कमल नेत्र स्तोत्रम् in Hindi/Sanskrit
श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बर,
अधर मुरली गिरधरम ।
मुकुट कुण्डल कर लकुटिया,
सांवरे राधेवरम ॥1॥
कूल यमुना धेनु आगे,
सकल गोपयन के मन हरम ।
पीत वस्त्र गरुड़ वाहन,
चरण सुख नित सागरम ॥2॥
करत केल कलोल निश दिन,
कुंज भवन उजागरम ।
अजर अमर अडोल निश्चल,
पुरुषोत्तम अपरा परम ॥3॥
दीनानाथ दयाल गिरिधर,
कंस हिरणाकुश हरणम ।
गल फूल भाल विशाल लोचन,
अधिक सुन्दर केशवम ॥4॥
बंशीधर वासुदेव छइया,
बलि छल्यो श्री वामनम ।
जब डूबते गज राख लीनों,
लंक छेद्यो रावनम ॥5॥
सप्त दीप नवखण्ड चौदह,
भवन कीनों एक पदम ।
द्रोपदी की लाज राखी,
कहां लौ उपमा करम ॥6॥
दीनानाथ दयाल पूरण,
करुणा मय करुणा करम ।
कवित्तदास विलास निशदिन,
नाम जप नित नागरम ॥7॥
प्रथम गुरु के चरण बन्दों,
यस्य ज्ञान प्रकाशितम ।
आदि विष्णु जुगादि ब्रह्मा,
सेविते शिव संकरम ॥8॥
श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव,
कृष्ण यदुपति केशवम ।
श्रीराम रघुवर, राम रघुवर,
राम रघुवर राघवम ॥9॥
श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधव,
वासुदेव श्री वामनम ।
मच्छ-कच्छ वाराह नरसिंह,
पाहि रघुपति पावनम ॥10॥
मथुरा में केशवराय विराजे,
गोकुल बाल मुकुन्द जी ।
श्री वृन्दावन में मदन मोहन,
गोपीनाथ गोविन्द जी ॥11॥
धन्य मथुरा धन्य गोकुल,
जहाँ श्री पति अवतरे ।
धन्य यमुना नीर निर्मल,
ग्वाल बाल सखावरे ॥12॥
नवनीत नागर करत निरन्तर,
शिव विरंचि मन मोहितम ।
कालिन्दी तट करत क्रीड़ा,
बाल अदभुत सुन्दरम ॥13॥
ग्वाल बाल सब सखा विराजे,
संग राधे भामिनी ।
बंशी वट तट निकट यमुना,
मुरली की टेर सुहावनी ॥14॥
भज राघवेश रघुवंश उत्तम,
परम राजकुमार जी ।
सीता के पति भक्तन के गति,
जगत प्राण आधार जी ॥15॥
जनक राजा पनक राखी,
धनुष बाण चढ़ावहीं ।
सती सीता नाम जाके,
श्री रामचन्द्र प्रणामहीं ॥16॥
जन्म मथुरा खेल गोकुल,
नन्द के ह्रदि नन्दनम ।
बाल लीला पतित पावन,
देवकी वसुदेवकम ॥17॥
श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाके,
जो भजे हरिचरण को ।
भक्ति अपनी देव माधव,
भवसागर के तरण को ॥18॥
जगन्नाथ जगदीश स्वामी,
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम ।
द्वारिका के नाथ श्री पति,
केशवं प्रणमाम्यहम ॥19॥
श्रीकृष्ण अष्टपदपढ़तनिशदिन,
विष्णु लोक सगच्छतम ।
श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामी,
कविदत्त दास समाप्ततम ॥20॥
Kamal Netra Stotram in English
Shri Kamal Netra Kati Peetambar,
Adhar Murali Giridharam.
Mukuta Kundal Kar Lakutiya,
Saavare Radhevaram.
Kool Yamuna Dhenu Aage,
Sakal Gopayan Ke Man Haram.
Peet Vastra Garud Vahan,
Charan Sukh Nit Sagaram.
Karat Kel Kalol Nish Din,
Kunj Bhavan Ujagaram.
Ajar Amar Adol Nishchal,
Purushottam Apara Param.
Deenanath Dayal Giridhar,
Kans Hiranyakush Haranam.
Gal Phool Bhaal Vishal Lochan,
Adhik Sundar Keshavam.
Bansidhar Vasudev Chhaiya,
Bali Chhalyo Shri Vamanam.
Jab Doobte Gaj Rakh Leeno,
Lanka Chedyo Ravanam.
Sapt Deep Navkhand Choudah,
Bhavan Keeno Ek Padam.
Draupadi Ki Laaj Rakhi,
Kaha Lau Upma Karam.
Deenanath Dayal Pooran,
Karuna May Karuna Karam.
Kavitdas Vilas Nishdin,
Naam Jap Nit Nagaram.
Pratham Guru Ke Charan Bando,
Yasya Gyaan Prakashitam.
Aadi Vishnu Jugadi Brahma,
Sevite Shiv Sankaram.
Shri Krishna Keshav Krishna Keshav,
Krishna Yadupti Keshavam.
