मुझे तूने मालिक,
बहुत कुछ दिया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
मुझे तूने मालिक,
बहुत कुछ दिया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
ना मिलती अगर,
दी हुई दात तेरी ।
तो क्या थी ज़माने में,
औकात मेरी ।
ये बंदा तो तेरे,
सहारे जिया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
॥ मुझे तूने मालिक…॥
ये जायदाद दी है,
ये औलाद दी है ।
मुसीबत में हर वक़्त,
मदद की है ।
तेरे ही दिया मैंने,
खाया पिया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
॥ मुझे तूने मालिक…॥
मेरा ही नहीं तू,
सभी का है दाता ।
सभी को सभी कुछ,
है देता दिलाता ।
जो खाली था दामन,
तूने भर दिया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
॥ मुझे तूने मालिक…॥
तेरी बंदगी से,
मै बंदा हूँ मालिक ।
तेरे ही करम से,
मै जिन्दा हूँ मालिक ।
तुम्ही ने तो जीने के,
काबिल किया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
॥ मुझे तूने मालिक…॥
मेरा भूल जाना,
तेरा ना भुलाना ।
तेरी रहमतो का,
कहाँ है ठिकाना ।
तेरी इस मोहब्बत ने,
पागल किया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
॥ मुझे तूने मालिक…॥
मुझे तूने मालिक,
बहुत कुछ दिया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है ।
सीताराम राम राम,
सीताराम राम राम
सीताराम राम राम,
सीताराम राम राम
सीताराम राम राम,
सीताराम राम राम
सीताराम राम राम,
सीताराम राम राम
मुझे तूने मालिक, बहुत कुछ दिया है – गहन अर्थ
यह भजन कृतज्ञता और आत्मसमर्पण की गहराई को व्यक्त करता है। हर पंक्ति में न केवल ईश्वर के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया गया है, बल्कि इस बात पर भी बल दिया गया है कि बिना ईश्वर की कृपा के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इस गहन विश्लेषण में हम प्रत्येक पंक्ति के अर्थ को और गहराई से समझेंगे, जो भक्ति के अनुभव और आत्मा की पुकार को उजागर करती है।
प्रस्तावना: भजन की भावनात्मक भूमि
यह भजन हमें एक ऐसा दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिसमें भक्ति की भावना के साथ-साथ आभार व्यक्त करने का गहरा संदेश छिपा है। यह भजन न केवल ईश्वर के उपकार को पहचानने की बात करता है, बल्कि यह भी बताता है कि उनका सहारा ही जीवन की नींव है।
जब भक्त “तेरा शुक्रिया है” कहता है, तो यह मात्र शब्द नहीं हैं; यह आत्मा की गहराई से निकला वह भाव है, जो हर सांस में ईश्वर को महसूस करता है।
मुझे तूने मालिक, बहुत कुछ दिया है
मुझे तूने मालिक, बहुत कुछ दिया है।
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है।
यह पंक्तियां साधारण धन्यवाद से कहीं अधिक हैं। “बहुत कुछ दिया है” केवल भौतिक वस्तुओं तक सीमित नहीं है। यह ‘जीवन’, ‘सांस’, ‘समझ’, और ‘अवसर’ जैसे उन सभी तत्वों को संदर्भित करता है, जो एक व्यक्ति के अस्तित्व को बनाते और परिभाषित करते हैं।
यह कृतज्ञता केवल बाहरी उपलब्धियों के लिए नहीं है, बल्कि भीतर की शांति, विश्वास, और आत्मज्ञान के लिए भी है। यह इस बात की स्वीकारोक्ति है कि जो भी भक्त के पास है, वह सब ईश्वर की देन है।
तेरी दी हुई दात और सहारा
ना मिलती अगर, दी हुई दात तेरी।
तो क्या थी ज़माने में, औकात मेरी।
ये बंदा तो तेरे, सहारे जिया है।
यहां भक्त अपने जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करता है। वह समझता है कि उसकी “औकात” या सामाजिक हैसियत ईश्वर की कृपा के बिना कुछ नहीं होती। “दी हुई दात” में न केवल भौतिक वस्तुएं, बल्कि स्वास्थ्य, बुद्धि, और जीने की प्रेरणा भी शामिल है।
