श्री लक्ष्मी चालीसा in Hindi/Sanskrit
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा,
करो हृदय में वास ।
मनोकामना सिद्घ करि,
परुवहु मेरी आस
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास,
हाथ जोड़ विनती करुं ।
सब विधि करौ सुवास,
जय जननि जगदंबिका ॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही ।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी ।
सब विधि पुरवहु आस हमारी ॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा ।
सबकी तुम ही हो अवलम्बा ॥
तुम ही हो सब घट घट वासी ।
विनती यही हमारी खासी ॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी ।
दीनन की तुम हो हितकारी ॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी ।
कृपा करौ जग जननि भवानी ॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी ।
सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी ।
जगजननी विनती सुन मोरी ॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता ।
संकट हरो हमारी माता ॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो ।
चौदह रत्न सिन्धु में पायो ॥ 10
चौदह रत्न में तुम सुखरासी ।
सेवा कियो प्रभु बनि दासी ॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा ।
रुप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा ।
लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं ।
सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी ।
विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी ।
कहं लौ महिमा कहौं बखानी ॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई ।
मन इच्छित वांछित फल पाई ॥
तजि छल कपट और चतुराई ।
पूजहिं विविध भांति मनलाई ॥
और हाल मैं कहौं बुझाई ।
जो यह पाठ करै मन लाई ॥
ताको कोई कष्ट नोई ।
मन इच्छित पावै फल सोई ॥ 20
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि ।
त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी ॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै ।
ध्यान लगाकर सुनै सुनावै ॥
ताकौ कोई न रोग सतावै ।
पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना ।
अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना ॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै ।
शंका दिल में कभी न लावै ॥
पाठ करावै दिन चालीसा ।
ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै ।
कमी नहीं काहू की आवै ॥
बारह मास करै जो पूजा ।
तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही ।
उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं ॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई ।
लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥ 30
करि विश्वास करै व्रत नेमा ।
होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा ॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी ।
सब में व्यापित हो गुण खानी ॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं ।
तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं ॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै ।
संकट काटि भक्ति मोहि दीजै ॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी ।
दर्शन दजै दशा निहारी ॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी ।
तुमहि अछत दुःख सहते भारी ॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में ।
सब जानत हो अपने मन में ॥
रुप चतुर्भुज करके धारण ।
कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई ।
ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई ॥
Shri Lakshmi Chalisa in English
Dohā
Matu Lakshmi kari krupa,
Karo hriday mein vās.
Manokāmnā siddh kari,
Paruvahu meri ās.
Sorthā
Yahi mor aradās,
Hāth jod vinati karuṁ.
Sab vidhi karau suvas,
Jay Janani Jagadambikā.
Chaupāī
Sindhu sutā main sumiro tohi.
Gyān buddhi vidhā do mohi.
Tum samān nahiṁ koi upkārī.
Sab vidhi puravahu ās hamārī.
Jay Jay Jagat Janani Jagadambā.
Sabki tum hi ho avalambā.
Tum hi ho sab ghat ghat vāsi.
Vinati yahi hamārī khāsi.
Jagjanani jay Sindhu Kumārī.
Dīnan ki tum ho hitkārī.
Vinavauṁ nitya tumhi Mahārānī.
Krupa karau Jag Janani Bhavānī.
Kehi vidhi stuti karauṁ tihārī.
Sudhi lījai aparādh bisārī.
Krupa drishti chitavo mam orī.
Jagjanani vinati sun morī.
Gyān buddhi jay sukh ki dātā.
Sankat haro hamārī mātā.
Kshīr Sindhu jab Vishnu mathāyo.
Chaudah ratna Sindhu mein pāyo.
(10)
Chaudah ratna mein tum sukhrāsī.
Sevā kiyo Prabhu bani dāsī.
Jab jab janm jahan Prabhu līnhā.
Rup badal tahan sevā kīnhā.
Swayam Vishnu jab nar tanu dhārā.
Līnhyo Ayodhyāpurī avatārā.
Tab tum pragat Janakpur māhī.
Sevā kiyo hriday pulakāhī.
Apnāyā tohi antaryāmī.
Vishva vidit tribhuvan ki swāmī.
Tum sam prabal shakti nahiṁ ānī.
Kah lau mahimā kahauṁ bakhānī.
Man kram vachan karai sevkāī.
Man ichhit vānchhit phal pāī.
Taji chal kapat aur chaturāī.
Pujahin vividh bhānti manlāī.
Aur hāl main kahauṁ bujhāī.
Jo yah pāth karai man lāī.
(20)
Tāko koi kasht noi.
Man ichhit pāvai phal soi.
Trāhi Trāhi Jay Dukh Nivārini.
Trividh tāp bhav bandhan hārini.
Jo Chālīsā paḍhai paḍhāvai.
Dhyan lagākar sunai sunāvai.
Tāko koi na rog satāvai.
Putra ādi dhan sampatti pāvai.
