- – यह कविता मीरा की भक्ति और प्रेम को दर्शाती है, जो कान्हा (कृष्ण) की दीवानी थी और अपने प्रेम में पूरी तरह खो गई थी।
- – मीरा ने सांसारिक सुखों और दुनियावी कामों को त्याग कर केवल कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई।
- – प्रेम के पथ पर चलते हुए मीरा ने अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों और बदनामी को भी सहन किया।
- – मीरा ने अपने स्वप्नों और सांसारिक सुखों को छोड़कर कृष्ण के प्रेम को सर्वोपरि माना।
- – कविता में मीरा के पावन प्रेम को राधा-रुक्मण जैसे अन्य भक्तों से भी श्रेष्ठ बताया गया है।
- – समग्र रूप से यह रचना भक्ति, त्याग और प्रेम की महत्ता को उजागर करती है।

कान्हा की दीवानी,
मीरा हो गई बदनाम।।
तर्ज – सांसो की माला पे।
श्लोक – राम तने रंग राची मैं तो,
साँवरिया रंग राची,
कोई कहे मीरा बाँवरी,
कोई कहे मदमाती।
कान्हा की दीवानी,
मीरा हो गई बदनाम,
कान्हा की दीवानी,
दीवानी कान्हा की,
मीरा हो गई बदनाम,
अपने तन की सुध बुध भूली,
भूले जग के काम,
कान्हा की दिवानी,
मीरा हो गई बदनाम।।
प्रेम के पथ पर,
प्रेम पुजारन,
पी का प्यार लिए,
पी का प्यार लिए,
श्याम की माला जपते जपते,
पि गई जहर का जाम,
कान्हा की दिवानी,
मीरा हो गई बदनाम।।
रंग पिया के,
रंग ली चुनरिया,
ले इकतारा चली,
ले इकतारा चली,
रानी ये भी ना जानी,
कब दिन हुई कब शाम,
कान्हा की दिवानी,
मीरा हो गई बदनाम।।
स्वप्न सुनहले,
महल दो महले,
खुशियों का संसार,
खुशियों का संसार,
‘लख्खा’ त्याग दिया मीरा ने,
सुख का सब आराम,
कान्हा की दिवानी,
मीरा हो गई बदनाम।।
प्रेम जो देखा,
पावन उसका,
मिल गए मदन गोपाल,
मिल गए मदन गोपाल,
राधा रुक्मण को ना मिला जो,
वो मिला सम्मान,
कान्हा की दिवानी,
मीरा हो गई बदनाम।।
कान्हा की दीवानी,
मीरा हो गई बदनाम,
कान्हा की दीवानी,
दीवानी कान्हा की,
मीरा हो गई बदनाम,
अपने तन की सुध बुध भूली,
भूले जग के काम,
कान्हा की दिवानी,
मीरा हो गई बदनाम।।
