- – यह गीत आत्मविश्वास और भरोसे की भावना को दर्शाता है, जहाँ व्यक्ति को किसी बाहरी सहारे या किनारे की आवश्यकता नहीं होती जब उसके साथ उसका प्रिय या भगवान होता है।
- – गीत में जीवन की कठिनाइयों और मझधारों का उल्लेख है, जहाँ व्यक्ति को कई बार संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन भगवान के साथ होने से वह सब पार कर जाता है।
- – “श्याम” शब्द भगवान कृष्ण के लिए उपयोग किया गया है, जो संकट के समय में सहारा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
- – गीत का मुख्य संदेश है कि जब भगवान या प्रिय साथ हो तो किसी और सहारे की जरूरत नहीं होती, और वह व्यक्ति हर परिस्थिति में मजबूत रहता है।
- – यह गीत भक्ति और विश्वास की भावना को प्रोत्साहित करता है, जो जीवन के उतार-चढ़ाव में स्थिरता और शांति प्रदान करता है।

ना ही किनारा ना ही सहारा,
किसी की ना दरकार,
जो संग में तू मेरे,
जो संग में है तू मेरे,
जो संग में है तू मेरे,
ना ही किनारा ना हीं सहारा,
ना ही किनारा ना हीं सहारा,
किसी की ना दरकार,
जो संग में तू मेरे।।
तर्ज – हनुमान भरोसा तेरा है।
क्या करना है किनारे का,
क्या करना है सहारे का,
भव से वो तो पार हुआ,
जो नौकर इस प्यारे का,
नदी किनारे नैया डूबी,
नदी किनारे नैया डूबी,
देखि सौ सौ बार,
प्रभु क्या खेल तेरे,
ना ही किनारा ना हीं सहारा,
किसी की ना दरकार,
जो संग में तू मेरे।।
जिसपे भरोसा करते थे,
काम मेरे वो आएगा,
देगा मुझे सहारा वो,
नैया पार लगाएगा,
उनके चलते अटक गई थी,
उनके चलते अटक गई थी,
नैया मेरी मझधार,
प्रभु क्या खेल तेरे,
ना ही किनारा ना हीं सहारा,
किसी की ना दरकार,
जो संग में तू मेरे।।
नैया ले मझधार खड़ा,
याद आई मुझे तब तेरी,
मेरे हाथ को थाम लिया,
पलभर भी ना की देरी,
‘श्याम’ कहे उस दिन से मेरा,
‘श्याम’ कहे उस दिन से मेरा,
बन गया पालनहार,
प्रभु क्या खेल तेरे,
ना ही किनारा ना हीं सहारा,
किसी की ना दरकार,
जो संग में तू मेरे।।
ना ही किनारा ना ही सहारा,
किसी की ना दरकार,
जो संग में तू मेरे,
जो संग में है तू मेरे,
जो संग में है तू मेरे,
ना ही किनारा ना हीं सहारा,
ना ही किनारा ना हीं सहारा,
किसी की ना दरकार,
जो संग में तू मेरे।।
स्वर – संजय मित्तल जी।
