- – यह गीत सांवरिया (भगवान कृष्ण) के प्रति भक्त नरशी की भावनाओं और प्रेम को दर्शाता है, जिसमें वह सांवरिया से अपनी लाज बचाने की गुहार लगाता है।
- – गीत में नरशी भगत की स्थिति और उनके जीवन की तुलना दूसरों के भव्य जीवन से की गई है, जहां उनके पास महल या बंगला नहीं, बल्कि एक छोटी झोपड़ी है।
- – गीत में नरशी भगत के साधारण जीवन और उनकी भक्ति की सच्चाई को प्रमुखता से उजागर किया गया है।
- – गीत में सांवरिया से नरशी की विनती है कि वह उनकी लाज बचाए और उनकी भक्ति को स्वीकार करे।
- – यह गीत राजस्थान की लोक संस्कृति और भक्ति संगीत की एक सुंदर प्रस्तुति है, जो भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है।

मोड़ो घनो आयो रे सांवरिया,
थे मारी लाज गमाई रे।
दोहा – नर्सी केवे सावरा,
तू एक बार मड़वा आव,
थारो मारो एक नातो,
थारा भगता उपर भार।।
मोड़ो घणो आयो रे सांवरिया,
थे मारी लाज गमाई रे,
अरे लाज गमाई रे सांवरिया,
लाज गमाई रे,
मोड़ो घणो आयो रे सावरिया,
थे मारी लाज गमाई रे।।
सब रे लोगा रे तो लाडू ने पेड़ा,
बरफी न्यारी हो,
नरशी भगत रे तो खटोड़ी राबड़ी,
नरशी भगत रे तो खटोड़ी राबड़ी,
तीन डडो री रे,
मोड़ो घणो आयो रे सावरिया,
थे मारी लाज गमाई रे।।
सब रे लोगो रे महल मलिया,
बंगला न्यारा रे,
नर्सी भगत रे तो तुटोड़ि री झुपड़ी,
नर्सी भगत रे तो तुटोड़ि री झुपड़ी,
बीच मे बरी रे,
मोड़ो घणो आयो रे सावरिया,
थे मारी लाज गमाई रे।।
सब रे लोगा रे तो घिरत पत्राना,
तकिया न्यारा रे,
नर्सी भगत रे तो फतोड़ी रली,
नर्सी भगत रे तो फतोड़ी रली,
बीच मे तो कारी रे,
मोड़ो घणो आयो रे सावरिया,
थे मारी लाज गमाई रे।।
केवे नरशीदो सुन मारा सावरा,
अर्जी मारी रे,
बाई नेनी रो भरदे मायरो,
बाई नेनी रो भरदे मायरो,
मर्ज़ी थारी रे,
मोड़ो घणो आयो रे सावरिया,
थे मारी लाज गमाई रे।।
मोड़ो घनो आयो रे सांवरिया,
थे मारी लाज गमाई रे,
अरे लाज गमाई रे सांवरिया,
लाज गमाई रे,
मोड़ो घणो आयो रे सावरिया,
थे मारी लाज गमाई रे।।
– गायक एवं प्रेषक –
मुकेश थिंगौर गांधीधाम
9106629227
