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श्री पंच-तत्व प्रणाम मंत्र in Hindi/Sanskrit

(जय) श्रीकृष्णचैतन्य प्रभु नित्यानंद ।
श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्तवृंद ॥

Panch Tattva Pranam Mantra in English

(Jai) Shri Krishna Chaitanya Prabhu Nityananda
Shri Advaita Gadadhar Shrivasadi Gaur Bhaktavrinda

श्री पंच-तत्व प्रणाम मंत्र PDF Download

श्री पंच-तत्व प्रणाम मंत्र का अर्थ

(जय) श्रीकृष्णचैतन्य प्रभु नित्यानंद

श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु और उनके सहयोगी नित्यानंद प्रभु को समर्पित यह स्तुति, गौड़ीय वैष्णव परंपरा में एक प्रमुख प्रार्थना है। इसका उच्चारण हरि नाम संकीर्तन के आरंभ में किया जाता है। यह श्लोक उनके दिव्य गुणों और भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन करता है। अब इसे विस्तार से समझते हैं।


(1) जय श्रीकृष्णचैतन्य

“जय” का अर्थ:

“जय” का अर्थ है विजय या शुभकामना। यह श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु की स्तुति और उनकी दिव्य महिमा को प्रणाम करने के लिए कहा गया है।

“श्रीकृष्णचैतन्य” का अर्थ:

  • श्रीकृष्णचैतन्य का तात्पर्य श्रीकृष्ण के उसी रूप से है जिन्होंने चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतार लिया।
  • चैतन्य का अर्थ है “चेतना” या “आध्यात्मिक ऊर्जा”।
  • श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु, भक्ति और प्रेम को प्रचारित करने के लिए इस पृथ्वी पर आए।

आध्यात्मिक संदेश:

यहां भगवान श्रीकृष्ण का अवतार चैतन्य महाप्रभु के रूप में माना गया है। वह भक्ति योग और प्रेम भावना के प्रचारक हैं।


(2) प्रभु नित्यानंद

“प्रभु” का अर्थ:

“प्रभु” का तात्पर्य स्वामी, ईश्वर या संरक्षक से है। यह नित्यानंद प्रभु को सम्मानपूर्वक संबोधित करने का तरीका है।

“नित्यानंद” का अर्थ:

  • “नित्य” का अर्थ है शाश्वत या अनंत।
  • “आनंद” का अर्थ है आनंद या खुशी।
  • नित्यानंद प्रभु श्रीकृष्णचैतन्य के सबसे प्रिय सहयोगी और उनकी लीलाओं में अनन्य सहयोगी हैं।

आध्यात्मिक संदेश:

नित्यानंद प्रभु को भक्तों के बीच दया, करुणा और आनंद का अवतार माना जाता है। वह उन लोगों की मदद करते हैं जो श्रीकृष्णचैतन्य के शरण में आना चाहते हैं।


(3) श्री अद्वैत

“अद्वैत” का अर्थ:

  • “अद्वैत” का शाब्दिक अर्थ है “अद्वितीय” या “जिसका कोई द्वितीय नहीं है।”
  • यह श्री अद्वैत आचार्य को संबोधित करता है, जो महाप्रभु के प्रमुख सहयोगियों में से एक थे।

आध्यात्मिक संदर्भ:

श्री अद्वैत आचार्य ने श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के अवतरण का आह्वान किया। वे भगवान शिव और महाविष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं।


(4) गदाधर

“गदाधर” का अर्थ:

  • “गदाधर” शब्द का तात्पर्य है “गदा धारण करने वाले,” जो भगवान विष्णु का एक विशेषण है।
  • यहां, गदाधर महाप्रभु के प्रिय सहयोगी श्री गदाधर पंडित को इंगित करता है।

आध्यात्मिक संदर्भ:

गदाधर पंडित महाप्रभु के बचपन के मित्र और उनके प्रमुख सहयोगी थे। वे प्रेम और करुणा के मूर्त स्वरूप थे।


(5) श्रीवासादि

“श्रीवासादि” का अर्थ:

  • “श्रीवास” का तात्पर्य श्रीवास ठाकुर से है, जो महाप्रभु की लीलाओं के प्रमुख भक्तों में से एक थे।
  • “आदि” का अर्थ है “और अन्य।”

आध्यात्मिक संदर्भ:

यहां सभी गौर भक्तों को सम्मानित किया गया है जिन्होंने महाप्रभु की लीलाओं में भाग लिया और हरि नाम संकीर्तन का प्रचार किया।


(6) गौर भक्तवृंद

“गौर भक्तवृंद” का अर्थ:

  • “गौर” का तात्पर्य श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु से है।
  • “भक्तवृंद” का अर्थ है भक्तों का समूह।

आध्यात्मिक संदर्भ:

यह सभी गौर भक्तों की सामूहिक रूप से स्तुति और सम्मान है। ये भक्त महाप्रभु के प्रेम और भक्ति के संदेश को फैलाने वाले थे।


इस श्लोक का संपूर्ण भाव:

यह श्लोक सभी भक्तों को एक आह्वान करता है कि वे श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु, उनके प्रिय सहयोगियों और उनके भक्तों का आदर और स्मरण करें। इस स्तुति का मुख्य उद्देश्य भगवान की महिमा करना और उनकी लीलाओं में समर्पण भावना प्रकट करना है।

