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- – यह गीत कान्हा (भगवान कृष्ण) के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति की अभिव्यक्ति है।
- – गीत में कान्हा की बाँसुरी को नींद चुराने वाला बताया गया है, जो भक्त को अपना बनाने की इच्छा दर्शाता है।
- – भक्त अपनी प्रीत और प्रेम की डोरी टूटने से डरता है और कान्हा की याद में व्याकुल रहता है।
- – प्रेम में आए दुख और बेचैनी का वर्णन करते हुए, भक्त कान्हा से दर्शन की प्रार्थना करता है।
- – गीत में भक्त की भक्ति, प्रेम, और कान्हा के प्रति समर्पण की भावना प्रमुख रूप से व्यक्त हुई है।
- – स्वर देवी निधि और देवी नेहा सारस्वत जी ने इस गीत को भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया है।

नींद चुराके मुझे अपना बनाए,
कान्हा तेरी बाँसुरी नींद चुराए,
नींद चुराके मुझे अपना बनाए।।
चुप चुप रोऊँ कान्हा दुनिया से चोरी,
टूट ना जाए मेरी प्रीत की डोरी,
नैना भर भर आए,
ओ तेरी याद सताए रे,
कान्हा तेरी बाँसुरी नींद चुराए,
नींद चुराके मुझे अपना बनाए।।
प्रीत लगाके कान्हा बड़ा दुख पाया,
एक पल भी मोहे चैन ना आया,
जिया मोरा घबराए,
एक पल चैन ना आवे रे,
कान्हा तेरी बाँसुरी नींद चुराए,
नींद चुराके मुझे अपना बनाए।।
भक्त तुम्हारा कान्हा तुमको पुकारे,
दर्श दिखा दो मेरी आँखो के तारे,
तेरा दर्श ना पाया रे,
जीवन बीता जाए रे,
कान्हा तेरी बाँसुरी नींद चुराए,
नींद चुराके मुझे अपना बनाए।।
नींद चुराके मुझे अपना बनाए,
कान्हा तेरी बाँसुरी नींद चुराए,
नींद चुराके मुझे अपना बनाए।।
स्वर – देवी निधि और देवी नेहा सारस्वत जी।
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