- – यह कविता एक भक्त की भावनाओं को दर्शाती है, जो अपने बाबा और मालिक के प्रति समर्पित है।
- – कवि अपने जीवन में दिशा और सहारा पाने के लिए दरबार में आया है और अब वह पूरी तरह से उस दरबार का है।
- – कविता में बाबा की मौजूदगी और उनकी सहायता की आवश्यकता को बार-बार दोहराया गया है।
- – कवि अपने दुख और असमंजस को बाबा के सामने रखता है, और उनके प्यार और कृपा की उम्मीद करता है।
- – यह कविता भक्ति, समर्पण और विश्वास की भावना को उजागर करती है, जहाँ दरबार में आने वाला पूरी तरह से उस ईश्वरीय शक्ति का हो जाता है।

जो भी दरबार में आया,
वो अब तुम्हारा है,
तू ही माझी तू ही साथी,
तू सहारा है,
जो भी दरबार मे आया,
वो अब तुम्हारा है।।
तर्ज – तेरी गलियों का हूँ आशिक।
मेरे बाबा मेरे मालिक,
भटक रहा हूँ मैं,
मुझको मालूम नहीं कैसे,
और कहाँ हूँ मैं,
तेरे बिन और ना दूजा,
अब हमारा है,
जो भी दरबार में आया,
वो अब तुम्हारा है।।
तुझको आवाज लगाता हूँ,
तेरी जरुरत है,
तेरे बिन पार ना पाउँगा,
ये हकीकत है,
हमने भी सोच समझकर,
तुम्हे पुकारा है,
जो भी दरबार मे आया,
वो अब तुम्हारा है।।
तेरी खामोशियों से मेरा,
दम निकलता है,
मेरे इस हाल पे तू चुप है,
दिल ये जलता है,
तू अगर खुश है इसी में,
तो ये गवारा है,
जो भी दरबार मे आया,
वो अब तुम्हारा है।।
तेरी चोखट पे मै आया हूँ,
कुछ उम्मीदों से,
तेरे दरबार में थोड़ी सी,
जगह दे दो मुझे,
सारी दुनियां में कहीं भी,
ना गुजारा है,
जो भी दरबार मे आया,
वो अब तुम्हारा है।।
जो भी दरबार में आया,
वो अब तुम्हारा है,
तू ही माझी तू ही साथी,
तू सहारा है,
जो भी दरबार मे आया,
वो अब तुम्हारा है।।
