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- – यह गीत कैलाश के भोले लहरी (भगवान शिव) की महिमा और उनके काल (समय/मृत्यु) के अनिवार्य आगमन को दर्शाता है।
- – गीत में बताया गया है कि भोला (शिव) काल परण (मृत्यु) के लिए निश्चित रूप से आएंगे, चाहे साधन कुछ भी हो।
- – भोलेनाथ के आगमन के लिए हाथी, घोड़ा, हल्दी, चंदन जैसे पारंपरिक प्रतीकों की आवश्यकता नहीं होती, वे भस्मी (राख) से सुसज्जित होकर आते हैं।
- – डमरू बजाते हुए भोले कैलाश से आते हैं, जो उनके विशेष चिन्ह हैं।
- – गीत में जीवन के अनिश्चित और अस्थिर होने का भाव भी व्यक्त किया गया है, जैसे “डग मग डग मग” और “नाड हाले छे”।
- – अंत में, गीत के लेखक अविनाश योगी और गायक हर्षित पारीक का उल्लेख है, जो इस भक्ति गीत को प्रस्तुत कर रहे हैं।

कैलाश का भोला लहरी,
काल परण बा जावेगा,
काल परनबा जावैगा,
भोला काल परण बा जावेगा।।
हाथी पे ना जावे व तो,
घोड़ा प न जावे,
नाड्या पे बैठ कर जावेगा,
कैलाशा का भोला लहरी,
काल परण बा जावेगा।।
हल्दी न ल गावे व तो,
चंदन न लगावे,
भस्मी रमा कर जावे गा,
कैलाशा का भोला लहरी,
काल परण बा जावेगा।।
बेंड न ले जावे व तो,
डोल न ले जावे,
डमरू बजा कर जावे गा,
कैलाशा का भोला लहरी,
काल परण बा जावेगा।।
डग मग डग मग,
नाड हाले छे,
कया परण कर लावेगा,
कैलाशा का भोला लहरी,
काल परण बा जावेगा।।
‘अविनाश योगी’ लिक दिया,
‘हर्षित पारीक’ गावेगा,
कैलाशा का भोला लहरी,
काल परण बा जावेगा।।
कैलाश का भोला लहरी,
काल परण बा जावेगा,
काल परनबा जावैगा,
भोला काल परण बा जावेगा।।
सिंगर – हर्षित पारीक।
9829995387 खानपुर
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