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नृसिंह आरती ISKCON in Hindi/Sanskrit

नमस्ते नरसिंहाय
प्रह्लादाह्लाद-दायिने
हिरण्यकशिपोर्वक्षः-
शिला-टङ्क-नखालये

इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो
यतो यतो यामि ततो नृसिंहः

बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो
नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये

तव करकमलवरे नखमद्भुत-शृङ्गं
दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम्
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ।

Narasimha Aarti ISKCON in English

Namaste Narasimhaya
Prahlada-ahlada-dayine
Hiranyakashipor-vakshah-
Shila-tanka-nakhalaye

Ito Nrisimhah Parato Nrisimho
Yato Yato Yami Tato Nrisimhah

Bahih Nrisimhah Hridaye Nrisimhah
Nrisimham-Adim Sharanam Prapadye

Tava Karakamala-vare Nakhamadbhuta-shringaṁ
Dalita-Hiranyakashipu-tanubhringaṁ
Keshava Dhrita-Narahari-rupa Jaya Jagadisha Hare।

नृसिंह आरती ISKCON PDF Download

नमस्ते नरसिंहाय स्तुति का अर्थ और व्याख्या

नमस्ते नरसिंहाय

नमस्ते नरसिंहाय:

  • शाब्दिक अर्थ: नरसिंह (भगवान विष्णु का उग्र रूप) को प्रणाम।
  • व्याख्या: इस पंक्ति में स्तुति करने वाला नरसिंह भगवान को नमन कर रहा है। नरसिंह भगवान का रूप विष्णु के दस अवतारों में से एक है, जिसमें उन्होंने मानव और सिंह के मिलेजुले रूप में प्रकट होकर प्रह्लाद की रक्षा की और असुर हिरण्यकशिपु का अंत किया।

प्रह्लादाह्लाद-दायिने

प्रह्लादाह्लाद-दायिने:

  • शाब्दिक अर्थ: जो प्रह्लाद को आनंद देते हैं।
  • व्याख्या: भगवान नरसिंह को यहाँ उस रूप में पूजा जा रहा है जिन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद को सुख और सुरक्षा दी। प्रह्लाद असुर राजा हिरण्यकशिपु का पुत्र था, लेकिन वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। नरसिंह ने प्रह्लाद को हिरण्यकशिपु के अत्याचारों से मुक्त किया और उसे आनंद प्रदान किया।

हिरण्यकशिपोर्वक्षः-शिला-टङ्क-नखालये

हिरण्यकशिपोर्वक्षः-शिला-टङ्क-नखालये:

  • शाब्दिक अर्थ: हिरण्यकशिपु की छाती को अपने नुकीले नखों से फाड़ने वाले।
  • व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान नरसिंह के उग्र रूप का वर्णन किया गया है। हिरण्यकशिपु ने भगवान विष्णु का अपमान किया और खुद को सर्वशक्तिमान घोषित किया था। भगवान नरसिंह ने अपने तेज नखों से उसकी छाती को चीरकर उसका अंत किया।

इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो

इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो:

  • शाब्दिक अर्थ: यहाँ नरसिंह हैं, वहाँ नरसिंह हैं।
  • व्याख्या: भगवान नरसिंह सर्वव्यापी हैं। यह पंक्ति उनकी सर्वत्र उपस्थिति को दर्शाती है, चाहे कोई कहीं भी जाए, नरसिंह हर स्थान पर उपस्थित हैं। यह भक्ति और विश्वास की गहनता को दर्शाता है कि भक्त भगवान के संरक्षण में हर जगह सुरक्षित है।

यतो यतो यामि ततो नृसिंहः

यतो यतो यामि ततो नृसिंहः:

  • शाब्दिक अर्थ: जहाँ-जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ-वहाँ नरसिंह हैं।
  • व्याख्या: यह भावना व्यक्त करती है कि भक्त जहाँ भी जाता है, भगवान नरसिंह हमेशा उसके साथ होते हैं। यह भगवान की सर्वव्यापकता और उनके भक्तों की सुरक्षा का आश्वासन देता है।

बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो

बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो:

  • शाब्दिक अर्थ: बाह्य रूप से नरसिंह हैं, और हृदय में भी नरसिंह हैं।
  • व्याख्या: यहाँ भगवान नरसिंह को बाह्य और आंतरिक रूप दोनों में पूजनीय बताया गया है। भक्त के लिए भगवान सिर्फ बाहर नहीं, बल्कि उसके हृदय में भी बसते हैं। यह भगवान की आंतरिक और बाहरी उपस्थिति को प्रकट करता है।

नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये

नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये:

  • शाब्दिक अर्थ: मैं आदिपुरुष नरसिंह की शरण में जाता हूँ।
  • व्याख्या: भक्त इस पंक्ति में भगवान नरसिंह की शरणागति का आह्वान कर रहा है। “आदिम” का अर्थ है प्रारंभिक, जो यह इंगित करता है कि नरसिंह भगवान के अनादि और अनंत रूप हैं और उनकी शरण में जाना परम शांति और सुरक्षा का स्रोत है।

