- – कविता में केवल भगवान की दया और करुणा की प्रार्थना की गई है, जो सबसे महत्वपूर्ण है।
- – धन, ऐश-ओ-आराम, भौतिक सुखों की कोई इच्छा नहीं है, केवल दयावान की कृपा चाहिए।
- – जीवन में दुख और कष्ट सहने को तैयार हैं, बस ईश्वर की मेहरबानी बनी रहे।
- – भव्यता या आलीशान मकान की चाह नहीं, साधारण जीवन में भी ईश्वर की दया पर्याप्त है।
- – हर समय और हर परिस्थिति में ईश्वर का नाम जपने और उसकी भक्ति में मग्न रहने की बात कही गई है।
- – समग्र रूप से यह कविता भक्ति, समर्पण और ईश्वर की अनुकंपा पर आधारित है।
कुछ नहीं करुणानिधान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए,
कुछ नहीं करुणानिधान चाहिए।।
तर्ज – अच्छा सिला दिया तूने।
दुनिया सताए तो सताने दीजिए,
दिल भी दुखाए तो दुखाने दीजिए,
मेहरबा तू ही मेहरबान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए,
कुछ नही करुणानिधान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए।।
धन की ना धुन कभी मन में समाए,
जिसके नशे में तेरा नाम भूल जाए,
ऐश का ना कोई भी सामान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए,
कुछ नही करुणानिधान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए।।
ख़ाक भी रमाएंगे रमानी जो पड़े,
झोपड़ी में जिंदगी बितानी पड़े,
कोठी बंगला ना मकान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए,
कुछ नही करुणानिधान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए।।
क्या कहे जो तेरा नाम ना जपें,
हो के मगन सुबह शाम ना जपें,
ऐसी ना बेमोल को जबान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए,
कुछ नही करुणानिधान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए।।
कुछ नहीं करुणानिधान चाहिए,
एक तेरी दया दयावान चाहिए,
कुछ नहीं करुणानिधान चाहिए।।