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कूष्मांडा आरती in Hindi/Sanskrit

कूष्मांडा जय जग सुखदानी ।
मुझ पर दया करो महारानी ॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली ।
शाकंबरी मां भोली भाली ॥

लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे ॥

भीमा पर्वत पर है डेरा ।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा ॥

सबकी सुनती हो जगदंबे ।
सुख पहुंचती हो मां अंबे ॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा ।
पूर्ण कर दो मेरी आशा ॥

मां के मन में ममता भारी ।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी ॥

तेरे दर पर किया है डेरा ।
दूर करो माँ संकट मेरा ॥

मेरे कारज पूरे कर दो ।
मेरे तुम भंडारे भर दो ॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए ।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए ॥

Kushmanda Aarti in English

Kushmanda Jai Jag Sukhdaani.
Mujh par daya karo Maharani.
Pingla Jwalamukhi Nirali.
Shakambari Maa Bholi Bhali.

Lakhon naam nirale tere.
Bhakt kai matwale tere.

Bheema Parvat par hai dera.
Sweekaro pranam ye mera.

Sabki sunti ho Jagdambe.
Sukh pahuchti ho Maa Ambe.

Tere darshan ka main pyasa.
Poorn kar do meri asha.

Maa ke man mein mamta bhaari.
Kyon na sunegi arj hamaari.

Tere dar par kiya hai dera.
Door karo Maa sankat mera.

Mere karaj poore kar do.
Mere tum bhandare bhar do.

Tera daas tujhe hi dhyaaye.
Bhakt tere dar sheesh jhukaaye.

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कूष्मांडा आरती सम्पूर्ण अर्थ एवं व्याख्या

कूष्मांडा जय जग सुखदानी

इस पंक्ति में माँ कूष्मांडा की महिमा का बखान किया गया है। उन्हें ‘सुखदानी’ अर्थात संसार को सुख देने वाली देवी के रूप में संबोधित किया गया है।

मुझ पर दया करो महारानी

यहाँ भक्त माँ कूष्मांडा से करुणा की याचना कर रहा है, उन्हें ‘महारानी’ कहकर संबोधित करते हुए कृपा की प्रार्थना कर रहा है। यह बताता है कि भक्त की श्रद्धा असीम है और वह उनकी दया से अपने कष्टों का निवारण चाहता है।

पिगंला ज्वालामुखी निराली

इस पंक्ति में माँ के दो रूपों का उल्लेख है – ‘पिगंला’ और ‘ज्वालामुखी’। पिगंला का अर्थ है वह जो अत्यधिक ऊर्जा और शक्ति से युक्त हो। ज्वालामुखी देवी का रूप अग्नि जैसा तेजस्वी और भयंकर है। दोनों रूपों में माँ कूष्मांडा की विशिष्टता और अनोखापन दर्शाया गया है।

शाकंबरी मां भोली भाली

‘शाकंबरी’ देवी वह हैं जो भक्तों को फल-फूल और शाक-सब्जी से पोषण प्रदान करती हैं। ‘भोली भाली’ शब्द माँ की सरलता और शुद्धता का प्रतीक है, जिससे वह अपने भक्तों के लिए हमेशा सहज और सुलभ रहती हैं।

लाखों नाम निराले तेरे

इस पंक्ति में माँ के अनगिनत नामों की महिमा बताई गई है। उनका हर नाम उनकी विशेषताओं को दर्शाता है। उनके भक्त हर नाम को श्रद्धा से लेते हैं और उनके इन रूपों से प्रेरित होते हैं।

भक्त कई मतवाले तेरे

माँ के भक्तों की भक्ति में ऐसा उत्साह है कि वे उनके गुणगान में मग्न रहते हैं। यह पंक्ति उन भक्तों की आस्था को प्रकट करती है, जो माँ की भक्ति में डूबे रहते हैं।

भीमा पर्वत पर है डेरा

यहाँ ‘भीमा पर्वत’ का उल्लेख किया गया है, जो देवी के निवास स्थान का प्रतीक है। यह पंक्ति बताती है कि माँ का निवास पवित्र पर्वतों पर है और वहाँ से वह संसार की समस्त गतिविधियों का संचालन करती हैं।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा

भक्त अपने प्रणाम की स्वीकृति माँग रहा है। यह विनम्रता और श्रद्धा का प्रतीक है, जहाँ भक्त अपनी भक्ति माँ के चरणों में अर्पित कर रहा है और उनसे कृपा की याचना कर रहा है।