Shri Ram Raghuvar, Ram Raghuvar,
Ram Raghuvar Raghavam.
Shri Ram Krishna Govind Madhav,
Vasudev Shri Vamanam.
Machh-Kachh Vaarah Narsingh,
Pahi Raghupati Paavanam.
Mathura Mein Keshavray Viraje,
Gokul Baal Mukund Ji.
Shri Vrindavan Mein Madan Mohan,
Gopinath Govind Ji.
Dhanya Mathura Dhanya Gokul,
Jahan Shri Pati Avatare.
Dhanya Yamuna Neer Nirmal,
Gwaal Baal Sakhaavare.
Navneet Nagar Karat Nirantar,
Shiv Viranchi Man Mohitam.
Kalindi Tat Karat Kreeda,
Baal Adbhut Sundaram.
Gwaal Baal Sab Sakha Viraje,
Sang Radhe Bhaamini.
Banshi Vat Tat Nikat Yamuna,
Murli Ki Ter Suhaavani.
Bhaj Raghavesh Raghuvansh Uttam,
Param Rajkumar Ji.
Sita Ke Pati Bhaktan Ke Gati,
Jagat Pran Aadhaar Ji.
Janak Raja Panak Rakhi,
Dhanush Baan Chadhavahin.
Sati Sita Naam Jake,
Shri Ramchandra Pranamahin.
Janm Mathura Khel Gokul,
Nand Ke Hridi Nandanam.
Baal Leela Patit Paavan,
Devaki Vasudevakam.
Shri Krishna Kalimal Haran Jake,
Jo Bhaje Haricharan Ko.
Bhakti Apni Dev Madhav,
Bhavsagar Ke Taran Ko.
Jagannath Jagdish Swami,
Shri Badrinath Vishvambharam.
Dwarka Ke Nath Shri Pati,
Keshavam Pranamamyaham.
Shri Krishna Ashtapad Path Nishdin,
Vishnu Lok Sagachhatam.
Shri Guru Ramanand Avatar Swami,
Kavidatt Das Samaptam.
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कमल नेत्र स्तोत्रम् का अर्थ
श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बर
इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण का वर्णन किया गया है। उनके नेत्र कमल के समान सुन्दर और शीतल हैं। “कटि पीताम्बर” का अर्थ है कि उनके कटि (कमर) पर पीताम्बर (पीला वस्त्र) धारण किया हुआ है। यह पीला वस्त्र उनकी दिव्यता और शुद्धता का प्रतीक है।
अधर मुरली गिरधरम
यहाँ श्रीकृष्ण को मुरलीधर के रूप में दर्शाया गया है, जिसका अर्थ है कि उनके अधरों (होठों) पर मुरली सजीव है। “गिरधरम” का अर्थ है गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले, जो उनके अद्वितीय पराक्रम को दर्शाता है।
मुकुट कुण्डल कर लकुटिया
भगवान श्रीकृष्ण का मुकुट और कुंडल उनके अलौकिक सौंदर्य का वर्णन करते हैं। उनके हाथ में लकुटिया (छड़ी) है, जो उनकी ग्वाला स्वरूप को दर्शाती है, जब वे ग्वालों के साथ गायों की देखभाल करते थे।
सांवरे राधेवरम
इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण के सांवले रंग का वर्णन किया गया है और उन्हें “राधेवर” कहा गया है, जिसका अर्थ है राधा के प्रिय। यह श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम का प्रतीक है।
कूल यमुना धेनु आगे
इस पंक्ति में यमुना के तट का दृश्य प्रस्तुत किया गया है, जहाँ श्रीकृष्ण गायों के साथ विचरण करते हैं। “धेनु आगे” का अर्थ है कि गायें उनके आगे-आगे चलती हैं, जो उनकी ग्वाल-लीला का एक प्रमुख हिस्सा है।
सकल गोपयन के मन हरम
भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों और गोपों के मन को मोह लिया है। वे अपने अलौकिक आकर्षण और दिव्य लीलाओं से सभी का हृदय हर लेते हैं।
पीत वस्त्र गरुड़ वाहन
यहाँ श्रीकृष्ण के गरुड़ पर सवार होने का वर्णन किया गया है। पीत वस्त्र धारण करना उनकी दिव्यता और गरिमा को दर्शाता है, और गरुड़ उनकी दिव्य सवारी है।
चरण सुख नित सागरम
भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अनंत सुख और शांति का निवास है। उनके चरणों की सेवा करने से भक्त नित्य ही सुख और आनंद के सागर में डूब जाते हैं।
करत केल कलोल निश दिन
श्रीकृष्ण दिन-रात आनंद और लीलाओं में मग्न रहते हैं। वे अपने बाल-लीलाओं के द्वारा सभी को मोहित कर देते हैं। उनकी लीलाएँ सभी को आनंद और शांति प्रदान करती हैं।
कुंज भवन उजागरम
यह पंक्ति श्रीकृष्ण के निवास का वर्णन करती है, जो कुंज (वन) में है। उनका यह निवास दिव्य प्रकाश से जगमगाता रहता है, जो उनकी आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
अजर अमर अडोल निश्चल