भक्त ईश्वर के सहारे को जीवन का आधार मानता है। यह पंक्तियां हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में हमारी सफलता या स्थिति केवल हमारी मेहनत का परिणाम नहीं है, बल्कि ईश्वर की कृपा भी है।
जीवन के सुख-साधन का उपहार
ये जायदाद दी है, ये औलाद दी है।
मुसीबत में हर वक़्त, मदद की है।
तेरे ही दिया मैंने, खाया पिया है।
यह पंक्तियां भौतिक और भावनात्मक संतुलन पर प्रकाश डालती हैं। जायदाद और औलाद, जीवन के महत्वपूर्ण आधार हैं। भक्त इनका उल्लेख केवल संपत्ति और परिवार के रूप में नहीं करता, बल्कि इनकी पीछे छिपी जिम्मेदारियों और जीवन के अर्थ को भी उजागर करता है।
“मुसीबत में हर वक्त मदद” इस बात का संकेत है कि जब कोई अपनी सीमाओं से परे हो जाता है, तब ईश्वर का सहारा ही उसे संबल देता है। यह अनुभव हमें याद दिलाता है कि जब भी हम संकट में होते हैं, ईश्वर किसी न किसी रूप में हमारी सहायता करते हैं।
सभी का दाता और संपूर्णता का प्रतीक
मेरा ही नहीं तू, सभी का है दाता।
सभी को सभी कुछ, है देता दिलाता।
जो खाली था दामन, तूने भर दिया है।
यहां भजन वैश्विक दृष्टिकोण को अपनाता है। भक्त समझता है कि ईश्वर केवल उसका व्यक्तिगत सहारा नहीं हैं, बल्कि वह संपूर्ण सृष्टि के पोषक हैं।
“जो खाली था दामन, तूने भर दिया है” यह वाक्य उन क्षणों को दर्शाता है, जब व्यक्ति खुद को निराश, कमजोर, और अधूरा महसूस करता है। ईश्वर उस अधूरेपन को पूर्णता में बदल देते हैं। यह पंक्ति ईश्वर के प्रति एक सार्वभौमिक विश्वास को व्यक्त करती है कि वह हर किसी को जरूरत के अनुसार प्रदान करते हैं।
भगवान की बंदगी और कृपा का महत्व
तेरी बंदगी से, मैं बंदा हूँ मालिक।
तेरे ही करम से, मैं जिन्दा हूँ मालिक।
तुम्ही ने तो जीने के, काबिल किया है।
यहां “बंदगी” का अर्थ केवल पूजा नहीं है, बल्कि एक ऐसा संबंध है, जो ईश्वर और भक्त के बीच है। यह संबंध भक्त को उसकी पहचान और अस्तित्व का बोध कराता है।
भक्त कहता है कि भगवान की कृपा ने उसे जीने योग्य बनाया। यह ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पण और उनकी कृपा को स्वीकारने का भाव है। यह हमें सिखाता है कि मानवता का असली स्वरूप ईश्वर की सेवा और उनके प्रति समर्पण में है।
भगवान की असीम मोहब्बत
मेरा भूल जाना, तेरा ना भुलाना।
तेरी रहमतो का, कहाँ है ठिकाना।
तेरी इस मोहब्बत ने, पागल किया है।
यह पंक्तियां ईश्वर और भक्त के बीच के रिश्ते की गहराई को दर्शाती हैं। भक्त स्वीकार करता है कि वह कई बार ईश्वर को भूल सकता है, लेकिन ईश्वर उसे कभी नहीं भूलते।
“तेरी रहमतों का कहाँ है ठिकाना” यह बताता है कि ईश्वर की कृपा की कोई सीमा नहीं है। उनकी मोहब्बत (प्रेम) इतनी गहरी और सच्ची है कि वह हर स्थिति में भक्त का साथ देती है। यह प्रेम ईश्वर के प्रति एक तरह की दीवानगी और समर्पण को जन्म देता है।
भजन का गहन अंतर्दृष्टि: निरंतरता
भजन के अगले हिस्से में भक्त अपनी आत्मा की गहराई से निकलने वाली भावनाओं को और स्पष्ट करता है। यह भजन ईश्वर के प्रति उस आदर और प्रेम का प्रतीक है, जो न केवल जीवन के अनुभवों से उपजा है, बल्कि उनके प्रति अडिग विश्वास से भी।
जीवन में ईश्वर की अपरिहार्यता
तेरी बंदगी से, मैं बंदा हूँ मालिक।
तेरे ही करम से, मैं जिन्दा हूँ मालिक।
तुम्ही ने तो जीने के, काबिल किया है।
