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- – यह कविता आत्मनिरीक्षण और स्व-मूल्यांकन की प्रेरणा देती है, जिसमें व्यक्ति को अपने कर्मों और जीवन की सच्चाई को समझने के लिए दर्पण में अपना मुखड़ा देखने को कहा गया है।
- – कविता में पुण्य और पाप की तुलना की गई है, जिससे यह संदेश मिलता है कि व्यक्ति को अपने अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब रखना चाहिए।
- – यह चेतावनी भी देती है कि कपट और धोखे से भरा जीवन स्थायी नहीं होता, और अंततः सच्चाई सामने आ ही जाती है।
- – कविता में जीवन की नाटकीयता और अस्थिरता को दर्शाया गया है, जो दिखाती है कि बाहरी दिखावा और छल-प्रपंच से बचना चाहिए।
- – अंततः, यह संदेश है कि व्यक्ति को अपने कर्मों के प्रति ईमानदार रहना चाहिए और आत्मा की शुद्धि के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए।

मुखड़ा देख ले प्राणी,
जरा दर्पण में हो,
देख ले कितना पुण्य है कितना,
पाप तेरे जीवन में,
देख ले दर्पण में,
मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में।।
कभी तो पल भर सोच ले प्राणी,
क्या है तेरी करम कहानी,
पता लगा ले,
पता लगा ले पड़े हैं कितने,
दाग तेरे दामन में
देख ले दर्पण में,
मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में।।
ख़ुद को धोखा दे मत बन्दे,
अच्छे ना होते कपट के धंधे,
सदा न चलता,
सदा न चलता किसी का नाटक,
दुनिया के आँगन में,
देख ले दर्पण में,
मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दर्पण में।।
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।
