- – यह भजन श्री राधा और श्री कृष्ण (बांके बिहारी) की आरती का वर्णन करता है।
- – भजन में श्री कृष्ण की सुंदरता, जैसे मोर पंख, घुंघराली बाल, और वैजंती माला का उल्लेख है।
- – श्री कृष्ण की मोहक और मनमोहक छवि को “साँवरिया”, “मन मोहन”, और “मुरारी” जैसे नामों से पुकारा गया है।
- – भजन में श्री हरीदास दुलारी और श्यामा प्यारी का भी स्मरण किया गया है।
- – यह आरती प्रेम और भक्ति भाव से भरी हुई है, जिसमें भक्त श्री राधा-रसिक बिहारी की स्तुति करता है।
- – स्वर श्री चित्र विचित्र जी महाराज द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जो भजन की आध्यात्मिकता को बढ़ाता है।

मैं तो आरती उतारूँ रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की,
मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की,
प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
मोर पखा अलके घूंघराली,
बार बार जाऊँ बलिहारी,
कुंडल की छवि न्यारी की,
प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
साँवरिया की साँवरी सूरत,
मन मोहन की मोहनी मूरत,
तिरछी नज़र बिहारी की,
मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
गल सोहे वैजंती माला,
नैन रसीले रूप निराला,
मन मोहन कृष्ण मुरारी की,
प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
पागल के हो प्राणन प्यारे,
प्राणन प्यारे नैनन तारे,
मेरी श्यामा प्यारी की,
श्री हरीदास दुलारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
मैं तो आरती उतारूँ रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की,
मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की,
प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
स्वर – श्री चित्र विचित्र जी महाराज।