सबकी सुनती हो जगदंबे

माँ जगदंबे का अर्थ है संपूर्ण ब्रह्मांड की माँ। यहाँ भक्त विश्वास व्यक्त कर रहा है कि माँ जगदंबे सभी की प्रार्थनाओं को सुनती हैं और उन पर ध्यान देती हैं।

सुख पहुंचती हो मां अंबे

यह पंक्ति माँ अंबे की करुणा और दया का वर्णन करती है। भक्त विश्वास करता है कि माँ अंबे सभी को सुख और शांति प्रदान करती हैं।

तेरे दर्शन का मैं प्यासा

भक्त माँ के दर्शन की तीव्र इच्छा व्यक्त कर रहा है। यह पंक्ति उसकी आस्था और भक्ति की गहराई को दर्शाती है, जहाँ वह माँ के दर्शनों की प्यास से व्याकुल है।

पूर्ण कर दो मेरी आशा

यहाँ भक्त माँ से अपनी आशाओं की पूर्ति की प्रार्थना कर रहा है। वह चाहता है कि माँ उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी करें।

मां के मन में ममता भारी

इस पंक्ति में माँ की ममता का बखान है। भक्त का विश्वास है कि माँ के हृदय में असीम ममता है, और वह अपनी संतान की हर पीड़ा को समझती हैं।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी

यहाँ भक्त विश्वास व्यक्त कर रहा है कि माँ उसकी प्रार्थनाओं को अवश्य सुनेगी, क्योंकि माँ का हृदय दया और ममता से भरा हुआ है।

तेरे दर पर किया है डेरा

इस पंक्ति में भक्त अपनी भक्ति और निष्ठा का प्रदर्शन करता है। ‘डेरा’ करने का मतलब है, भक्त ने माँ के चरणों में अपना स्थान बना लिया है और वह कहीं और नहीं जाना चाहता। उसका संपूर्ण जीवन माँ के प्रति समर्पित है, और वह उनसे ही अपने जीवन के हर पहलू का समाधान चाहता है।

दूर करो माँ संकट मेरा

यहाँ भक्त माँ कूष्मांडा से अपने सभी संकटों और समस्याओं को दूर करने की प्रार्थना करता है। वह आश्वस्त है कि माँ की कृपा से उसके जीवन के समस्त संकट समाप्त हो जाएंगे और वह सुख-शांति का अनुभव करेगा।

मेरे कारज पूरे कर दो

यह पंक्ति भक्त की मनोकामनाओं और जीवन के कार्यों को सफल बनाने की प्रार्थना है। भक्त माँ से निवेदन करता है कि वे उसके सभी कार्यों को पूर्ण करें और उसे सफलता प्रदान करें।

मेरे तुम भंडारे भर दो

यहाँ भक्त माँ से समृद्धि और धन-धान्य की याचना कर रहा है। ‘भंडारे भरने’ का तात्पर्य यह है कि माँ उसके जीवन में हर प्रकार की खुशहाली और संपन्नता प्रदान करें, ताकि उसका जीवन सुखमय हो सके।

तेरा दास तुझे ही ध्याए

इस पंक्ति में भक्त स्वयं को माँ का दास बताता है। ‘दास’ शब्द यहाँ भक्त की पूर्ण निष्ठा और समर्पण को दर्शाता है। वह कहता है कि उसकी दिन-रात की एकमात्र साधना माँ कूष्मांडा का ध्यान करना है और वह हर समय उनकी भक्ति में लीन रहता है।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए

यह अंतिम पंक्ति माँ के प्रति भक्त के पूर्ण समर्पण और श्रद्धा को दर्शाती है। ‘शीश झुकाने’ का अर्थ है कि भक्त माँ के आगे अपनी सम्पूर्ण अहंकार और स्वार्थ का त्याग कर उन्हें प्रणाम करता है। यह पंक्ति भक्त की विनम्रता और माँ के प्रति उसकी गहरी आस्था को प्रकट करती है।


इस पूरे स्तोत्र में माँ कूष्मांडा की महिमा का बखान है और भक्त की गहरी श्रद्धा और आस्था को दर्शाया गया है। भक्त माँ के अनंत रूपों की प्रशंसा करते हुए उनसे अपने जीवन के संकटों को दूर करने और उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान करने की प्रार्थना करता है। माँ का हर रूप, हर नाम उनकी अद्वितीय शक्ति और करुणा का प्रतीक है, जो भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है और उन्हें जीवन के हर कष्ट से मुक्ति दिलाता है।

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