Putrahīn aru sampatti hīnā.
Andh badhir kodhī ati dīnā.
Vipra bolāyai kai pāth karāvai.
Shankā dil mein kabhī na lāvai.
Pāth karāvai din Chālīsā.
Tā par krupā karai Gaurīsā.
Sukh sampatti bahut sī pāvai.
Kamī nahiṁ kāhū ki āvai.
(30)
Bārah mās karai jo pūjā.
Tehi sam dhanya aur nahiṁ dūjā.
Pratidin pāth karai man māhī.
Un sam koi jag mein kahuṁ nāhī.
Bahuvidhi kyā main karauṁ baḍāī.
Ley parīkshā dhyān lagāī.
Kari visvās karai vrat nemā.
Hoy siddh upjai ur premā.
Jay Jay Jay Lakshmi Bhavānī.
Sab mein vyāpit ho gun khānī.
Tumharo tej prabal jag māhī.
Tum sam kou dayālu kahuṁ nāhī.
Mohi anāth ki sudhi ab lījai.
Sankat kāṭi bhakti mohi dījai.
Bhool chūk kari kshamā hamārī.
Darshan dijai dashā nihārī.
Bin darshan vyākul adhikārī.
Tumahi achhat dukh sahte bhārī.
Nahi mohī gyān buddhi hai tan mein.
Sab jānat ho apne man mein.
Rup chaturbhuj karke dhāran.
Kasht mor ab karahu nivāran.
Kehi prakār main karauṁ baḍāī.
Gyān buddhi mohī nahiṁ adhikāī.
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श्री लक्ष्मी चालीसा का अर्थ
दोहा
मातु लक्ष्मी करि कृपा,
करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि,
परुवहु मेरी आस॥
इस दोहे में भक्त माँ लक्ष्मी से प्रार्थना करता है कि वे कृपा करके उसके हृदय में निवास करें और उसकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करें। भक्त की आशा है कि माँ लक्ष्मी उसकी सभी मनोकामनाओं को सिद्ध करें।
सोरठा
यही मोर अरदास,
हाथ जोड़ विनती करूं।
सब विधि करौ सुवास,
जय जननि जगदंबिका॥
इस सोरठे में भक्त माँ जगदंबिका से हाथ जोड़कर प्रार्थना करता है कि वे उसकी प्रार्थना सुनें और उसे सुख-समृद्धि प्रदान करें। माँ जगदंबिका की महिमा का गुणगान करते हुए, भक्त उनका आशीर्वाद माँगता है।
चौपाई
सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥
भक्त माँ लक्ष्मी से प्रार्थना करता है कि वे उसे ज्ञान और बुद्धि का वरदान दें। लक्ष्मी माता को सिन्धु कुमारी कहकर, भक्त उन्हें याद करता है और उनसे आशीर्वाद की याचना करता है।
तुम समान नहिं कोई उपकारी।
सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
यहां भक्त कहता है कि माँ लक्ष्मी के समान कोई उपकारी नहीं है। वह माँ से विनती करता है कि वे उसकी सभी इच्छाओं को पूरा करें।
माँ जगदंबिका की महिमा
जय जय जगत जननि जगदम्बा।
सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
इस चौपाई में भक्त माँ जगदम्बा की स्तुति करते हुए कहता है कि माँ ही इस संसार की माता हैं और सबके लिए सहारा हैं। वे ही इस संसार को चलाती हैं।
तुम ही हो सब घट घट वासी।
विनती यही हमारी खासी॥
भक्त माँ से कहता है कि वे सब जगह, हर दिल में निवास करती हैं। भक्त की प्रमुख विनती है कि माँ उसकी सभी इच्छाओं को पूरी करें।
जगजननी जय सिन्धु कुमारी।
दीनन की तुम हो हितकारी॥
माँ लक्ष्मी को सिन्धु कुमारी कहकर पुकारते हुए भक्त कहता है कि वे हमेशा दीन-दुखियों की मदद करती हैं। माँ का यह स्वरूप भक्तों के लिए बेहद पूजनीय है।
सेवा और भक्तिपूर्ण जीवन
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा।
रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
इस चौपाई में बताया गया है कि जब भी भगवान ने किसी अवतार को धारण किया, माँ लक्ष्मी ने भी उनके साथ सेवा का कार्य किया। उनका सेवा भाव सदा बना रहता है।
मन क्रम वचन करै सेवकाई।
मन इच्छित वांछित फल पाई॥
भक्त माँ लक्ष्मी से कहता है कि जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से सेवा करता है, उसे अपनी इच्छाओं के अनुसार फल प्राप्त होता है।
पाठ और प्रार्थना का महत्व
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै।
ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
यहां भक्त कहता है कि जो भी श्रद्धा से लक्ष्मी चालीसा का पाठ करता है और ध्यानपूर्वक इसे सुनता है, उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती। उसे मनचाही सफलता प्राप्त होती है।
