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- – इस कविता में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने पुरुषार्थ (मेहनत और प्रयास) पर विश्वास करता है, वही सफल होता है।
- – साधन, मंत्र, जंतर, उद्यम और बल जैसे प्रयासों को अपनाना चाहिए, लेकिन अंततः सफलता पुरुषार्थ पर निर्भर करती है।
- – जो कुछ भी लिखा गया है, उसे कोई मिटा नहीं सकता, अर्थात कर्म और प्रयास का महत्व स्थायी होता है।
- – दुख-सुख, लाभ-अलाभ को समझकर जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए और निराशा में नहीं डूबना चाहिए।
- – सूरदास और स्वामी करुणामय के नाम लेकर भक्ति और श्रद्धा की भी महत्ता बताई गई है।
- – मुख्य संदेश है कि केवल पुरुषार्थ पर भरोसा करना चाहिए, अन्य बातें झूठी और अस्थायी हैं।

करी गोपाल की सब होई,
जो अपनी पुरुषारथ मानत,
अति झूठो है सोई।।
साधन मंत्र जंत्र उद्यम बल,
ये सब डारौ धोइ,
जो कछु लिखि राखी नंदनंदन,
मेटि सके नहीं कोई,
करी गोपाल की सब होइ,
जो अपनी पुरुषारथ मानत,
अति झूठो है सोई।।
दुख सुख लाभ अलाभ समुझि तुम,
कतहिं मरत हौ रोइ,
सूरदास स्वामी करुनामय,
स्याम-चरन मन पोई,
करी गोपाल की सब होइ,
जो अपनी पुरुषारथ मानत,
अति झूठो है सोई।।
करी गोपाल की सब होई,
जो अपनी पुरुषारथ मानत,
अति झूठो है सोई।।
स्वर – श्री जगदीश नारायण।
प्रेषक – ऋषि कुमार विजयवर्गीय।
7000073009
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