- – यह कविता सतगुरु की नौकरी को सबसे श्रेष्ठ और सच्ची नौकरी बताती है, जो जीवन की सबसे मजबूत डोरी है।
- – कवि अपने सतगुरु के दरबार में हाजिरी देने को सबसे बड़ी खुशी और सौभाग्य मानता है।
- – सतगुरु की रहमत से कवि की बिगड़ी हुई जिंदगी सुधर गई और उसे अपनी औकात का एहसास हुआ।
- – सतगुरु की सेवा में लगने से कवि को एक नई पहचान और सम्मान मिला है।
- – कवि अपनी तनख्वाह को कम नहीं मानता, क्योंकि सतगुरु की नौकरी में मिलने वाला सुख और संतोष अनमोल है।
- – कवि अपने सतगुरु के चरणों की भक्ति में समर्पित है और यही उसकी अंतिम प्रार्थना है।

मेरे सतगुरू तेरी नौकरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी।।
तर्ज-जिंदगी की ना टूटे लड़ी।
मेरे सतगूरू तेरी नौकरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी,
तेरे दरबार की हाजरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी॥॥
खुशनसीबी का जब गुल खिला,
तब कही जाके ये दर मिला,
हो गई अब तो रहमत तेरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी॥॥
मै नही था किसी काम का,
ले सहारा तेरे नाम का,
बन गई अब तो बिगड़ी मेरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी॥॥
जबसे तेरा गुलाम हो गया,
तबसे मेरा भी नाम हो गया,
वरना औकात क्या थी मेरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी॥॥
मेरी तनख्वाह भी कूछ कम नही,
कूछ मिले ना मिले ग़म नही,
होगी ऐसी कहाँ दुसरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी॥॥
इक वीयोगी दीवाना हूँ मै,
खाक चरणों की चाहता हूँ मै,
आखरी ईल्तेजा है मेरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी॥॥
मेरे सतगूरू तेरी नौकरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी,
तेरे दरबार की हाजरी,
सबसे बढ़िया है सबसे खरी॥॥
