हंसरै में शिर पातु
कूष्माण्डे भवनाशिनीम् ।
हसलकरीं नेत्रेच,
हसरौश्च ललाटकम् ॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे,
वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी
इन्द्राणी दक्षिणे मम ।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव
कूं बीजं सर्वदावतु ॥
कूष्मांडा देवी कवच
यह श्लोक देवी चामुंडा या दुर्गा की स्तुति का एक अंश है, जिसे विशेष रूप से तंत्रिक पूजा में प्रयोग किया जाता है। इसमें देवी को विभिन्न दिशाओं और शरीर के अंगों की रक्षा करने के लिए आह्वान किया गया है। इस श्लोक का विस्तार से अर्थ इस प्रकार है:
हंसरै में शिर पातु, कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
- इस पंक्ति में कहा गया है कि “हंसरै” (हं बीज मंत्र के साथ) देवी हमारे सिर की रक्षा करें और “कूष्माण्डे” (कूष्माण्डी देवी) सभी संकटों को नष्ट करें।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
- यहां “हसलकरीं” (हं बीज मंत्र के साथ) देवी हमारे नेत्रों की रक्षा करें और “हसरौ” (हं बीज मंत्र के साथ) हमारे ललाट (माथे) की रक्षा करें।
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा, पूर्वे पातु वैष्णवी, इन्द्राणी दक्षिणे मम।
- “कौमारी” देवी हमारे सम्पूर्ण शरीर की रक्षा करें, “वाराही” देवी उत्तर दिशा की रक्षा करें, “वैष्णवी” देवी पूर्व दिशा की रक्षा करें, और “इन्द्राणी” देवी दक्षिण दिशा की रक्षा करें।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥
- यह बीज मंत्र (कूं) सभी दिशाओं में, ऊपर और नीचे, चारों ओर से हमें हर समय सभी प्रकार की बाधाओं और संकटों से बचाए रखे।
श्लोक का भावार्थ:
इस श्लोक में साधक देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों का आह्वान करते हुए उनसे प्रार्थना करता है कि वे हर दिशा से उसकी रक्षा करें। इसमें बीज मंत्रों के माध्यम से देवी को बुलाकर उनसे हर अंग और दिशा की सुरक्षा की विनती की गई है। यह श्लोक उन लोगों द्वारा जप किया जाता है जो अपने चारों ओर देवी की दिव्य शक्ति का घेरा बनाना चाहते हैं, ताकि वे नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं से सुरक्षित रहें।
कूष्मांडा देवी कवच महत्व
यह श्लोक तांत्रिक साधना का एक महत्वपूर्ण भाग है और इसमें विभिन्न बीज मंत्रों और देवी के नामों का उच्चारण करके साधक अपने चारों ओर एक सुरक्षा कवच का निर्माण करने की कोशिश करता है। आइए हम इस श्लोक के बारे में और अधिक गहराई से समझें:
श्लोक के घटक:
1. बीज मंत्र:
- हं, हंसरै, हसलकरीं, हसरौ: ये सभी तांत्रिक बीज मंत्र हैं। बीज मंत्र छोटे लेकिन शक्तिशाली शब्द होते हैं जिनमें बड़ी ऊर्जा समाहित होती है। ये मंत्र विशेषतः साधना, ध्यान, और आत्मरक्षा के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- कूं: यह भी एक बीज मंत्र है जो देवी के कवच के निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे देवी चामुंडा का बीज मंत्र माना जाता है।
2. देवियों के विभिन्न रूप:
- कूष्माण्डे भवनाशिनी: कूष्माण्डी देवी दुर्गा का चौथा रूप हैं, जो भवनाशिनी (सभी संकटों का नाश करने वाली) कहलाती हैं। यह देवी भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं और बीमारियों को दूर करने के लिए जानी जाती हैं।
- कौमारी: यह देवी दुर्गा का कुमार कार्तिकेय के रूप में एक अवतार है, जो सभी प्रकार की बुरी शक्तियों और भय को नष्ट करती हैं।
- वाराही: वाराही देवी वराह अवतार की शक्ति हैं। यह देवी उत्तर दिशा की रक्षा करती हैं और साधक को स्थायित्व और सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- वैष्णवी: देवी वैष्णवी भगवान विष्णु की शक्ति हैं और पूर्व दिशा की रक्षा करती हैं। यह देवी समृद्धि और शुभता की प्रतीक हैं।
- इन्द्राणी: यह देवी इन्द्र देव की शक्ति हैं और दक्षिण दिशा की रक्षा करती हैं। यह देवी शक्ति और साहस का प्रतीक हैं।
3. दिशाओं की रक्षा:
- श्लोक में विभिन्न दिशाओं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम) और ऊपर-नीचे, सभी दिशाओं में देवी के संरक्षण की प्रार्थना की गई है।
- यह सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि देवी दुर्गा या चामुंडा समस्त दिशाओं की रक्षा करने वाली देवी हैं। साधक द्वारा बीज मंत्रों और देवी के विभिन्न रूपों का आह्वान करके एक दिव्य सुरक्षा कवच का निर्माण किया जाता है, ताकि साधक हर दिशा से सुरक्षित रहे।
तांत्रिक महत्व:
- यह श्लोक मुख्यतः तांत्रिक साधकों द्वारा प्रयोग किया जाता है, जो साधना करते समय अपने चारों ओर सुरक्षा कवच बनाना चाहते हैं। इस श्लोक का नियमित जाप करने से साधक के मन, शरीर और आत्मा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और वह नकारात्मक ऊर्जा, बुरी आत्माओं, और शत्रुओं से सुरक्षित रहता है।
- इसमें देवी के विभिन्न रूपों और उनके शक्तिशाली बीज मंत्रों का उच्चारण करके एक अदृश्य सुरक्षा कवच का निर्माण किया जाता है, जिसे ‘दिव्य कवच’ कहा जाता है। यह साधक को मानसिक और आत्मिक बल प्रदान करता है।
साधना में उपयोग:
- इस श्लोक का प्रयोग साधना, ध्यान, और आत्मरक्षा के लिए किया जाता है। इसे सही विधि और श्रद्धा के साथ जपने पर देवी की कृपा प्राप्त होती है और साधक का आत्मविश्वास बढ़ता है।
- श्लोक का जाप करते समय साधक को पूर्ण मनोयोग और एकाग्रता के साथ देवी की कृपा और शक्ति का आह्वान करना चाहिए।
इस प्रकार, यह श्लोक देवी की कृपा प्राप्त करने और सभी दिशाओं से सुरक्षा कवच प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।