- – यह कविता माँ के प्रति गहरे प्रेम और श्रद्धा को दर्शाती है, जिसमें माँ से चिट्ठियां लिखने की बात कही गई है।
- – कवि माँ से अपनी पीड़ा और आशा व्यक्त करता है कि माँ उसकी मदद करें और उसे सही रास्ता दिखाएं।
- – माँ को विभिन्न रूपों में पूजा गया है जैसे कमला, काली, दुर्गा, शारदे, जो उसकी शक्ति और संरक्षण का प्रतीक हैं।
- – कवि अपनी व्यथा और अकेलेपन को बताता है, माँ से जल्दी आने की विनती करता है ताकि वह अंधकार से बाहर आ सके।
- – कविता में माँ की ममता और सहारे की महत्ता को उजागर किया गया है, जो जीवन के कठिन समय में सहारा बनती हैं।
- – अंत में कवि माँ से बार-बार संपर्क की उम्मीद करता है, लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिलता, जिससे उसकी व्यथा और बढ़ जाती है।

लिखे माँ चिट्ठियां तू सारे जग को,
पर मेरी ही मैया क्यों बारी ना आई,
नौराते लौट के लो फिर आ गए,
पर कोई भी खबर तुम्हारी ना आई,
लिखे माँ चिट्ठियां तू सारे जग को।।
तर्ज – लिखे जो खत तुझे।
पहाड़ों में तू रहती है,
गुफाओं में तेरा डेरा,
मैं निर्धन हूँ तू दाती है,
ध्यान करले तू माँ मेरा,
भटक ना जाऊँ राहों में,
करो माँ दूर अंधेरा,
लिखे माँ चिट्ठियां तू सारे जग को।।
तू ही कमला तू ही काली,
तू ही अंबे माँ वरदानी,
तू ही माँ शारदे दुर्गा,
तू ही माँ शिव की पटरानी,
तेरे माँ रूप लाखों हैं,
करें तू सबकी रखवाली
लिखे माँ चिट्ठियां तू सारे जग को।।
मेरी आंखों के दो आंसू,
नहीं तुझको नजर आए,
खुली है इस कदर आंखें,
ना जाने कब माँ आ जाए,
करो ना माँ और देरी,
कहीं ये जान निकल जाए ,
लिखे माँ चिट्ठियां तू सारे जग को।।
सहारे आपके मैया,
फलक के चांद तारे है,
लगाया पार माँ सबको,
खड़े हम इस किनारे हैं,
तेरे बिन ‘पाल’ ने मैया,
ये दिन रो रो गुजारे है,
लिखे माँ चिट्ठियां तू सारे जग को।।
लिखे माँ चिट्ठियां तू सारे जग को,
पर मेरी ही मैया क्यों बारी ना आई,
नौराते लौट के लो फिर आ गए,
पर कोई भी खबर तुम्हारी ना आई,
लिखे माँ चिट्ठियां तू सारे जग को।।
– गायक एवं प्रेषक –
विशाल मित्तल जी।
संपर्क – 98125-54155
