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- – यह कविता पितर दादा से सहायता और दया की विनती करती है, जो जीवन के संकटों को दूर करने वाले देवता हैं।
- – कवि अपनी नैया (जीवन) किनारे लगी हुई बताता है, जो संकट में है और पितर दादा से मार्गदर्शन और सहारा चाहता है।
- – कविता में परिवार की खुशहाली, रोजगार, और बिगड़े कामों के सुधार की प्रार्थना की गई है।
- – भैंस के दूध उत्पादन और आर्थिक स्थिति सुधारने की भी मांग की गई है।
- – कवि पितर दादा की कृपा से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की आशा करता है।

मेरी नैया लगी है किनारे प,
मैं वारि जाऊ पितर दादा थारे प।।
पितर दादा मेहर फिरा दे,
उजड़ा मेरा संसार बसा दे,
कुछ दया करो दादा महारे प,
मैं वारि जाऊ पितर दादा थारे प।।
मारं लात ये भैंस दुधारी,
विनती सुन लो दादा हमारी,
या ज़िंदगी तेरे इशारे प,
मैं वारि जाऊ पितर दादा थारे प।।
पांचो कपड़े रखे तुम्हारे,
बिगड़े काम बनाओ हमारे,
थारी फिरके ध्वजा चुबारे प,
मैं वारि जाऊ पितर दादा थारे प।।
दूध पूत रोजगार बढ़ाणा,
दास राजेंदर पे मेहर बरसाणा,
कर दया तू भोली वेचारे पे,
मैं वारि जाऊ पितर दादा थारे प।।
मेरी नैया लगी है किनारे प,
मैं वारि जाऊ पितर दादा थारे प।।
प्रेषक – राकेश कुमार खरक जाटान(रोहतक)
9992976579
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