- – यह कविता भगवान शिव की अमर कहानी को प्रस्तुत करती है, जिसमें उनकी दयालुता और शक्ति का वर्णन है।
- – शिवजी ने भस्मासुर को परास्त किया, और विपदाओं में स्वयं को बुलाकर सभी का कल्याण किया।
- – उन्होंने हरि (भगवान विष्णु) की रक्षा की, और बनकर नारी सुहानी, संकटों से निवारण किया।
- – शिवजी ने सिंधु के गरल को पचाया और सृष्टि को जलने से बचाया, सभी प्राणियों के प्रति उनका प्रेम दर्शाया गया है।
- – गंगा को अपने सिर पर धारण करना और वरदान देना शिवजी की महानता और कृपा को दर्शाता है।
- – कविता में शिवजी को “औघड़ दानी” और “सदाशिव” के रूप में सम्मानित किया गया है, जो न केवल सुरों बल्कि असुरों को भी संतुष्ट नहीं करते।

लिखने वाले लिख लिख हारे,
शिव की अमर कहानी।।
तर्ज – लिखने वाले ने लिख डाले।
लिखने वाले लिख लिख हारे,
शिव की अमर कहानी,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी, सदाशिव,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी,
सच कहते है अधिक ही भोले,
सच कहते है अधिक ही भोले,
तुम्हरे नाथ भवानी, भवानी,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी।।
भस्मासुर पर कृपा लुटाई,
अपनी विपदा आप बुलाई,
हरी ने हर की रक्षा की तब,
हरी ने हर की रक्षा की तब,
बनकर नारी सुहानी, सुहानी,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी, सदाशिव,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी।।
सिंधु से निकला गरल पचाया,
श्रष्टि को जलने से बचाया,
भूतनाथ पर उपकारी को,
भूतनाथ पर उपकारी को,
प्यारा है हर प्राणी,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी, सदाशिव,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी।।
शिवजी को जल बहुत सुहाए,
फिरते है गंगा सिर पे उठाए,
जो मांगो वरदान में दे दे,
जो मांगो वरदान में दे दे,
पा लुटिया भर पानी,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी, सदाशिव,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी।।
लिखने वाले लिख लिख हारे,
शिव की अमर कहानी,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी, सदाशिव,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी,
सच कहते है अधिक ही भोले,
सच कहते है अधिक ही भोले,
तुम्हरे नाथ भवानी, भवानी,
रीझे तो सुर असुर ना देखे,
ऐसे औघड़ दानी।।
गायक & लेखक
“स्व. श्री रविंद्र जैन”