भगवान श्रीकृष्ण अजर और अमर हैं, यानी वे कभी वृद्ध नहीं होते और हमेशा अमर रहते हैं। उनका व्यक्तित्व अडोल (अचल) और निश्चल (स्थिर) है, जो उनकी दिव्यता और स्थायित्व को दर्शाता है।
पुरुषोत्तम अपरा परम
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण को “पुरुषोत्तम” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे सर्वश्रेष्ठ पुरुष हैं। वे “अपरा परम” भी हैं, यानी उनकी तुलना में कोई अन्य नहीं है; वे सर्वोच्च और अद्वितीय हैं।
दीनानाथ दयाल गिरिधर
भगवान श्रीकृष्ण को दीनानाथ कहा गया है, जो दीनों (गरीबों) और दुखियों के नाथ (पालक) हैं। उनका हृदय दयालुता से भरा है और वे सभी की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
कंस हिरणाकुश हरणम
इस पंक्ति में श्रीकृष्ण को कंस और हिरण्यकश्यप जैसे अत्याचारी राक्षसों के विनाशक के रूप में वर्णित किया गया है। उन्होंने पृथ्वी को इन दुष्टों से मुक्त किया और धर्म की स्थापना की।
गल फूल भाल विशाल लोचन
भगवान श्रीकृष्ण के गले में फूलों की माला सजी रहती है। उनके विशाल और सुंदर नेत्रों से दिव्यता झलकती है, जो सभी को शांति और आनंद प्रदान करते हैं।
अधिक सुन्दर केशवम
इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत सुन्दर और आकर्षक बताया गया है। उनका सौंदर्य अद्वितीय और अलौकिक है, जो उनके दिव्य स्वरूप का प्रतीक है।
बंशीधर वासुदेव छइया
श्रीकृष्ण को “बंशीधर” कहा गया है, जिसका अर्थ है बांसुरी धारण करने वाले। उनकी बांसुरी की मधुर ध्वनि सभी जीवों के मन को मोह लेती है। “वासुदेव” का अर्थ है वासुदेव के पुत्र, यानी भगवान कृष्ण वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए। “छइया” का यहाँ तात्पर्य है कि वे सदैव अपने भक्तों की छाया के समान रक्षा करते हैं।
बलि छल्यो श्री वामनम
इस पंक्ति में श्री वामन अवतार का उल्लेख है। श्रीकृष्ण ने वामन रूप में अवतार लेकर राजा बलि को छल से तीन पग भूमि में संपूर्ण ब्रह्माण्ड को माप लिया था। यह उनकी चतुराई और भक्तों की रक्षा के लिए किए गए कार्यों का प्रतीक है।
जब डूबते गज राख लीनों
यह पंक्ति गजेन्द्र मोक्ष की कथा का संदर्भ है, जब एक हाथी (गजेन्द्र) को मगरमच्छ ने पकड़ लिया था। उस समय गजेन्द्र ने श्रीकृष्ण का स्मरण किया और भगवान ने उसकी प्रार्थना सुनकर उसे मगर से मुक्त किया। यह श्रीकृष्ण की करुणा और संकट में सहायता प्रदान करने की शक्ति को दर्शाता है।
लंक छेद्यो रावनम
यहाँ भगवान श्रीराम का उल्लेख किया गया है, जिन्होंने रावण का वध कर लंका का विनाश किया। श्रीकृष्ण और श्रीराम दोनों ही एक ही विष्णु के अवतार माने जाते हैं, जो धर्म की स्थापना और अधर्म का विनाश करने के लिए अवतरित हुए थे।
सप्त दीप नवखण्ड चौदह
भगवान श्रीकृष्ण को पूरे संसार के स्वामी के रूप में दर्शाया गया है। “सप्त दीप” का अर्थ है सात महाद्वीप, और “नवखण्ड” का अर्थ है नौ खंड, जो पूरे भौगोलिक क्षेत्र को दर्शाते हैं। श्रीकृष्ण ने इन सभी को अपनी एक पग के द्वारा नाप लिया था, जो उनकी अपार शक्ति का प्रतीक है।
भवन कीनों एक पदम
यहाँ कहा गया है कि भगवान ने अपनी एक पग में सम्पूर्ण संसार को माप लिया, यह उनके वामन अवतार के समय का प्रसंग है। इससे उनकी सर्वशक्तिमानता का प्रतीक मिलता है।
द्रोपदी की लाज राखी
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के समय द्रौपदी की लाज (मर्यादा) की रक्षा की थी, जब दुर्योधन ने उसे सभा में अपमानित करने का प्रयास किया। भगवान ने उनकी साड़ी को अंतहीन बना दिया, जिससे द्रौपदी की लाज बची रही। यह उनकी नारी सम्मान और भक्तों की रक्षा के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
कहां लौ उपमा करम
यहाँ कवि ने कहा है कि श्रीकृष्ण की उपमा देना असंभव है। उनके कार्य और लीलाएँ इतनी दिव्य और विशाल हैं कि उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। उनका प्रत्येक कार्य अद्वितीय है।
दीनानाथ दयाल पूरण
भगवान श्रीकृष्ण को यहाँ “दीनानाथ” और “दयाल” कहा गया है। वे सदा दीनों के नाथ और दयालु हैं, उनकी करुणा और प्रेम अनंत हैं। “पूरण” का अर्थ है पूर्णता, यानी भगवान श्रीकृष्ण पूर्णतया करुणामय और सबकी मदद करने वाले हैं।
करुणा मय करुणा करम
