- – यह कविता कृष्ण और सुदामा की गहरी मित्रता और भावनात्मक संबंध को दर्शाती है।
- – राधा की तरह कान्हा (कृष्ण) भी सुदामा के लिए अत्यंत भावुक होकर रोता है।
- – कृष्ण सुदामा की कठिनाइयों और दुखों को देखकर अपनी शानो-शौकत को भी भूलकर उसकी पीड़ा में शामिल होता है।
- – सुदामा के पैरों के छाले देखकर और उसकी सेवा करने की खुशी में कृष्ण के आंसू बहते हैं।
- – कृष्ण सुदामा के आने-जाने पर भी भावुक होकर रोता है, जो उनकी सच्ची दोस्ती का प्रतीक है।
- – कविता में मित्रता, प्रेम और समर्पण की भावना को सुंदरता से व्यक्त किया गया है।

जितना राधा रोई,
रोई कान्हा के लिए,
कन्हैया उतना रोया,
रोया है सुदामा के लिए।।
बोला वो हो मतवाला,
यार मेरा मुरली वाला।
यार की हालत देखि,
उसकी हालत पे रोया,
यार के आगे अपनी,
शानो-शौकत पे रोया,
ऐसे तड़पा तड़पे शमा,
परवाने के लिए,
कन्हैया उतना रोया,
रोया है सुदामा के लिए।।
बोला वो हो मतवाला,
यार मेरा मुरली वाला।
पाँव के छाले देखे,
तो दुःख के मारे रोया,
पाँव धोने के खातिर,
ख़ुशी के मारे रोया,
आंसू थे भरपाई,
अब तो जीने के लिए,
कन्हैया उतना रोया,
रोया है सुदामा के लिए।।
बोला वो हो मतवाला,
यार मेरा मुरली वाला।
उसके आने से रोया,
उसके जाने से रोया,
होक गदगद चावल के,
दाने दाने पे रोया,
बनवारी वो रोया,
बस याराना के लिए,
कन्हैया उतना रोया,
रोया है सुदामा के लिए।।
बोला वो हो मतवाला,
यार मेरा मुरली वाला।
जितना राधा रोई,
रोई कान्हा के लिए,
कन्हैया उतना रोया,
रोया है सुदामा के लिए।।
