कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ,
आये शरण तिहारी प्रभु तार तार तू,
भगतो को कभी शिव ने निराश न किया,
माँगा जिसे चाहा वही वरदान दे दियां,
बड़ा है तेरा दायरा बड़ा दातार तू,
आये शरण तिहारी प्रभु तार तार तू,
बखान क्या करू मैं रखो की ढेर का,
चुटकी कबूत में है खजाना कुबेर का,
हे गंगा धार मुक्ति धार ओम कार तू,
आये शरण तिहारी प्रभु तार तार तू,
क्या क्या नहीं दिया है ये हम प्रमाण है,
तेरी किरपा के आसरे सारा जहां है,
ज़हर पिया जीवन दिया कितना उधार तू ,
आये शरण तिहारी प्रभु तार तार तू,
तेरी किरपा बिना न हिले इक भी अड़हु,
लेते है सांस तेरी दया से तनु तनु,
करदे ठाठ इक वार मुझको निहार तू,
आये शरण तिहारी प्रभु तार तार तू,
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ: भजन का अर्थ
यह भजन भगवान शिव की महिमा को गहनता से वर्णित करता है, जो आध्यात्मिक अनुभव, भक्त और शिव के बीच गहरे संबंध, और शिव के दैवीय स्वरूप के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डालता है। प्रत्येक पंक्ति न केवल भक्ति से भरी हुई है, बल्कि इसमें दर्शन, प्रतीकवाद और शिव की अद्वितीयता की गहराई भी समाहित है। आइए इसे गहराई से समझते हैं।
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ
गहराई से अर्थ:
कैलाश पर्वत को भौतिक और आध्यात्मिक स्तर पर देखा जा सकता है। भौतिक रूप में यह भगवान शिव का निवास स्थान है, जहां वे ध्यानमग्न रहते हैं। आध्यात्मिक रूप में, कैलाश मोक्ष का प्रतीक है—जहां आत्मा सभी बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मांडीय चेतना में विलीन हो जाती है।
“नमो बार बार” शब्द केवल शारीरिक प्रणाम नहीं है, बल्कि यह चेतना का शिव के प्रति आत्मसमर्पण है। यह भक्ति में बार-बार झुकने का आंतरिक भाव है।
आये शरण तिहारी प्रभु तार तार तू
गहराई से अर्थ:
शिवजी की शरण में आना स्वयं को उनके चरणों में समर्पित करना है। “तार तार” का अर्थ है, सभी सांसारिक कष्टों, बंधनों और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देना।
यहाँ शरणागति की महिमा का वर्णन है—जहां भक्त शिव से अपेक्षा करता है कि वह उसे संसार सागर से पार करें। यह गीता के श्लोक “मामेकं शरणं व्रज” (केवल मेरी शरण में आओ) से भी जुड़ा हुआ है।
भगतो को कभी शिव ने निराश न किया
गहराई से अर्थ:
भगवान शिव को “आशुतोष” कहा गया है, जो तुरंत प्रसन्न होकर भक्तों को वरदान देते हैं। यह पंक्ति उनके सहज स्नेह और करुणा को दर्शाती है।
उनकी कृपा बिना भेदभाव के होती है—चाहे वह देवता हो, मानव हो, या असुर। शिव का यह गुण दर्शाता है कि वह भक्ति में कर्म और इरादे को प्राथमिकता देते हैं, बाहरी पहचान को नहीं।
माँगा जिसे चाहा वही वरदान दे दिया
गहराई से अर्थ:
शिवजी अपने भक्तों को वही प्रदान करते हैं जो वे मांगते हैं। यह शिव की “इच्छा पूर्ति” शक्ति का वर्णन करता है।
लेकिन गहराई में देखा जाए तो शिव भक्त को उसकी मांग के अनुसार फल देकर उसे यह सिखाते हैं कि बाहरी इच्छाएं अल्पकालिक होती हैं और केवल आत्मज्ञान ही स्थायी संतोष ला सकता है।
बड़ा है तेरा दायरा बड़ा दातार तू
गहराई से अर्थ:
शिवजी का दायरा केवल भौतिक संसार तक सीमित नहीं है। वह ब्रह्मांड के हर कण में व्याप्त हैं। “दातार” का अर्थ यहाँ केवल दान देने वाले से नहीं है, बल्कि वह सर्वोच्च सत्ता हैं, जो जीव को भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि दोनों प्रदान करते हैं।
