भजन

कन्हैया को एक रोज रो के पुकारा भजन लिरिक्स – Kanhaiya Ko Ek Roj Ro Ke Pukara Bhajan Lyrics – Hinduism FAQ

धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now
  • – यह कविता कन्हैया (भगवान कृष्ण) से करुणा और कृपा की प्रार्थना है, जिसमें कवि अपने दुख और निराशा को व्यक्त करता है।
  • – कवि अपने जीवन में निरंतर संघर्ष और विरह की आग से जूझ रहा है, और भगवान से मार्गदर्शन और सहारा मांगता है।
  • – कविता में भक्ति, विश्वास और आत्मसमर्पण की भावना स्पष्ट है, जहाँ कवि केवल भगवान की रहमत पर ही निर्भर है।
  • – कवि अपने जीवन के कठिन दौर में भगवान से शक्ति, साहस और जीवन को सँवारने की विनती करता है।
  • – जीवन के चक्र और समय की गति के बीच, कवि चाहता है कि उसका जीवन व्यर्थ न जाए और भगवान उसे सही रास्ता दिखाएं।
  • – अंत में, कवि बार-बार भगवान से पूछता है कि वह कब कृपा पात्र बनेगा और कब उसे उनकी कृपा प्राप्त होगी।

Thumbnail for kanhaiya-ko-ek-roj-ro-ke-pukara-lyrics

कन्हैया को एक रोज रो के पुकारा,
कृपा पात्र किस दिन बनूँगा तुम्हारा।।



मेरे साथ होता है प्रतिक्षण तमाशा,

है आंखों में आंसू और दिल में निराशा,
कई जन्मों से पथ पे पलकें बिछाई,
ना पूरी हुई एक भी दिल की आशा,
सुलगती विरह की करो आग ठंडी,
भटकती लहर को दिखा दो किनारा,
कन्हैंया को एक रोज रो के पुकारा,
कृपा पात्र किस दिन बनूँगा तुम्हारा।।



कभी बांसुरी लेके इस तट पे आओ,

कभी बनके घन मन के अंबर पे छाओ,
बुझा है मेरे मन की कुटिया का दीपक,
कभी करुणा दृष्टि से इसको जलाओ,
बता दो कभी अपने श्री मुख कमल से,
कहाँ खोजने जाऊँ अब और सहारा,
कन्हैंया को एक रोज रो के पुकारा,
कृपा पात्र किस दिन बनूँगा तुम्हारा।।

यह भी जानें:  जय हो जय हो तुम्हारी जी बजरंग बली - भजन (Jai Ho Jai Ho Tumhari Ji Bajrangbali)


कुछ है जो हुस्न पे नाज करते हैं,

कुछ है जो दौलत पे नाज करते हैं,
मगर हम गुनहगार बन्दे है ऐ कन्हैया,
सिर्फ तेरी रहमत पे नाज करते है।



कभी मेरी बिगड़ी बनाने को आओ,

कभी सोये भाग जगाने तो आओ,
कभी मन की निर्बलता को बक्शों शक्ति,
कभी दिल का साहस बढ़ाने तो आओ,
कभी चरण अपने धुलाओ तो जानू,
बहा दी है नैनों से जमुना की धारा,
कन्हैंया को एक रोज रो के पुकारा,
कृपा पात्र किस दिन बनूँगा तुम्हारा।।



लटकते हुए बीत जाए ना जीवन,

भटकते हुए बीत जाए ना जीवन,
चौरासी के चक्कर में हे चक्रधारी,
भटकते हुए बीत जाए ना जीवन,
संभालो ये जीवन ऐ जीवन के मालिक,
मेरा कुछ नहीं आप जीते मैं हारा,
कन्हैंया को एक रोज रो के पुकारा,
कृपा पात्र किस दिन बनूँगा तुम्हारा।।



कहो और कब तक रिझाता रहूं मैं,

बदल कर नए वेश आता रहूं मैं,
कथा वेदना की सुनते सुनाते,
हरे घाव दिल के दिखाता रहूं मैं,
ना मरहम लगाओ ना हंस कर निहारो,
कहो किस तरह होगा अपना गुजारा,
कन्हैंया को एक रोज रो के पुकारा,
कृपा पात्र किस दिन बनूँगा तुम्हारा।।



कन्हैया को एक रोज रो के पुकारा,

कृपा पात्र किस दिन बनूँगा तुम्हारा।।

स्वर – प्रभूलिन श्री विनोद जी अग्रवाल।
प्रेषक – दीपक सेन जी।


अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

You may also like