- – भजन में मन को राम का स्मरण करने और सुमिरन करने की प्रेरणा दी गई है, जिससे मुक्ति प्राप्त होती है।
- – जीवन में माया और सांसारिक मोह में फंसने से दुख और नरक भुगतना पड़ता है।
- – गुरु और संतों के वचन मानकर, सांसारिक झगड़े छोड़कर प्रभु में ध्यान लगाना चाहिए।
- – यह अवसर पुनः नहीं आता, इसलिए वर्तमान में ही भगवान का स्मरण करना आवश्यक है।
- – भजन में देवाराम और गणपतराम जैसे संतों का उदाहरण देकर राम ज्ञान और गुण गाने की महत्ता बताई गई है।
- – भवसागर में डूबने से बचने के लिए मन को राम का सुमिरन करना अनिवार्य है।
मनवा राम सुमर मेरे भाई रे,
सुमरिया बिना मुक्ति नहीं होवे,
भवजल गोता खाई रे,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
लक चौरासी में भटकत भटकत,
अब के मनुष्य तन पाई रे,
ऐसो अवसर फेर नहीं आवे,
ऐसो अवसर फेर नहीं आवे,
आखिर में पछताई,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
विश्वासना माया चक्र में,
बार-बार भरनाई रे,
अंत समय जमडा ले जावे,
गणों नरक भुगताई रे,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
गुरु संत रा वचन मानले,
छोड़ दे ठुकराई रे,
सारा झगड़ा छोड़ जगत रा,
प्रभु में ध्यान लगा ले,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
देवाराम माने सतगुरु मिलिया,
सिमरन गति बताई रे,
गणपतराम कब्बू नहीं बीसरु,
राम ज्ञान गुण गाई रे,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
मनवा राम सुमर मेरे भाई रे,
सुमरिया बिना मुक्ति नहीं होवे,
भवजल गोता खाई रे,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
– भजन प्रेषक –
रतनपुरी गोस्वामी,
सांवलिया खेड़ा
8290907236