उनका दायरा उनके अनंत स्वरूप और सबको अपनाने की क्षमता को दर्शाता है।
बखान क्या करू मैं रखो की ढेर का
गहराई से अर्थ:
यह पंक्ति मानवीय सीमाओं को उजागर करती है। भक्त स्वीकार करता है कि वह भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने में अक्षम है।
“रखो की ढेर” केवल भौतिक धन नहीं है, बल्कि ज्ञान, प्रेम, करुणा और शांति का असीमित भंडार है, जो शिव अपने भक्तों को प्रदान करते हैं।
चुटकी कबूत में है खजाना कुबेर का
गहराई से अर्थ:
कुबेर धन के देवता हैं, लेकिन शिवजी कुबेर के भी अधिपति हैं। “चुटकी कबूत” का अर्थ है कि कुबेर का खजाना शिव के लिए मात्र एक छोटी सी चीज है।
यह उनके वैराग्य और आत्मनिर्भरता को दर्शाता है। शिवजी सांसारिक संपदा के परे हैं और इसे केवल साधन के रूप में देखते हैं, उद्देश्य के रूप में नहीं।
हे गंगा धार मुक्ति धार ओम कार तू
गहराई से अर्थ:
गंगा, शिव के जटाओं में समाहित होकर उनके वैराग्य और करुणा को दर्शाती है।
- गंगा धार: जीवन के कलुष को धोने वाली शक्ति।
- मुक्ति धार: शिव का स्वरूप मोक्ष का प्रतीक है।
- ओम कार: शिव को “आदि अनादि” कहा गया है। “ॐ” वह ध्वनि है, जिससे सृष्टि का निर्माण हुआ। शिव “ॐ” का मूर्त रूप हैं।
क्या क्या नहीं दिया है ये हम प्रमाण है
गहराई से अर्थ:
यह पंक्ति शिव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है। भक्त कहता है कि शिव ने हमें भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के उपहार दिए हैं।
यहाँ यह भी समझ आता है कि मनुष्य को अपनी हर स्थिति में शिव की कृपा का आभास होना चाहिए।
तेरी किरपा के आसरे सारा जहां है
गहराई से अर्थ:
शिव केवल एक व्यक्तिगत देवता नहीं हैं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड उनके अधीन है। उनका अस्तित्व ही इस जगत को चलायमान रखता है।
यह शिव के ‘जगद्पिता’ स्वरूप की व्याख्या करता है—वे ब्रह्मांड के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं।
ज़हर पिया जीवन दिया कितना उधार तू
गहराई से अर्थ:
यह पंक्ति समुद्र मंथन की कथा का संदर्भ देती है, जहां शिव ने विष पीकर संसार को विनाश से बचाया।
यह उनके ‘निःस्वार्थ सेवा’ और ‘त्याग’ का उदाहरण है। शिव का यह बलिदान दर्शाता है कि वे दूसरों के कल्याण के लिए अपने जीवन का त्याग कर सकते हैं।
तेरी किरपा बिना न हिले इक भी अड़हु
गहराई से अर्थ:
“अड़हु” यानी छोटी से छोटी वस्तु। यह पंक्ति शिव की सर्वव्यापकता को दर्शाती है। उनके बिना सृष्टि का एक कण भी संचालित नहीं हो सकता।
यहाँ शैव दर्शन का वह पहलू झलकता है, जिसमें शिव को “सर्वकारण” और “सर्वाधार” कहा गया है।
लेते है सांस तेरी दया से तनु तनु
गहराई से अर्थ:
हमारी हर सांस शिव की कृपा का प्रतिफल है। यह पंक्ति “प्राण” के महत्व को दर्शाती है, जिसे शिव ने प्रदान किया है।
आध्यात्मिक रूप से, यह आत्मा और शिव के बीच संबंध को उजागर करती है, जो जीवन को बनाए रखता है।
करदे ठाठ इक वार मुझको निहार तू
गहराई से अर्थ:
यह प्रार्थना और भरोसे की पंक्ति है। भक्त भगवान शिव से अनुरोध करता है कि वे अपनी कृपा दृष्टि से उसके जीवन को सजा दें।
“ठाठ” यहाँ केवल भौतिक वैभव नहीं, बल्कि आंतरिक आनंद और शांति है। यह आत्मा की भगवान शिव से अंतिम मुक्ति की प्रार्थना है।
यह भजन शिवजी की हर विशेषता, उनकी करुणा, दानशीलता, शक्ति और शरणागत वत्सलता को गहराई से प्रकट करता है। यह जीवन के हर पहलू को शिव की कृपा से जोड़कर देखता है, जो कि शैव दर्शन का मुख्य आधार है।