भगवान श्रीकृष्ण करुणा से परिपूर्ण हैं। उनके कार्य और उनकी कृपा भक्तों के प्रति हमेशा सहानुभूतिपूर्ण रहती है। वे सदा दीन-दुखियों की सहायता करते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं।
कवित्तदास विलास निशदिन
कवि यहाँ अपने आप को “कवित्तदास” कहकर श्रीकृष्ण की सेवा में समर्पित करता है। वह दिन-रात भगवान के नाम का जाप और गुणगान करता है। उनके नाम की महिमा से कवि की आत्मा प्रसन्न रहती है।
नाम जप नित नागरम
इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण के नाम का निरंतर जप करने की महत्ता बताई गई है। “नागरम” का अर्थ है कि भगवान नगर के मुख्य (नायक) हैं, यानी उनका नाम हमेशा गूंजता रहता है और उसी के स्मरण से मुक्ति प्राप्त होती है।
प्रथम गुरु के चरण बन्दों
यह पंक्ति गुरु के महत्व को बताती है। सबसे पहले गुरु के चरणों की वंदना की जाती है, क्योंकि वे ही ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। गुरु का स्थान सर्वोपरि होता है, क्योंकि वे ईश्वर के मार्ग तक पहुँचने का माध्यम होते हैं।
यस्य ज्ञान प्रकाशितम
गुरु के कारण ही ज्ञान का प्रकाश फैलता है। गुरु ही हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में लाते हैं। उनके ज्ञान के बिना जीवन अधूरा है।
आदि विष्णु जुगादि ब्रह्मा
यहाँ आदि विष्णु और ब्रह्मा का उल्लेख है, जो सृष्टि के निर्माणकर्ता हैं। ये सभी देवता भी गुरु की महिमा का गुणगान करते हैं और उनकी सेवा करते हैं।
सेविते शिव संकरम
भगवान शिव भी गुरु के चरणों की सेवा करते हैं, क्योंकि गुरु ही उन्हें ज्ञान प्रदान करने वाले होते हैं। यह गुरु की महिमा का विशेष वर्णन करता है, जो सभी देवताओं द्वारा पूजनीय हैं।
श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव
इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न नामों का उल्लेख किया गया है। “केशव” का अर्थ है कि उन्होंने केशी राक्षस का वध किया था। “श्रीकृष्ण” का नाम उनके सांवले रूप और उनके अद्वितीय सौंदर्य को दर्शाता है। इस प्रकार, इन नामों के माध्यम से उनकी लीलाओं और गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
कृष्ण यदुपति केशवम
यहाँ श्रीकृष्ण को यदुपति कहा गया है, जो यादवों के राजा और प्रमुख हैं। यादव कुल में जन्म लेकर उन्होंने अपनी लीलाओं से सम्पूर्ण संसार को मोहित किया और धर्म की स्थापना की।
श्रीराम रघुवर, राम रघुवर
इस पंक्ति में भगवान राम का उल्लेख किया गया है। “रघुवर” का अर्थ है रघु कुल के श्रेष्ठ व्यक्ति। भगवान राम, रघुकुल के सबसे महान राजा माने जाते हैं, जिन्होंने अपनी निष्ठा और न्यायप्रियता के साथ राज किया।
राम रघुवर राघवम
यहाँ भगवान राम को “राघव” कहा गया है, जो रघु वंश के श्रेष्ठतम सदस्य हैं। उनकी महानता और उनके कर्तव्यों को इस पंक्ति में विशिष्ट रूप से सराहा गया है।
श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधव
इस पंक्ति में श्रीराम, श्रीकृष्ण, गोविन्द और माधव जैसे विभिन्न नामों से भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन किया गया है। ये सभी नाम भगवान की विभिन्न लीलाओं और रूपों का प्रतीक हैं, जो उनके भक्तों के जीवन में विशेष स्थान रखते हैं।
वासुदेव श्री वामनम
यहाँ भगवान वासुदेव और वामन अवतार का उल्लेख किया गया है। वासुदेव, श्रीकृष्ण के नामों में से एक है, जो उन्हें वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में दर्शाता है। वामन अवतार वह रूप है जिसमें भगवान ने त्रिलोकी को एक ही कदम में नाप लिया था।
मच्छ-कच्छ वाराह नरसिंह
भगवान विष्णु के चार अन्य अवतारों का उल्लेख इस पंक्ति में किया गया है – मच्छ (मछली अवतार), कच्छ (कच्छप या कछुआ अवतार), वाराह (सूअर अवतार) और नरसिंह (आधा मनुष्य और आधा सिंह अवतार)। ये अवतार उन्होंने धर्म की रक्षा और असुरों के विनाश के लिए धारण किए थे।
पाहि रघुपति पावनम
भगवान श्रीराम को रघुपति कहा गया है, जो रघु वंश के प्रमुख थे। उनका जीवन और कार्य पावन (पवित्र) हैं, जो उनके भक्तों के लिए मार्गदर्शक हैं। भगवान से प्रार्थना की गई है कि वे सबकी रक्षा करें।
मथुरा में केशवराय विराजे
भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में केशवराय के रूप में विराजमान हैं। मथुरा उनकी जन्मस्थली है, जहाँ उन्होंने जन्म लिया और अपने बालपन की लीलाओं से सभी को मोहित किया। मथुरा उनके जीवन का महत्वपूर्ण स्थल है।
गोकुल बाल मुकुन्द जी
यह पंक्ति श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप “बाल मुकुन्द” का वर्णन करती है। जब वे गोकुल में रहते थे, तब उनकी बाल लीलाएँ अत्यंत प्रसिद्ध थीं। उनका बालपन सभी के लिए आकर्षण का केंद्र था।
श्री वृन्दावन में मदन मोहन
श्रीकृष्ण वृन्दावन में “मदन मोहन” के रूप में पूजे जाते हैं। “मदन मोहन” का अर्थ है, जो कामदेव (मदन) को भी मोहित कर दें। वृन्दावन उनकी प्रेम और भक्ति का स्थल है, जहाँ उन्होंने राधा और गोपियों के साथ अद्वितीय लीलाएँ कीं।
गोपीनाथ गोविन्द जी
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण को “गोपीनाथ” कहा गया है, जिसका अर्थ है गोपियों के नाथ (स्वामी)। वे गोपियों के प्रिय हैं और उनके साथ लीला करने वाले हैं। “गोविन्द” का अर्थ है गायों के संरक्षक, जो उनकी ग्वाला स्वरूप का प्रतीक है।
धन्य मथुरा धन्य गोकुल
इस पंक्ति में मथुरा और गोकुल को धन्य कहा गया है, क्योंकि ये वे स्थान हैं जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया और अपनी लीलाएँ कीं। मथुरा उनकी जन्मस्थली है, और गोकुल वह स्थान है जहाँ उन्होंने अपने बाल्यकाल की अद्वितीय लीलाएँ कीं।
जहाँ श्री पति अवतरे
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण को “श्रीपति” कहा गया है, जो लक्ष्मी के पति हैं। वे मथुरा और गोकुल में अवतरित हुए और अपनी लीलाओं से इन स्थलों को धन्य कर दिया। उनकी उपस्थिति से ये स्थान पूजनीय और पवित्र माने जाते हैं।
धन्य यमुना नीर निर्मल
यमुना नदी को भी धन्य कहा गया है, क्योंकि इसके जल में श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में कई लीलाएँ कीं। यमुना का निर्मल जल भगवान की पवित्रता और उनके स्पर्श से और भी अधिक पावन हो गया है।
ग्वाल बाल सखावरे
यहाँ श्रीकृष्ण के ग्वाल-बाल सखाओं का उल्लेख है, जो उनके साथ गायों को चराने और खेलकूद में भाग लेते थे। श्रीकृष्ण के सखा उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे, और उनके साथ बिताया हुआ समय उनकी बाल लीलाओं का महत्वपूर्ण अंग है।
नवनीत नागर करत निरन्तर
इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण को “नवनीत नागर” कहा गया है, जिसका अर्थ है मक्खन चुराने वाला। वे अपने बाल रूप में निरंतर नवनीत (मक्खन) का सेवन करते और चुराते रहते थे। यह उनकी बाल लीलाओं का बहुत ही प्रसिद्ध प्रसंग है, जो उनकी सरलता और चंचलता को दर्शाता है।
शिव विरंचि मन मोहितम
भगवान श्रीकृष्ण के अद्वितीय सौंदर्य और लीलाओं से भगवान शिव और ब्रह्मा (विरंचि) भी मोहित हो जाते हैं। यह पंक्ति उनकी दिव्यता का वर्णन करती है कि वे केवल मानवों को ही नहीं, बल्कि देवताओं को भी मोहित कर देते हैं।
कालिन्दी तट करत क्रीड़ा
यहाँ भगवान कृष्ण की कालिन्दी (यमुना) के तट पर की गई लीलाओं का उल्लेख है। यमुना के किनारे वे अपने सखाओं और गोपियों के साथ खेलते थे। यमुना के तट पर उनकी लीलाएँ इतनी अद्भुत थीं कि भक्त उनका हमेशा स्मरण करते हैं।
बाल अदभुत सुन्दरम
श्रीकृष्ण का बाल रूप अत्यंत अद्भुत और सुंदर था। उनकी बाल लीलाएँ, उनका चंचल स्वभाव और उनका अनोखा सौंदर्य सभी को मंत्रमुग्ध कर देता था। इस पंक्ति में उनकी बाल अवस्था के सौंदर्य और चमत्कारों का वर्णन है।
ग्वाल बाल सब सखा विराजे
भगवान श्रीकृष्ण के ग्वाल-बाल सखा उनके साथ सदा विराजमान रहते थे। ये उनके बचपन के मित्र थे, जो उनके साथ गायों को चराने और विभिन्न लीलाओं में शामिल होते थे। उनके सखा उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे और उनके साथ बिताए गए समय को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं।
संग राधे भामिनी
यह पंक्ति श्रीकृष्ण की प्रमुख सखी राधा का वर्णन करती है। राधा उनके साथ सदा रहती थीं और उनके साथ लीला करती थीं। राधा-कृष्ण का प्रेम अध्यात्म और भक्ति का प्रतीक है, जो इस पंक्ति में अभिव्यक्त किया गया है।
बंशी वट तट निकट यमुना