श्री गदाधर पंडित और उनकी भक्ति

गदाधर पंडित का परिचय

श्री गदाधर पंडित चैतन्य महाप्रभु के अत्यंत प्रिय भक्त थे। उन्हें राधारानी का अवतार माना जाता है। गदाधर पंडित ने अपने जीवन को पूरी तरह से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया था। वे अत्यंत विनम्र और समर्पित स्वभाव के थे और हमेशा चैतन्य महाप्रभु के निर्देशों का पालन करते थे।

गदाधर पंडित की भक्ति

गदाधर पंडित की भक्ति अद्वितीय थी। उन्होंने श्रीमद्भागवत का कई बार पाठ किया और चैतन्य महाप्रभु के साथ उन्होंने भी कीर्तन और भजन के माध्यम से भक्ति को जन-जन तक पहुँचाया। उनकी भक्ति की विशेषता यह थी कि वह शुद्ध और निस्वार्थ थी। गदाधर पंडित ने जीवनभर भगवान के प्रति प्रेम, समर्पण, और सेवा को ही अपना उद्देश्य माना।

श्रीवास और गौड़ भक्तवृंद

श्रीवास ठाकुर का परिचय

श्रीवास ठाकुर चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख अनुयायियों में से एक थे। उनका घर कीर्तन और भक्ति के प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता था। श्रीवास ठाकुर का जीवन भक्ति, सेवा और प्रेम से भरा हुआ था।

गौड़ भक्तवृंद

गौड़ भक्तवृंद चैतन्य महाप्रभु के अन्य प्रमुख अनुयायी थे, जिन्होंने चैतन्य महाप्रभु के संदेश को प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये भक्तगण भक्ति में लीन होकर भगवान श्रीकृष्ण के नाम का कीर्तन करते और दूसरों को भी भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते थे।


गौड़ भक्तवृंद की महिमा और उनकी भूमिका

गौड़ भक्तवृंद का परिचय

गौड़ भक्तवृंद उन सभी महान भक्तों का समूह है, जो श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के साथ जुड़े थे और जिन्होंने चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आंदोलन में सहयोग दिया। इन भक्तों ने अपनी पूरी जिंदगी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और चैतन्य महाप्रभु के उपदेशों के प्रचार-प्रसार में लगा दी। गौड़ भक्तवृंद ने चैतन्य महाप्रभु के जीवन और संदेश को विश्वभर में फैलाने का कार्य किया। इनमें से कुछ भक्त बहुत प्रसिद्ध थे, जबकि कुछ ने गुप्त रूप से भक्ति का प्रचार किया।

गौड़ भक्तवृंद की सेवा और समर्पण

गौड़ भक्तवृंद का जीवन भक्ति, त्याग और सेवा से परिपूर्ण था। ये भक्तगण बिना किसी स्वार्थ के भगवान श्रीकृष्ण और चैतन्य महाप्रभु की सेवा में लगे रहते थे। इन्होंने कीर्तन, भजन, और प्रवचन के माध्यम से भक्ति को सरल और सुगम बनाया, ताकि आम लोग भी भगवान की शरण में आ सकें। इन भक्तों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि ये अपने जीवन को पूरी तरह से भगवान के चरणों में समर्पित कर चुके थे और दूसरों को भी इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते थे।

गौड़ भक्तवृंद का योगदान

गौड़ भक्तवृंद का योगदान केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। इन्होंने श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के संदेश को पूरे विश्व में फैलाया। इन भक्तों ने समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने का प्रयास किया और सभी को भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनकी भक्ति की शक्ति और समर्पण के कारण ही चैतन्य महाप्रभु का भक्ति आंदोलन इतना प्रभावशाली और व्यापक बना।

चैतन्य महाप्रभु के भक्तों के जीवन का संदेश

प्रेम और करुणा का संदेश

श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु और उनके भक्तों का जीवन प्रेम और करुणा से भरा हुआ था। उन्होंने सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और दया दिखाने का संदेश दिया। चैतन्य महाप्रभु ने विशेष रूप से यह सिखाया कि हर प्राणी भगवान का अंश है, इसलिए सभी के साथ प्रेम और करुणा से पेश आना चाहिए। उनकी भक्ति केवल भगवान की पूजा तक सीमित नहीं थी, बल्कि समाज के हर व्यक्ति की सेवा और प्रेम के रूप में भी प्रकट होती थी।

कीर्तन और भक्ति का महत्व

चैतन्य महाप्रभु और उनके अनुयायियों ने कीर्तन को भक्ति का मुख्य साधन माना। कीर्तन के माध्यम से भगवान के नाम का स्मरण और उनके गुणों की प्रशंसा की जाती है। कीर्तन एक ऐसा साधन है, जिसमें भक्तगण मिलकर भगवान के नाम का गान करते हैं और उनकी भक्ति में लीन हो जाते हैं। चैतन्य महाप्रभु का मानना था कि भगवान के नाम का जाप और कीर्तन ही मोक्ष प्राप्ति का सरलतम मार्ग है।

विनम्रता और सेवा का भाव

चैतन्य महाप्रभु और उनके भक्तों का जीवन विनम्रता और सेवा के आदर्श पर आधारित था। उन्होंने सिखाया कि सच्ची भक्ति के लिए विनम्रता और सेवा का भाव आवश्यक है। भक्ति केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं होती, बल्कि दूसरों की सेवा, सहायता और उनके प्रति प्रेम और सहानुभूति दिखाना भी भक्ति का हिस्सा है। चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों ने अपने जीवन में इन आदर्शों का पालन करते हुए समाज की सेवा की।

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