- – कविता में कवि अपनी निर्धनता और साधारण जीवन का वर्णन करता है, फिर भी प्रभु श्याम से स्नेह और मित्रता की अपेक्षा करता है।
- – कवि श्याम को सुदामा की तरह अपना सच्चा मित्र मानते हुए उनके आगमन की कामना करता है।
- – दुखों और कठिनाइयों के बीच भी कवि श्याम से सांत्वना और धीरज पाने की इच्छा प्रकट करता है।
- – कविता में धनवानों से आग्रह है कि वे जब फुर्सत पाएं तो श्याम को कवि के निर्धन घर आने का निमंत्रण दें।
- – यह रचना भक्ति और मित्रता की भावना से ओतप्रोत है, जिसमें साधारण जीवन में ईश्वर के साथ आत्मीय संबंध की बात कही गई है।

कभी फुर्सत हो धनवानो से,
तो श्याम मेरे घर आ जाना,
इस निर्धन की कुटिया में,
एक शाम ओ श्याम बिता जाना,
कभी फुरसत हो धनवानो से,
तो श्याम मेरे घर आ जाना।।
तर्ज – बाबुल की दुआएं लेती जा।
मैं निर्धन हूँ मेरे पास प्रभु,
चूरमा मेवा ना मिठाई है,
सोने के सिंहासन है तेरे,
मेरे घर धरती की चटाई है,
यहीं बैठके लखदातार मुझे,
तुम अपनी कथा सूना जाना,
कभी फुरसत हो धनवानो से,
तो श्याम मेरे घर आ जाना।।
मुझको भी सुदामा के जैसा,
तुम मित्र समझकर श्याम मेरे,
मेरी आँख से बहते अश्को को,
तुम इत्र समझकर श्याम मेरे,
मेरी कुटिया में आकर मुझसे,
तुम अपने चरण धुलवा जाना,
कभी फुरसत हो धनवानो से,
तो श्याम मेरे घर आ जाना।।
बड़ी तेज दुखो की आंधी है,
मन घबराए ओ सांवरिया,
‘संदीप’ की आस के दिप कहीं,
बुझ ना जाए ओ सांवरिया,
हारे के सहारे हो तुम तो,
मुझ को भी धीर बंधा जाना,
कभी फुरसत हो धनवानो से,
तो श्याम मेरे घर आ जाना।।
कभी फुर्सत हो धनवानो से,
तो श्याम मेरे घर आ जाना,
इस निर्धन की कुटिया में,
एक शाम ओ श्याम बिता जाना,
कभी फुरसत हो धनवानो से,
तो श्याम मेरे घर आ जाना।।
स्वर – संदीप बंसल जी।
