शिव स्तुति – ॐ वन्दे देव in Hindi/Sanskrit
ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं,
वन्दे जगत्कारणम् ।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं,
वन्दे पशूनां पतिम् ॥
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं,
वन्दे मुकुन्दप्रियम् ।
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं,
वन्दे शिवंशंकरम् ॥
Shiv Stuti – Om Vande Dev in English
Om Vande Dev Umapatim Suragurum,
Vande Jagatkaranam.
Vande Pannagabhushanam Mrigadaram,
Vande Pashunam Patim.
Vande Surya Shashanka Vahni Nayanam,
Vande Mukundapriyam.
Vande Bhakta Janashrayam Cha Varadam,
Vande Shivam Shankaram.
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शिव स्तुति – ॐ वन्दे देव का अर्थ
ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं
इस श्लोक की शुरुआत एक बहुत ही पवित्र शब्द “ॐ” से होती है। ‘ॐ’ भारतीय संस्कृति और धर्म में एक अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण ध्वनि है। इसे सृष्टि की मूल ध्वनि माना जाता है और यह ब्रह्मांड की अनंत ध्वनि का प्रतीक है। ‘वन्दे’ का अर्थ होता है “मैं नमन करता हूँ” या “मैं वंदना करता हूँ”। इस श्लोक में भगवान शिव को उनकी विभिन्न विशेषताओं और उपाधियों के साथ नमन किया गया है।
देव उमापति
‘देव’ का अर्थ होता है “ईश्वर” और ‘उमापति’ का अर्थ है “उमा के पति”। उमा देवी पार्वती का ही एक नाम है, और इस तरह ‘उमापति’ भगवान शिव का एक नाम है जो दर्शाता है कि वे माता पार्वती के पति हैं।
सुरगुरुं
यहां ‘सुरगुरु’ का मतलब है देवताओं के गुरु। भगवान शिव को देवताओं के गुरु के रूप में देखा जाता है, क्योंकि वे ज्ञान के स्रोत हैं। शिव तांडव, ध्यान, और जीवन के गूढ़ रहस्यों के स्वामी माने जाते हैं।
वन्दे जगत्कारणम्
इस पंक्ति में भगवान शिव को “जगत का कारण” कहा गया है। यहां यह बताया गया है कि भगवान शिव इस पूरी सृष्टि के निर्माण, संचालन, और विनाश के कारण हैं।
जगत्कारणम् का अर्थ
‘जगत्कारणम्’ का शाब्दिक अर्थ है कि भगवान शिव ही इस संसार की उत्पत्ति, संरक्षण और अंत के मूल कारण हैं। शिव को त्रिदेवों में से एक माना गया है, जो सृष्टि के संहारक हैं, और उनकी महाशक्ति से ही जगत का नाश होता है और पुनः सृजन होता है।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं
यह पंक्ति भगवान शिव के रूप और अलंकरण का वर्णन करती है। ‘पन्नगभूषण’ का अर्थ है ‘नागों को आभूषण के रूप में धारण करने वाले’। शिव की प्रतिमा और मूर्तियों में उन्हें सर्पों को गहनों की तरह धारण करते हुए दिखाया जाता है, जो उनकी शक्ति और भयमुक्ति का प्रतीक है।
मृगधरं का अर्थ
‘मृगधर’ का अर्थ है ‘हिरण को धारण करने वाला’। भगवान शिव को मृगधर कहा जाता है क्योंकि वे अपने हाथ में हिरण का चिह्न या प्रतीक धारण करते हैं। यह उनकी धैर्यता और प्राकृतिक शक्ति का प्रतीक है, जो इस बात को दर्शाता है कि वे सम्पूर्ण प्रकृति और जीवों के स्वामी हैं।
वन्दे पशूनां पतिम्
यहां भगवान शिव को ‘पशुपति’ कहा गया है। ‘पशुपति’ का अर्थ है ‘सभी पशुओं के स्वामी’। इस संदर्भ में ‘पशु’ शब्द का व्यापक अर्थ होता है, जो सभी जीवों और प्राणियों का प्रतीक है। भगवान शिव को सभी जीवों के रक्षक और स्वामी के रूप में माना जाता है।
पशुपति का महत्व
भगवान शिव का एक प्रमुख नाम ‘पशुपति’ है, और इसका उल्लेख विशेष रूप से उनके करुणा और सहनशीलता के गुणों को दर्शाता है। वे न केवल मनुष्यों के, बल्कि सभी जीव-जंतुओं के भी स्वामी हैं, और उनकी रक्षा करते हैं।
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं
इस पंक्ति में भगवान शिव की आंखों का वर्णन किया गया है। ‘सूर्य’ का अर्थ सूर्य है, ‘शशांक’ का अर्थ चंद्रमा है, और ‘वह्नि’ का अर्थ अग्नि है। इसका मतलब है कि भगवान शिव की तीन आंखें हैं—एक में सूर्य, एक में चंद्रमा, और तीसरी आंख में अग्नि है।
तीसरी आंख का महत्व
भगवान शिव की तीसरी आंख उनके ज्ञान और विनाशकारी शक्ति का प्रतीक है। जब भी भगवान शिव अपनी तीसरी आंख खोलते हैं, तो वह किसी चीज़ को नष्ट कर देती है। शिव की यह तीसरी आंख सत्यानाश और सत्य का प्रतिनिधित्व करती है, जो अज्ञानता और बुराई का अंत करती है।