तव करकमलवरे नखमद्भुत-शृङ्गं

तव करकमलवरे नखमद्भुत-शृङ्गं:

  • शाब्दिक अर्थ: आपके कमल जैसे हाथों में अद्भुत नख-रूपी शृंग हैं।
  • व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान नरसिंह के करुणामय और उग्र रूप का एक साथ वर्णन किया गया है। उनके नाखून अद्भुत और शक्तिशाली हैं, जो हिरण्यकशिपु जैसे अत्याचारी का अंत करने में सक्षम हैं, और उनके हाथ कमल के समान कोमल भी हैं। यह नरसिंह भगवान की शक्ति और करुणा का प्रतीक है।

दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम्

दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम्:

  • शाब्दिक अर्थ: जिन्होंने हिरण्यकशिपु के शरीर को नष्ट कर दिया।
  • व्याख्या: यहाँ भगवान नरसिंह के द्वारा हिरण्यकशिपु के अंत का वर्णन किया गया है। उन्होंने हिरण्यकशिपु के शरीर को अपने तेज नाखूनों से विदीर्ण कर दिया, जो भक्त प्रह्लाद की भक्ति और विष्णु के प्रति उसकी निष्ठा का प्रतिफल था।

केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे

केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे:

  • शाब्दिक अर्थ: हे केशव (विष्णु), आपने नरसिंह रूप धारण किया, जय हो जगदीश (संसार के स्वामी)।
  • व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की प्रशंसा की जा रही है। केशव यहाँ भगवान विष्णु का एक नाम है, जिन्होंने नरसिंह का रूप धारण कर संसार के असुरों से रक्षा की और भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। ‘जय जगदीश हरे’ का अर्थ है, भगवान जगदीश (संसार के स्वामी) की जय हो।

तव करकमलवरे नखमद्भुत-शृङ्गं (अर्थ और व्याख्या)

तव करकमलवरे नखमद्भुत-शृङ्गं:

  • शाब्दिक अर्थ: आपके कमल के समान हाथों में अद्भुत नख-रूपी शृंग हैं।
  • व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान नरसिंह की शक्ति का वर्णन किया गया है। उनके नाखून तेज़, नुकीले और शृंग के समान हैं, जो हिरण्यकशिपु जैसे असुर का अंत करने में सक्षम थे। उनके हाथ कमल की तरह कोमल भी हैं, जो दर्शाता है कि वे भक्तों के लिए करुणामय हैं। यह विरोधाभासी गुण नरसिंह भगवान की महिमा का एक अद्वितीय पक्ष प्रस्तुत करता है – वे प्रेम और शक्ति का संतुलन हैं।

दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम् (अर्थ और व्याख्या)

दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम्:

  • शाब्दिक अर्थ: जिन्होंने हिरण्यकशिपु के शरीर को नष्ट कर दिया।
  • व्याख्या: यह पंक्ति हिरण्यकशिपु के विनाश की ओर संकेत करती है। नरसिंह भगवान ने अपने तेज नाखूनों से हिरण्यकशिपु का अंत किया, जो उनके भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए था। यहाँ भगवान नरसिंह की उस शक्ति का वर्णन है, जो अधर्म और अत्याचार का नाश करने वाली है।

केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे (अर्थ और व्याख्या)

केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे:

  • शाब्दिक अर्थ: हे केशव (विष्णु), आपने नरसिंह रूप धारण किया, जय हो जगदीश (संसार के स्वामी)।
  • व्याख्या: इस अंतिम पंक्ति में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की महिमा गाई गई है। ‘केशव’ विष्णु का एक नाम है, और इस पंक्ति में उनकी प्रशंसा की जा रही है कि उन्होंने जगत के स्वामी के रूप में नरसिंह का रूप धारण कर असुर हिरण्यकशिपु का नाश किया और भक्त प्रह्लाद को सुरक्षा प्रदान की। “जय जगदीश हरे” का अर्थ है कि भगवान विष्णु की सदा जय हो, जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए यह रूप लिया।

समग्र अर्थ:

यह स्तुति भगवान नरसिंह की भव्यता और उनकी शक्ति का वर्णन करती है। भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में प्रकट होकर भक्त प्रह्लाद को अत्याचारी हिरण्यकशिपु से बचाया था। यह स्तोत्र भगवान की सर्वव्यापकता, उनकी शक्ति और करुणा का मिश्रण है। नरसिंह भगवान केवल बाहरी रक्षक नहीं हैं, बल्कि वे हृदय में भी विद्यमान हैं। स्तुति का अंत भगवान विष्णु के महिमामंडन के साथ होता है, जिन्होंने जगत की रक्षा के लिए नरसिंह का रूप धारण किया।

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