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कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,
री लीला गुदवाय लो प्यारी ।

दृगन पै लिख दे दीनदयाल
नासिका पै लिख दे नन्दलाल
कपोलन पै लिख दे गोपाल
माथे लिख दे, मोहन लाल
श्रवनन पै लिख सांवरो, अधरन आनंदकंद,
ठोड़ी पै ठाकुर लिखो, गले में गोकुलचन्द ।
छाती पै लिख छैल, बाँहन पै लिख दे बनवारी ।
कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,
री लीला गुदवाय लो प्यारी ।

हाथन पै हलधर जी को भईया लिख ,
संग संग तू आनंद-करैया लिख
उंगरिन पै प्यारो कृष्ण कन्हैया लिख
कहूं कहूं वृन्दावन बंसी को बजैया लिख
पेट पै लिख दे परमानन्द
नाभि पै लिख दे तू नन्दनन्द
पिण्डरी पै लिख दे घनश्याम
चरण पै चितचोर को नाम
रोम-रोम में लिख दे मेरो सांवरो गिरिधारी ।
कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,
री लीला गुदवाय लो प्यारी ।

सखी देखत सब रह गयी कौन प्रेम को फंद
बिसे बिस कोई और नहीं ये छलिया ढोटा नन्द
अंगिया में देखि कसी मुरली परम रसाल
प्यारो प्यारो कह कह हिय लायो नंदलाल ।
कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,
री लीला गुदवाय लो प्यारी ।

कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि – गहन अर्थ और गूढ़ विश्लेषण

यह भजन न केवल भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान है, बल्कि यह भक्ति की उस उच्च अवस्था का वर्णन करता है, जहाँ भक्त अपने अस्तित्व को भगवान की उपस्थिति से भर लेता है। हर पंक्ति में एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति और कृष्ण-भक्ति का अनूठा संदेश छुपा हुआ है। इस भजन के हर चरण को गहराई से समझते हैं।


मुख्य भाव: नन्दलाल और उनकी लीला

“कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि, री लीला गुदवाय लो प्यारी।”
यह पंक्ति आत्मा और शरीर के उस दिव्य परिवर्तन की बात करती है, जो भगवान के प्रति अनन्य भक्ति और प्रेम से होता है।

  • “नन्दलाल”: यह नाम केवल श्रीकृष्ण को संदर्भित नहीं करता, बल्कि उस कृष्ण को दर्शाता है जो अपने बाल रूप में अपने भक्तों के जीवन को आनंदमय बनाते हैं।
  • “लीला गुदवाना”: इसका अर्थ है भगवान की लीलाओं को अपने जीवन का हिस्सा बना लेना। यह आत्मा का ऐसा गहन प्रेम है, जहाँ भक्त हर सांस, हर कर्म में केवल भगवान को देखता है।

दृगन पै लिख दे दीनदयाल

आध्यात्मिक अर्थ:
आँखें न केवल दृष्टि का माध्यम हैं, बल्कि आत्मा का दर्पण भी हैं। “दीनदयाल” का लिखा होना यह बताता है कि भक्त की दृष्टि अब केवल करुणा, दया और प्रेम को देखती है।

  • भक्ति का संदर्भ: यह भगवान की उस कृपा की ओर इशारा करता है, जहाँ भक्त दूसरों के दुख को भगवान की दृष्टि से देखता है और सेवा का भाव अपनाता है।
  • गहराई: आँखें केवल बाहरी दुनिया को देखने का माध्यम नहीं हैं; यह ईश्वर के गुणों को आत्मसात करने का साधन बन जाती हैं।

नासिका पै लिख दे नन्दलाल

आध्यात्मिक संदेश:
नाक सांस लेने का माध्यम है, और सांस का संबंध जीवन से है। “नन्दलाल” का लिखा होना यह दर्शाता है कि जीवन के हर पल में श्रीकृष्ण का नाम समाहित हो।

  • शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टि से: हर सांस कृष्णमय हो, यह साधना का उच्चतम स्तर है।
  • संदेश: यह शुद्धता और ईश्वर के प्रति समर्पण की अनुभूति है। भक्त हर सांस में भगवान की उपस्थिति को महसूस करता है।

कपोलन पै लिख दे गोपाल

गालों पर “गोपाल” लिखने का गूढ़ अर्थ:
गाल चेहरे की वह जगह हैं, जो हावभाव व्यक्त करते हैं। “गोपाल” लिखने का मतलब है कि भगवान के प्रेम में हर हावभाव, हर अनुभूति केवल ईश्वर की ओर केंद्रित हो।

  • गोपाल का प्रतीक: “गोपाल” न केवल गायों के रक्षक हैं, बल्कि यह भक्तों के जीवन के रक्षक भी हैं।
  • अभिव्यक्ति: भक्त के चेहरे पर वह तेज आता है, जो भगवान की स्मृति और उनके प्रेम से उत्पन्न होता है।

माथे लिख दे, मोहन लाल

मस्तिष्क और विचारों का केंद्र:
माथे पर “मोहन लाल” लिखना यह दर्शाता है कि भक्त के विचार, चिंतन और ध्यान केवल श्रीकृष्ण पर केंद्रित हैं।

