- – भजन में सतगुरु और दाता के आगमन का स्वागत और उनकी महिमा का गुणगान किया गया है।
- – सतगुरु के दर्शन से आत्मा शुद्ध होती है और जीवन के भ्रम और बंधनों से मुक्ति मिलती है।
- – भजन में भक्त अपने हृदय की शुद्धता और समर्पण व्यक्त करता है, सतगुरु के चरणों में शीश नवाता है।
- – सभी सखियों को केसर का तिलक लगाकर सतगुरु का आशीर्वाद लेने का आह्वान किया गया है।
- – भजन में सत्संग की महत्ता और उसमें शामिल होने से मन में मंगल की अनुभूति होती है।
- – यह भजन अशोक माली द्वारा प्रस्तुत किया गया है और इसे इस ऐप पर जोड़ा गया है।

मैं वारी जाऊं रे,
बलिहारी जाऊं रे,
म्हारे सतगुरु आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे,
म्हारा दाता आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे।।
म्हारा सतगुरु आंगण आया,
मैं गंगा गोमती नहाया,
रे मारी निर्मल हो गयी काया,
मै वारी जाऊं रे,
म्हारा दाता आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे।।
म्हारा सतगुरु दर्शन दीन्हा,
म्हारा भाग उदय कर दीन्हा,
मेरा भरम वरम सब छीना,
मै वारी जाऊं रे,
म्हारा दाता आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे।।
सब सखी मिलकर आओ,
केसर रा तिलक लगावो,
गुरुदेव ने बधाओं,
मै वारी जाऊं रे,
म्हारा दाता आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे।।
म्हारी सत्संगी बन गयी भारी,
थे गाओ मंगला चारी,
मेरी खुली ह्रदय की ताली,
मै वारी जाऊं रे,
म्हारा दाता आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे।।
दास नारायण जस गावे,
चरणों में सीस नवायों,
मेरा सतगुरु पार उतारे,
मै वारी जाऊं रे,
म्हारा दाता आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे।।
मैं वारी जाऊं रे,
बलिहारी जाऊं रे,
म्हारे सतगुरु आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे,
म्हारा दाता आंगण आया,
मैं वारी जाऊं रे।।
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प्रेषक – अशोक माली,
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