धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें
Join Now
- – यह कविता माला फेरने के विभिन्न पहलुओं और उनके प्रभावों को हास्यपूर्ण तरीके से दर्शाती है।
- – बूढ़े माजी (दादा) की प्रतिक्रियाएं विभिन्न क्रियाओं पर अलग-अलग होती हैं, जैसे रोटी खाने पर दुखी और हलवा खाने पर खुश।
- – मंदिर जाने, गीता पढ़ने और टीवी देखने पर भी माजी की भावनाएं बदलती हैं, जो जीवन के विविध अनुभवों को दर्शाती हैं।
- – माला फेरने से हाथ दुखने और पैसे गिनने से खुशी मिलने का विरोधाभास कविता में व्यक्त किया गया है।
- – यह कविता पारिवारिक और सांस्कृतिक जीवन की सूक्ष्मताओं को सरल और रोचक भाषा में प्रस्तुत करती है।

माला फेरो ने राजी राजी,
मारा बूढ़ा माजी।।
रोटी खावे तो,
मुखड़ो जी दुखे,
हलवो खावे तो,
घणा राजी,
मारा बूढ़ा माजी,
माला फेरों ने राजी राजी,
मारा बूढ़ा माजी।।
मन्दिर जावे तो,
पगल्या जी दुखे,
घर घर फरवा में,
घणा राजी,
मारा बूढ़ा माजी,
माला फेरों ने राजी राजी,
मारा बूढ़ा माजी।।
गीता पड़े तो,
आंख्या जी दुखे,
टीवी देखे तो,
घणा राजी,
मारा बूढ़ा माजी,
माला फेरों ने राजी राजी,
मारा बूढ़ा माजी।।
माळा फेरे तो,
हाथ गणा दुखे,
रुपिया गीणे तो,
घणा राजी,
मारा बूढ़ा माजी,
माला फेरों ने राजी राजी,
मारा बूढ़ा माजी।।
माला फेरो ने राजी राजी,
मारा बूढ़ा माजी।।
स्वर – अलका जी शर्मा।
प्रेषक – कुलदीप मेनारिया,
आलाखेड़ी 9799294907
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।