  • मोहन का अर्थ: वह जो मोह लेते हैं। यहाँ यह उस आंतरिक स्थिति को दर्शाता है जहाँ मनुष्य का मन, बुद्धि और अहंकार भगवान में विलीन हो जाता है।
  • व्यावहारिक संदर्भ: भक्त के हर निर्णय और हर विचार में भगवान का मार्गदर्शन होता है।

श्रवनन पै लिख सांवरो, अधरन आनंदकंद

श्रवण (कान):

  • कान वह माध्यम हैं, जिनसे भक्त भगवान की कथाओं और लीलाओं को सुनता है। “सांवरो” का लिखा होना यह दर्शाता है कि कान केवल भगवान की मधुर वाणी और लीलाओं को सुनने के लिए समर्पित हैं।
  • अर्थ का विस्तार: यह प्रतीकात्मक है कि भक्त के लिए संसार की अशुद्ध ध्वनियों का कोई स्थान नहीं, केवल कृष्ण की लीलाएं उसके कानों में गूंजती हैं।

अधर (होठ):

  • “आनंदकंद” का लिखा होना यह दर्शाता है कि भक्त के होंठ केवल भगवान का नाम लेने और उनकी महिमा का गान करने के लिए बने हैं।
  • भाव: श्रीकृष्ण का नाम जपना और उनकी लीलाओं का वर्णन करना आत्मा को आनंदमय बनाता है।

ठोड़ी पै ठाकुर लिखो, गले में गोकुलचन्द

ठोड़ी:

  • “ठाकुर” का लिखा होना यह बताता है कि भक्त भगवान को अपना स्वामी मानता है। ठोड़ी वह स्थान है जो चेहरे की गरिमा बढ़ाती है, और यहाँ ठाकुर का लिखा होना समर्पण का संकेत है।

गले:

  • “गोकुलचन्द” का लिखा होना यह दर्शाता है कि भगवान का प्रेम और उनकी मधुर छवि भक्त के जीवन का गहना है।

छाती पै लिख छैल, बाँहन पै लिख दे बनवारी

छाती पर “छैल”:

  • यह भाव है कि हृदय में भगवान के प्रति प्रेम और आकर्षण हमेशा बना रहता है। “छैल” भगवान की सौम्यता और उनके रमणीय स्वभाव का प्रतीक है।

बाँहों पर “बनवारी”:

  • बाँहें कार्य का माध्यम हैं। “बनवारी” का लिखा होना इस बात का प्रतीक है कि भक्त का हर कार्य श्रीकृष्ण के लिए समर्पित है।

हाथन पै हलधर जी को भईया लिख

गहन संदेश:
हाथ कर्म का प्रतीक हैं। “हलधर जी का भईया” का लिखा होना यह बताता है कि भक्त का हर कर्म भगवान की इच्छा के अनुसार होता है।


पेट पै लिख दे परमानन्द, नाभि पै लिख दे तू नन्दनन्द

पेट पर “परमानन्द”:
पेट जीवन का केंद्र है। “परमानन्द” का लिखा होना यह दर्शाता है कि भक्त की हर भूख केवल भगवान के नाम और उनकी भक्ति से शांत होती है।

नाभि पर “नन्दनन्द”:
नाभि सृष्टि और जीवन का मूल है। “नन्दनन्द” का लिखा होना यह दर्शाता है कि जीवन का हर आधार श्रीकृष्ण से है।


पिण्डरी पै लिख दे घनश्याम, चरण पै चितचोर को नाम

पिंडरी पर “घनश्याम”:
पिंडरी (जांघ) स्थायित्व और गति का प्रतीक है। “घनश्याम” का लिखा होना यह दर्शाता है कि भक्त का हर कदम भगवान के मार्ग पर है।

चरण पर “चितचोर”:
चरण उस मार्ग का प्रतीक हैं, जिस पर भक्त चलता है। “चितचोर” का लिखा होना यह बताता है कि भक्त का हृदय भगवान के प्रेम में बंध चुका है।


रोम-रोम में लिख दे मेरो सांवरो गिरिधारी

गहन भक्ति का शिखर:
यह पंक्ति भक्त की उस अवस्था को दर्शाती है, जहाँ उसका हर रोम, हर कोशिका भगवान के प्रेम और उनके नाम में समाहित हो चुकी है।

  • “सांवरो गिरिधारी”: यह भगवान की उस छवि का वर्णन है, जो संपूर्ण सृष्टि को संभालने और भक्तों को आनंदित करने में सक्षम है।

भावनात्मक और आध्यात्मिक सार

यह भजन भक्त की आत्मा के उस उत्कर्ष को दर्शाता है, जहाँ वह अपने शरीर, मन और आत्मा को भगवान की सेवा में समर्पित कर देता है। हर पंक्ति यह बताती है कि भक्त का हर अंग भगवान का मंदिर बन चुका है।

आगे के गहन संदर्भ और अर्थ पर चर्चा जारी रख सकता हूँ, यदि आप चाहें!

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