श्रीकृष्ण की बांसुरी की मधुर ध्वनि यमुना के तट पर स्थित बंशी वट (वृक्ष) के पास गूंजती रहती थी। बांसुरी उनकी पहचान थी और उसकी ध्वनि से सभी गोपियाँ और सखाओं का मन मोहित हो जाता था। यह स्थान उनकी लीलाओं का महत्वपूर्ण केंद्र था।
मुरली की टेर सुहावनी
यहाँ मुरली की मधुर ध्वनि का वर्णन है। श्रीकृष्ण की मुरली की आवाज इतनी सुहावनी थी कि इसे सुनकर सभी गोपियाँ और जीव-जन्तु उनकी ओर आकर्षित हो जाते थे। उनकी बांसुरी की ध्वनि प्रेम और भक्ति का संदेश देती है।
भज राघवेश रघुवंश उत्तम
यह पंक्ति भगवान राम की भक्ति की ओर संकेत करती है। भगवान राम को “राघवेश” और “रघुवंश उत्तम” कहा गया है, यानी वे रघु वंश के सबसे श्रेष्ठ और प्रमुख व्यक्ति हैं। भगवान राम की भक्ति करना और उनके गुणों का गान करना आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है।
परम राजकुमार जी
भगवान राम को परम राजकुमार कहा गया है, जो उनके राजसी स्वरूप और उनकी महानता को दर्शाता है। वे केवल एक राजकुमार ही नहीं थे, बल्कि आदर्शों और निष्ठाओं के प्रतीक थे, जिन्होंने अपने जीवन में धर्म का पालन किया और आदर्श राजा के रूप में शासन किया।
सीता के पति भक्तन के गति
भगवान राम को यहाँ सीता के पति के रूप में उल्लेखित किया गया है। वे आदर्श पति के रूप में भी पूजे जाते हैं। इसके साथ ही वे भक्तों के लिए गति (मार्ग) हैं, यानी वे भक्तों को मोक्ष और मुक्ति प्रदान करने वाले हैं।
जगत प्राण आधार जी
भगवान राम को सम्पूर्ण जगत का प्राण और आधार कहा गया है। वे ही इस संसार को जीवन और शक्ति प्रदान करते हैं। उनके बिना इस जगत की कल्पना संभव नहीं है, वे सृष्टि के संचालनकर्ता हैं।
जनक राजा पनक राखी
यह पंक्ति उस प्रसंग का उल्लेख करती है, जब राजा जनक ने भगवान राम के साथ सीता का विवाह संपन्न किया था। राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का कन्यादान किया और भगवान राम को अपनी पुत्री के रूप में दिया।
धनुष बाण चढ़ावहीं
भगवान राम ने राजा जनक के स्वयंबर में शिवजी का धनुष तोड़ा था। यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसने राम और सीता के विवाह का मार्ग प्रशस्त किया। भगवान राम की शक्ति और उनके धैर्य का यह प्रतीक है।
सती सीता नाम जाके
यहाँ सीता जी को “सती” कहा गया है, जो उनकी पवित्रता और उनके चरित्र की महिमा का वर्णन करता है। वे आदर्श पत्नी और नारी के रूप में पूजी जाती हैं, जिनका जीवन तप और त्याग से भरा हुआ है।
श्री रामचन्द्र प्रणामहीं
इस पंक्ति में भगवान राम को प्रणाम किया गया है। उनकी महिमा और उनके गुणों का गान करने के बाद, कवि उनके चरणों में प्रणाम करते हैं। यह उनकी दिव्यता और भक्तों के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है।
जन्म मथुरा खेल गोकुल
यह पंक्ति भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के दो महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख करती है। उनका जन्म मथुरा में हुआ था, जो कंस का राज था, लेकिन उनका बचपन गोकुल में बीता। गोकुल में उनकी बाल लीलाओं का महत्व बताया गया है, जहाँ उन्होंने अपने नटखट और चंचल स्वभाव से सभी का दिल जीत लिया था।
नन्द के ह्रदि नन्दनम
यहाँ श्रीकृष्ण को नन्द के हृदय का नन्दन कहा गया है, यानी नन्द बाबा के लिए भगवान श्रीकृष्ण उनके जीवन का केंद्र थे। नन्द बाबा और यशोदा माता ने श्रीकृष्ण का पालन-पोषण किया और उनके बचपन की लीलाओं को निकट से देखा।
बाल लीला पतित पावन
श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया है, जो पतितों (पापियों) का उद्धार करने वाली हैं। उनके बाल रूप में किए गए कार्यों से ही अनेक भक्तों का उद्धार हुआ और धर्म की स्थापना हुई। उनकी बाल लीलाएँ केवल मनोरंजन नहीं थीं, बल्कि उन्होंने जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाए।
देवकी वसुदेवकम
यह पंक्ति बताती है कि श्रीकृष्ण देवकी और वसुदेव के पुत्र हैं। वसुदेव और देवकी ने कारागार में भगवान कृष्ण को जन्म दिया था, लेकिन उनका पालन-पोषण नन्द बाबा और यशोदा माता ने किया। देवकी और वसुदेव के पुत्र होने के नाते, उनका जन्म ही अधर्म का विनाश करने के लिए हुआ था।
श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाके
यह पंक्ति भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करती है, जो कलियुग के पापों (कलिमल) का हरण करने वाले हैं। कलियुग में पाप और अधर्म की अधिकता होती है, और श्रीकृष्ण के स्मरण मात्र से ही भक्तों के पापों का नाश होता है।
जो भजे हरिचरण को
यहाँ उन भक्तों का वर्णन किया गया है, जो भगवान श्रीकृष्ण के चरणों का भजन करते हैं। भगवान के चरणों की पूजा करने वाले भक्तों का उद्धार निश्चित है। उनके चरणों का स्मरण ही जीवन के सभी दुखों से मुक्ति दिलाने वाला होता है।
भक्ति अपनी देव माधव
यह पंक्ति बताती है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों को भक्ति प्रदान करते हैं। “माधव” उनका एक और नाम है, जो उनकी शक्ति और दया का प्रतीक है। भक्त जो भी भक्ति से उनके चरणों में समर्पण करते हैं, उन्हें भगवान सदा अपनी कृपा से नवाजते हैं।
भवसागर के तरण को
श्रीकृष्ण के चरणों की भक्ति से ही संसार रूपी सागर (भवसागर) को पार किया जा सकता है। यह पंक्ति बताती है कि भगवान की कृपा और भक्ति से जीवन के समस्त कष्ट और कठिनाइयों को पार किया जा सकता है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जगन्नाथ जगदीश स्वामी
भगवान श्रीकृष्ण को “जगन्नाथ” कहा गया है, जिसका अर्थ है जगत के नाथ या स्वामी। वे इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के मालिक और पालक हैं। “जगदीश” का अर्थ है जगत के ईश्वर, जो सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करते हैं।
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम
यह पंक्ति भगवान विष्णु के बद्रीनाथ रूप का वर्णन करती है। बद्रीनाथ धाम उनके चार प्रमुख धामों में से एक है। “विश्वम्भरम” का अर्थ है सम्पूर्ण विश्व का भरण-पोषण करने वाला। भगवान श्रीकृष्ण इस जगत के पालनकर्ता और जीवनदाता हैं।
द्वारिका के नाथ श्री पति
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण को द्वारिका के नाथ कहा गया है। उन्होंने द्वारिका नगरी की स्थापना की थी और वहीं से यादवों का नेतृत्व किया। “श्री पति” का अर्थ है लक्ष्मी के पति, जो उनकी समृद्धि और वैभव का प्रतीक है।
केशवं प्रणमाम्यहम
यह पंक्ति भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण की भावना को दर्शाती है। “केशव” उनके अनेक नामों में से एक है, और कवि ने उन्हें प्रणाम किया है। यह भगवान के चरणों में नतमस्तक होकर भक्ति और श्रद्धा प्रकट करने का संकेत है।
श्रीकृष्ण अष्टपदपढ़तनिशदिन
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के अष्टपद (आठ चरणों) का उल्लेख है। इन आठ चरणों का प्रतीक उनके विभिन्न गुणों और लीलाओं का विस्तार है। भक्तों के लिए भगवान के प्रत्येक चरण उनके जीवन का मार्गदर्शक है।
विष्णु लोक सगच्छतम
यह पंक्ति बताती है कि भगवान श्रीकृष्ण विष्णु लोक को गमन करते हैं। विष्णु लोक उनका निवास स्थान है, जहाँ से वे सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करते हैं। यह स्थान सभी दिव्य आत्माओं और मुक्त जीवों के लिए आदर्श है।
श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामी
यह पंक्ति श्रीगुरु रामानंद जी के अवतार के बारे में बताती है। रामानंद जी को श्रीकृष्ण का परम भक्त और उनके अवतार के रूप में पूजा जाता है। वे श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत थे।
कविदत्त दास समाप्ततम
अंतिम पंक्ति में कवि ने अपने आप को “कविदत्त दास” कहा है, जिसका अर्थ है कि वे भगवान श्रीकृष्ण के दास हैं। यहाँ कवि ने अपनी रचना को समाप्त करते हुए भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अपना सम्पूर्ण समर्पण व्यक्त किया है।
श्रीकृष्ण के नामों की महिमा
भगवान श्रीकृष्ण के अनेक नामों का इस कविता में बार-बार उल्लेख किया गया है। हर नाम उनका एक विशेष गुण या लीला दर्शाता है। जैसे:
- केशव: यह नाम इस बात की याद दिलाता है कि श्रीकृष्ण ने केशी राक्षस का वध किया था।
- वासुदेव: यह नाम उनके जन्म को दर्शाता है, क्योंकि वे वसुदेव के पुत्र थे।
- गोविन्द: इस नाम से उन्हें गायों के संरक्षक के रूप में दिखाया गया है, जो उनकी ग्वाला लीला का प्रतीक है।