माता का आशीर्वाद
जय जय जय लक्ष्मी भवानी।
सब में व्यापित हो गुण खानी॥
माँ लक्ष्मी की महिमा गाते हुए भक्त कहता है कि वे सभी में व्याप्त हैं और गुणों की खान हैं। माँ लक्ष्मी का तेज और कृपा सभी पर होती है।
भूल चूक करि क्षमा हमारी।
दर्शन दजै दशा निहारी॥
अंत में भक्त माँ लक्ष्मी से कहता है कि यदि किसी प्रकार की भूल-चूक हुई हो तो वे उसे क्षमा करें और भक्त को अपने दर्शन का आशीर्वाद दें।
लक्ष्मी स्तुति में छिपे भावार्थ
इस स्तुति में लक्ष्मी माता के प्रति भक्त का संपूर्ण समर्पण और आस्था स्पष्ट रूप से झलकती है। माँ लक्ष्मी केवल धन और समृद्धि की देवी नहीं हैं, बल्कि वे ज्ञान, बुद्धि और धर्म की भी स्रोत हैं। भक्त ने माँ लक्ष्मी से सिर्फ भौतिक सुख-सुविधाओं की ही प्रार्थना नहीं की, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति, ज्ञान और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की भी याचना की है।
माँ लक्ष्मी का सेवा भाव
सिन्धु कुमारी का रूप:
माँ लक्ष्मी को “सिन्धु कुमारी” कहा गया है, जो समुद्र से उत्पन्न होने का प्रतीक है। समुद्र मंथन से निकली माँ लक्ष्मी ने विष्णु भगवान की सेवा करते हुए हर अवतार में उनका साथ दिया। इसका अर्थ है कि माँ लक्ष्मी सेवा और समर्पण की मूर्ति हैं। वे हर परिस्थिति में अपने भक्तों के साथ खड़ी रहती हैं, चाहे वह संसारिक हो या आध्यात्मिक।
सर्वव्यापकता का प्रतीक:
स्तुति में बार-बार माँ लक्ष्मी की सर्वव्यापकता का उल्लेख किया गया है। वे सबके हृदय में निवास करती हैं, हर जीव में उपस्थित हैं, और उनकी कृपा से ही संसार का संचालन होता है। यह उनके दिव्य स्वरूप को दर्शाता है, जो हर जीवात्मा के लिए समान रूप से उपलब्ध है।
भक्त की इच्छाएं और माँ लक्ष्मी की कृपा
मनोकामनाओं की पूर्ति:
भक्त ने माँ लक्ष्मी से न केवल धन की याचना की है, बल्कि उसने मन, वचन और कर्म से की गई सेवा के बदले मनचाही इच्छाओं की पूर्ति की भी प्रार्थना की है। इसका गूढ़ अर्थ यह है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से माँ लक्ष्मी की आराधना करता है, उसे जीवन में हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
ज्ञान और बुद्धि की कामना:
इस स्तुति का एक विशेष पहलू यह भी है कि भक्त ने लक्ष्मी माँ से ज्ञान और बुद्धि की भी कामना की है। इसका मतलब है कि केवल धन की प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य नहीं है, बल्कि सही ज्ञान और बुद्धि से उसे सही दिशा में उपयोग करना भी जरूरी है।
पाठ की महत्ता
लक्ष्मी चालीसा का पाठ:
इस स्तुति में विशेष रूप से लक्ष्मी चालीसा का जिक्र किया गया है, जो कि माँ लक्ष्मी के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। जो व्यक्ति श्रद्धा और ध्यान से लक्ष्मी चालीसा का पाठ करता है, उसे जीवन में किसी प्रकार की कमी नहीं होती। इससे यह संदेश मिलता है कि नियमित रूप से माँ लक्ष्मी की आराधना करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो सकते हैं और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
माँ लक्ष्मी के प्रति समर्पण
भूल-चूक की क्षमा:
अंत में, भक्त माँ लक्ष्मी से क्षमा की याचना करता है। यह विनम्रता का प्रतीक है कि चाहे हम कितने भी प्रयास कर लें, हमसे गलतियां हो सकती हैं, और हमें माँ लक्ष्मी की क्षमा की आवश्यकता होती है। यह बताता है कि जीवन में गलती करना स्वाभाविक है, परंतु माँ लक्ष्मी की शरण में जाकर उन्हें स्वीकार करना और उनसे क्षमा माँगना हमारी सच्ची भक्ति का प्रमाण है।
निष्कर्ष
यह पूरी स्तुति माँ लक्ष्मी की महिमा, उनकी कृपा और भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन करती है। इस स्तुति में भक्त ने धन, समृद्धि, ज्ञान, बुद्धि और मोक्ष सभी की प्राप्ति के लिए माँ लक्ष्मी से प्रार्थना की है। यह भी स्पष्ट होता है कि नियमित पूजा-पाठ और निष्ठा से किए गए कर्म से जीवन के सभी कष्टों का निवारण संभव है।