर दो उजाला मेरे मन में,
जिसको पाने की खातिर,
में योगी भटके वन मे,
वही तुम हमे पिलादो।।
जिसको पीकर नाची मीरा,
नाचा दास कबीरा,
वही तुम हमे पिलादो।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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