वन्दे मुकुन्दप्रियम्
यहां ‘मुकुन्दप्रिय’ शब्द का अर्थ है ‘भगवान विष्णु के प्रिय’। भगवान शिव और भगवान विष्णु के बीच एक गहरा संबंध है, और दोनों को समान रूप से पूजनीय माना जाता है।
शिव-विष्णु संबंध
शिव और विष्णु दोनों को इस ब्रह्मांड के पालक और संहारक के रूप में देखा जाता है। वे दोनों मिलकर सृष्टि का संचालन करते हैं और उनके बीच कोई भेदभाव नहीं होता। इसी कारण, इस पंक्ति में भगवान शिव को भगवान विष्णु के प्रिय के रूप में वर्णित किया गया है।
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं
इस पंक्ति में भगवान शिव को उन लोगों का आश्रय कहा गया है जो भक्त हैं। ‘भक्त जनाश्रयं’ का अर्थ है कि भगवान शिव अपने भक्तों को शरण देते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। भगवान शिव को उनके भक्तगण बेहद प्रिय हैं, और वे उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले माने जाते हैं।
भक्तों के प्रति शिव की करुणा
भगवान शिव को “भोलानाथ” भी कहा जाता है क्योंकि वे बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं। उनकी करुणा और कृपा असीमित मानी जाती है, और वह अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी सभी समस्याओं का समाधान करते हैं। ‘वरदं’ का अर्थ है ‘वरदान देने वाले’, अर्थात भगवान शिव अपने भक्तों को इच्छित फल प्रदान करने में सक्षम हैं।
वन्दे शिवंशंकरम्
इस पंक्ति में भगवान शिव को ‘शंकर’ कहा गया है। ‘शंकर’ का अर्थ होता है ‘कल्याणकारी’ या ‘सुख और शांति देने वाले’। भगवान शिव को शंकर के रूप में इसलिए भी पूजा जाता है क्योंकि वे जीवन में शांति, सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
शिव और शंकर का अर्थ
भगवान शिव को ‘शिव’ कहा जाता है क्योंकि यह नाम उन्हें ‘शुभ’ और ‘मंगलकारी’ के रूप में प्रस्तुत करता है। शिव शब्द का मूल अर्थ ही ‘मंगलकारी’ होता है। वहीं ‘शंकर’ शब्द का मतलब होता है “जो शुभ लाता है”। शिव और शंकर के रूप में भगवान को इस संसार में जीवन, शांति, और समृद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
अर्थ की गहन व्याख्या
अब इस पूरे श्लोक के भावार्थ को समझते हैं। यह श्लोक भगवान शिव की विभिन्न शक्तियों, गुणों और रूपों का एक सुंदर चित्रण है। इसमें भगवान शिव को उनके अलग-अलग रूपों में नमन किया गया है, जैसे:
- उमापति – पार्वती के पति और जगत के पालनकर्ता।
- सुरगुरु – देवताओं के गुरु और मार्गदर्शक।
- जगत्कारणम् – पूरी सृष्टि के मूल कारण।
- पन्नगभूषण – जो सर्पों को आभूषण के रूप में धारण करते हैं, यह उनकी शक्ति और भयमुक्ति का प्रतीक है।
- मृगधर – जो हिरण को धारण करते हैं, यह उनकी धैर्यता का प्रतीक है।
- पशुपति – सभी जीवों के रक्षक और स्वामी।
- सूर्य, शशांक और अग्नि नयन – जिनकी तीन आंखें हैं, जिनमें से एक में सूर्य, एक में चंद्रमा और तीसरी में अग्नि है। यह उनकी गहन दृष्टि और ज्ञान का प्रतीक है।
- मुकुन्दप्रिय – भगवान विष्णु के प्रिय और समान।
- भक्त जनाश्रय – भक्तों का आश्रय और वरदान देने वाले।
- शंकर – जो जीवन में शांति और कल्याण प्रदान करते हैं।
भगवान शिव का अद्वितीय रूप
भगवान शिव को हिन्दू धर्म में त्रिदेवों में से एक माना जाता है, जो संहारक का रूप धारण करते हैं। परंतु उनकी संहारक शक्ति केवल विनाश तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके पीछे सृष्टि के नवनिर्माण की प्रेरणा छुपी होती है। शिव का हर रूप उनके अनुयायियों को यह संदेश देता है कि जीवन में संतुलन और समर्पण आवश्यक हैं।
भगवान शिव की पूजा का महत्व
भगवान शिव को पूजने का अर्थ केवल किसी शक्ति की आराधना नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करना, ज्ञान की ओर अग्रसर होना और जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझना भी है। शिव की आराधना से व्यक्ति मानसिक शांति, भौतिक सुख और आध्यात्मिक उत्थान की प्राप्ति कर सकता है।
शिव का ध्यान और मोक्ष की प्राप्ति
शिव की पूजा केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं होती, बल्कि उनके ध्यान और आराधना से मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिव योग के प्रवर्तक माने जाते हैं, और उनकी तीसरी आंख जीवन के गूढ़ रहस्यों को खोलने का प्रतीक है।