- – यह कविता भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और विश्वास को दर्शाती है, जहां शिव को शिव शंकर और ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है।
- – शिव की महिमा और उनके प्रतीक शिवलिंग की अमर कहानी वेद और पुराणों में वर्णित है।
- – नर-नारी, देवी-देवता, और यहां तक कि श्रीराम भी शिव के चरणों में शीश नवाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
- – शिव की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन की परेशानियां दूर होती हैं।
- – कविता में विश्वास और श्रद्धा को महत्वपूर्ण बताया गया है, जो शिव को पाने का मार्ग है; जो न मानते हैं, उन्हें पथ्थर प्राणी कहा गया है।

मानो तो वो शिव शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी,
विश्वास है जिनके मन में,
मिलते है उसे शिव दानी,
मानो तो वो शिव शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी।।
तर्ज – मानो तो मैं गंगा माँ हूँ
युग युग से सब जपते आये,
जिनके नाम की माला,
स्वयं है बैठा ज्योतिर्लिंग में,
शंकर डमरू वाला,
सब वेद पुराण बताते,
शिवलिंग की अमर कहानी,
मानो तो वो शिव-शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी।।
नर नारी क्या देवी देव भी,
आकर शीश नवाते,
भोले की परिकर्मा करके,
हर हर बम बम गाते,
जिनके चरणों की सेवा,
करती गौरा महाराणी,
मानो तो वो शिव शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी।।
श्री राम प्रभु भी आकर,
चरणों में फूल चढ़ाये,
इस पथ्थर की पूजा कर वो,
मन वांछित फल पाए,
लंका जीती और मारे,
रावण जैसे अभिमानी,
मानो तो वो शिव-शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी।।
डमरू वाले की चौखट पर,
कोई भी प्राणी आये,
सच्चे मन से बस एक लौटा,
गंगाजल का चढ़ाये,
‘शर्मा’ कट जाती उसकी,
जीवन भर की परेशानी,
मानो तो वो शिव-शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी।।
मानो तो वो शिव शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी,
विश्वास है जिनके मन में,
मिलते है उसे शिव दानी,
मानो तो वो शिव शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी।।
