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- – यह कविता कन्हैया (भगवान कृष्ण) के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को दर्शाती है, जिसमें आंसुओं का प्रतीकात्मक महत्व है।
- – कवि ने अपने दुख और खुशी दोनों में चार आंसू निकलने का उल्लेख किया है, लेकिन कन्हैया के प्यार में आंसू बेशुमार हैं।
- – कन्हैया को अपने जीवन का सच्चा सहारा और मित्र मानते हुए, कवि ने उनके चरणों को अपना दास बताया है।
- – श्रद्धा और प्रेम से भरे मोतियों को कन्हैया को अर्पित करते हुए, कवि ने अपनी भक्ति को अपनी सबसे बड़ी पूंजी बताया है।
- – यह कविता भावनाओं की गहराई और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को सुंदरता से प्रस्तुत करती है।

कभी ये गम में कभी ख़ुशी में,
निकल ही जाते है चार आंसू,
मगर कन्हैया तेरे प्यार में,
निकले है बेशुमार आंसू।।
तर्ज – जिलाह – ए – मस्कीन
(सुनाई देती है जिसकी धड़कन।)
है श्याम तेरे सिवा जहाँ में,
मिलाना कोई भी यार ऐसा,
जो आके मुझसे ये पूछ लेता,
क्यों आये आँखों में यार आंसू।।
समझ के चरणों का दास तुमने,
सदा ही मुझको दिया सहारा,
कभी जो दुःख ने भिगोई आँखे,
तुम ही ने पोछे दातार आंसू।।
मै श्रद्धा से प्यार में भिगोकर,
चढ़ा रहा हूँ तुम्हे जो मोती,
ये है गजेसिंग की श्रुद्ध पूंजी,
ना लाया कोई उदार आंसू,
कभी ये गम में कभी ख़ुशी में,
निकल ही जाते है चार आंसू,
मगर कन्हैया तेरे प्यार में,
निकले है बेशुमार आंसू।।
कभी ये गम में कभी ख़ुशी में,
निकल ही जाते है चार आंसू,
मगर कन्हैया तेरे प्यार में,
निकले है बेशुमार आंसू।।
Singer : Mukesh Bagda
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।