यह पंक्तियां न केवल ईश्वर के प्रति समर्पण को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि इंसान अपने अस्तित्व के लिए ईश्वर का ऋणी है। “बंदगी” का अर्थ है भक्ति और सेवा। यह भजन इस सत्य पर प्रकाश डालता है कि भक्ति और आत्मसमर्पण से ही एक व्यक्ति अपनी सच्ची पहचान प्राप्त करता है।
“जीने के काबिल” बनने का तात्पर्य है, इंसान की वह क्षमता, जो उसे जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने की ताकत देती है। यह ईश्वर के करुणा और कृपा का ही परिणाम है।
ईश्वर की कृपा का असीम रूप
मेरा भूल जाना, तेरा ना भुलाना।
तेरी रहमतो का, कहाँ है ठिकाना।
तेरी इस मोहब्बत ने, पागल किया है।
यहां भक्त अपने कमजोर पक्ष को भी ईश्वर के समक्ष स्वीकार करता है। “मेरा भूल जाना” यह दिखाता है कि मनुष्य अपनी व्यस्तता और कमजोरियों के कारण अक्सर ईश्वर को भूल जाता है, लेकिन ईश्वर कभी अपने भक्त को नहीं भूलते।
“रहमतो का ठिकाना” से भक्त यह समझाता है कि ईश्वर की कृपा और रहमत इतनी अनंत और व्यापक है कि उसे किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता। उनकी मोहब्बत इतनी गहरी और नि:स्वार्थ है कि यह भक्त को उनके प्रति दिव्यता और दीवानगी से भर देती है।
सार्वभौमिक स्नेह और दया का परिचय
मेरा ही नहीं तू, सभी का है दाता।
सभी को सभी कुछ, है देता दिलाता।
यह पंक्तियां हमें ईश्वर के सार्वभौमिक स्वरूप का अनुभव कराती हैं। ईश्वर किसी एक व्यक्ति के नहीं, बल्कि सभी प्राणियों के पालनहार हैं। वे किसी विशेष जाति, धर्म, या व्यक्ति तक सीमित नहीं हैं।
भक्त यह महसूस करता है कि ईश्वर का प्रेम और दान हर किसी तक समान रूप से पहुंचता है। “सभी को सभी कुछ” का अर्थ यह है कि हर प्राणी को उसकी आवश्यकता के अनुसार ईश्वर ने कुछ न कुछ प्रदान किया है।
सीताराम नाम का महत्व
सीताराम राम राम, सीताराम राम राम।
भजन के अंत में “सीताराम” नाम का जाप भक्त के समर्पण और विश्वास का सर्वोत्तम प्रतीक है। “सीता” और “राम” का नाम केवल धार्मिक नाम नहीं हैं; वे आदर्श प्रेम, त्याग, और कर्तव्य के प्रतीक हैं।
इस नाम का जाप भक्त को शांति, संतोष, और दिव्य ऊर्जा प्रदान करता है। यह इस भजन को एक आध्यात्मिक ऊंचाई पर ले जाता है और यह दिखाता है कि भगवान का नाम ही ध्यान, भक्ति, और मुक्ति का सबसे प्रभावी माध्यम है।
भजन का समग्र संदेश
इस भजन का मूल संदेश ईश्वर के प्रति न केवल कृतज्ञता, बल्कि पूर्ण समर्पण को भी दर्शाता है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में जो कुछ भी हमें प्राप्त होता है, वह ईश्वर की कृपा का ही परिणाम है।
इस भजन की हर पंक्ति हमें यह सिखाती है कि हमें अपने जीवन में हर परिस्थिति में ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। चाहे वह हमारी सफलताएं हों, हमारी संपत्ति हो, या संकटों से मिली सीख — सब कुछ ईश्वर की देन है।
यह भजन हमें यह समझाता है कि ईश्वर केवल हमारी सहायता करने वाले नहीं हैं, बल्कि वे हमारे जीवन का आधार हैं। उनके प्रति आभार और भक्ति ही जीवन को पूर्णता की ओर ले जाती है।
आध्यात्मिक अभ्यास में इस भजन का महत्व
इस भजन का नियमित गायन व्यक्ति को मानसिक शांति, विनम्रता, और कृतज्ञता के भाव से भर देता है। यह भजन एक साधन है, जो भक्त को उसकी सीमाओं और कमजोरियों के प्रति सजग बनाता है और उसे ईश्वर की अनंत कृपा की अनुभूति कराता है।
इस भजन को गाते समय जो भाव उत्पन्न होता है, वह न केवल एक व्यक्ति को ईश्वर से जोड़ता है, बल्कि उसे अपने जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी प्रदान करता है।