- – यह भजन खाटू धाम की पवित्र मिट्टी और प्रभु के प्रति गहरी भक्ति को व्यक्त करता है, जिसमें हर कण में प्रभु का वास महसूस होता है।
- – भजन में बताया गया है कि प्रभु की कृपा से दुखों का नाश होता है और जीवन में खुशियां आती हैं।
- – खाटू धाम की मिट्टी को संजीवनी बूटी के समान माना गया है, जो सभी को पार लगाती है और जीवन में विश्वास जगाती है।
- – लेखक ने अपनी आत्मा को प्रभु की पवित्र मिट्टी में समर्पित करने की इच्छा जताई है, ताकि वे सदैव प्रभु के चरणों में शांति पा सकें।
- – भजन में त्योहारों और जीवन के सुख-दुख में प्रभु की उपस्थिति और आशीर्वाद का वर्णन किया गया है।
- – यह रचना श्री नरेश “नरसी” जी द्वारा लिखी और गाई गई है, तथा प्रदीप सिंघल द्वारा भजन के रूप में प्रस्तुत की गई है।
कण कण में तेरा वास प्रभु,
जो करे दुखों का नाश प्रभु,
दुनिया भर की खुशियां,
मेरे पास आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई
खाटू धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई,
कण कण में तेरा वास प्रभु।।
कोई नहीं दिख्यो अपणो जद,
तू ही नजर मनै आयो,
खाटू नगरी आ बैठयो,
जब मेरो जी घबरायो,
पैर धरयो खाटू में,
सांस मैं सांस आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई।।
खाटू की माटी का हमने,
देखा अजब नजारा,
क्या निर्धन क्या सेठ सभी को,
इसने पार उतारा,
दुनिया सारी करके,
ये विश्वास आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई।।
रेत नहीं मामूली ये तो,
है संजीवन बूटी,
मौज करूं दिन सांवरा,
सोऊं तान के खूंटी,
होली और दीवाली,
बारहों मास आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई।।
तेरी इस पावन मिट्टी में,
मैं मिट्टी हो जाऊं,
सदा सदा के लिए तेरे,
इन चरणों में सो जाऊं,
‘नरसी’ के होंठो पे इतनी,
प्यास आ गई,
खाटू धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई।।
कण कण में तेरा वास प्रभु,
जो करे दुखों का नाश प्रभु,
दुनिया भर की खुशियां,
मेरे पास आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई
खाटू धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई,
कण कण में तेरा वास प्रभु।।
– लेखक एवं गायक –
श्री नरेश ” नरसी ” जी ( फतेहाबाद )
– भजन प्रेषक –
प्रदीप सिंघल (‘जीन्द’ वाले)