- – यह गीत मीरा की भक्ति और आध्यात्मिकता को दर्शाता है, जिसमें उन्होंने अमर चुनड़ी ओढ़ने और संतों के साथ जीवन बिताने की इच्छा व्यक्त की है।
- – गीत में भगवान राम और संतों के भजन का महत्व बताया गया है, जो जीवन का सहारा और मार्गदर्शन हैं।
- – प्रकृति और ब्रह्मांड के तत्व जैसे चाँद, सूरज, तारे, और नागों को अंगूठे और गहनों के रूप में सजाने का वर्णन है, जो आध्यात्मिक सौंदर्य को दर्शाता है।
- – गीत में ज्ञानियों, हनुमान जी और संतों के साथ जुड़ाव का महत्व बताया गया है, जो आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक हैं।
- – यह रचना राजस्थान की लोक संस्कृति और भक्ति परंपरा की झलक प्रस्तुत करती है, जिसमें धरती माता और पारंपरिक पोशाकों का उल्लेख है।
- – गीत के माध्यम से जीवन में भक्ति, ज्ञान और संतों के संग रहने की प्रेरणा दी गई है, जो आत्मा की शांति और मोक्ष का मार्ग है।
मैं तो अमर चुनड़ी ओढू,
श्लोक – मीरा जनमी मेड़ते
वा परणाई चित्तोड़,
राम भजन प्रताप सु,
वा शक्ल सृष्टि शिरमोड,
शक्ल सृष्टि शिरमोड,
जगत मे सहारा जानिये,
आगे हुई अनेक कई बाया कई रानी,
जीन की रीत सगराम कहे,
जाने में खोर।
तीन लोक चौदाह भवन में,
पोछ सके ना कोई,
ब्रह्मा विष्णु भी थक गया,
शंकर गया है छोड़।
धरती माता ने वालो पेरु घाघरो,
मैं तो अमर चुनड़ी ओढू,
मैं तो संतो रे भेली रेवू,
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
चाँद सूरज म्हारे अंगडे लगाऊ,
में तो झरणा रो झांझर पेरु,
मैं तो संतो रे भेली रेवू,
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
नव लख तारा म्हारे अंगडे लगाऊ,
मैं तो जरणा रो झांझर पेरु,
मैं तो संतो रे भेली रेवू,
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
नव कोली नाग म्हारे चोटीया सजाऊ,
जद म्हारो माथो गुथाऊ,
मैं तो संतो रे भेली रेवू,
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
ग्यानी ध्यानी बगल में राखु,
हनुमान वालो कोकण पेरू,
मैं तो संतो रे भेली रेवू,
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
भार सन्देश में अदकर बांदु,
मैं डूंगरवाली डोडी में खेलु,
मैं तो संतो रे भेली रेवू,
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
दोई कर जोड़ एतो मीरो बाई बोले,
मैं तो गुण सावरिया रा गावु,
मैं तो संतो रे भेली रेवू,
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
धरती माता ने वालो पेरु घाघरो,
मैं तो अमर चुनड़ी ओढू,
मैं तो संतो रे भेली रेवू,
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
“श्रवण सिंह राजपुरोहित द्वारा प्रेषित”
सम्पर्क : +91 9096558244
https://youtu.be/5uPeiEDVVMs