- मधुसूदन: मधु नामक राक्षस का वध करने के कारण उन्हें यह नाम मिला।
इन नामों का उच्चारण भक्तों के लिए मुक्ति का मार्ग है। यह इस तथ्य को भी दर्शाता है कि भगवान के अलग-अलग रूप और नाम केवल एक ही सर्वोच्च शक्ति के विभिन्न पहलू हैं।
राधा-कृष्ण का संबंध
राधा और श्रीकृष्ण के बीच का प्रेम इस कविता में कई बार दर्शाया गया है। राधा को श्रीकृष्ण की प्रमुख सखी माना जाता है, और उनका प्रेम केवल भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक है। राधा और कृष्ण का संबंध भक्त और भगवान के बीच असीम प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। राधा के बिना श्रीकृष्ण की लीला अधूरी मानी जाती है।
बाल लीलाओं का महत्व
श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ, जैसे कि मक्खन चुराना, गोपियों के साथ खेलना, और यमुना के तट पर उनकी क्रीड़ाएँ, केवल मनोरंजन नहीं थीं, बल्कि उनमें गहरे आध्यात्मिक संदेश छिपे हुए थे।
- मक्खन चुराना: यह श्रीकृष्ण की नटखटता का प्रतीक है, लेकिन साथ ही यह संदेश भी देता है कि भगवान अपने भक्तों के मन रूपी मक्खन को चुरा लेते हैं।
- गोपियों के साथ रास: यह भक्ति और समर्पण का प्रतीक है, जहाँ गोपियाँ श्रीकृष्ण की बांसुरी की ध्वनि से आकर्षित होकर उनकी ओर खिंचती चली आती हैं।
विष्णु के अवतारों का उल्लेख
इस कविता में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों का उल्लेख किया गया है जैसे:
- वामन अवतार: भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और संपूर्ण सृष्टि को अपने तीन पगों में नाप लिया।
- नरसिंह अवतार: जब भक्त प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने आधे मनुष्य और आधे सिंह का रूप धारण किया और हिरण्यकश्यप का वध किया।
- मच्छ-कच्छ अवतार: यह समुद्र मंथन और सृष्टि की रक्षा से संबंधित हैं। भगवान विष्णु ने मच्छ और कच्छप रूप में समुद्र से अमृत और सृष्टि के स्थायित्व के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कलियुग और भक्ति का महत्व
इस कविता में यह भी दर्शाया गया है कि कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति ही मोक्ष का मार्ग है। जब पाप और अधर्म अपने चरम पर होते हैं, तब भगवान का नाम ही पवित्रता और मुक्ति का साधन है।
- कलिमल हरण: भगवान कलियुग के पापों का नाश करने वाले हैं। उनका स्मरण, उनके नाम का जप, और उनकी लीलाओं का चिंतन भक्तों को पापों से मुक्त कर सकता है।
गुरु का महत्व
यह कविता गुरु के प्रति आदर और समर्पण की भावना को भी प्रकट करती है।
- प्रथम गुरु के चरण बन्दों: इस पंक्ति से यह स्पष्ट होता है कि आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत गुरु के चरणों में नमन से होती है। गुरु ही ज्ञान के सच्चे स्रोत हैं, जो हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ईश्वर के सच्चे स्वरूप की ओर ले जाते हैं। गुरु के बिना भगवान तक पहुँच पाना कठिन है।
श्रीकृष्ण और श्रीराम की समानता
कविता में बार-बार श्रीकृष्ण और श्रीराम, दोनों के गुणों का समान रूप से वर्णन किया गया है।
- श्रीराम रघुवर: भगवान राम को भी आदर्श पुरुषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है, जो सत्य और धर्म के पालन के लिए जाने जाते हैं।
- श्रीकृष्ण: वहीं भगवान श्रीकृष्ण को उनके प्रेम, करुणा और योगमाया का प्रतीक माना गया है। इन दोनों देवताओं के गुण भक्तों के जीवन में आदर्श स्थापित करते हैं।
जगत का स्वामी
भगवान श्रीकृष्ण को जगन्नाथ और जगदीश कहा गया है, जो इस बात का प्रतीक है कि वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड के पालक और रक्षक हैं। उनका नाम और उनकी महिमा केवल पृथ्वी तक सीमित नहीं है, बल्कि वे समस्त लोकों के स्वामी हैं।
अंत में कवि का समर्पण
कविता के अंत में कवि ने स्वयं को “कवित्तदास” और “कविदत्त दास” के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसका अर्थ है कि कवि भगवान के दास के रूप में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देता है। यह अंतिम चरण भक्तों की भक्ति और समर्पण को दर्शाता है, जहाँ व्यक्ति अपने सभी कर्म, विचार और भावनाएँ भगवान के चरणों में अर्पित करता है।