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- – कविता में दुनिया की नफरत और दुखों को दर्शाया गया है, जहाँ इंसान बेबस और लाचार महसूस करता है।
- – गरीबी और धन के कारण रिश्तों का व्यापार होना समाज की एक बड़ी समस्या के रूप में प्रस्तुत है।
- – प्राकृतिक सौंदर्य और शांति की जगह अब नफरत और हिंसा ने ले ली है, जिससे देश में अशांति फैली है।
- – कवि माँ से आग्रह करता है कि वह पत्थर की कठोर दुनिया से बाहर निकलकर इस दुखी संसार को एक बार देखे।
- – यह कविता समाज में व्याप्त दुख, असमानता और नफरत के प्रति जागरूकता और परिवर्तन की आवश्यकता को उजागर करती है।

पत्थर की दुनिया से निकलके,
देखो माँ इक बार,
कितना दुखी संसार।।
तर्ज – नफरत की दुनिया को छोड़कर।
हर आँख में आँसू,
पलकों में है नमी,
सुख से नहीं कोई,
दुनिया में आदमी,
बेबस है बड़ा इंसान,
भगत है आज बड़े लाचार,
कितना दुखी संसार।
पत्थर की दुनिया से निकल के,
देखो माँ इक बार,
कितना दुखी संसार।।
पूछो गरीबो से,
जिनकी हुई है ठि,
कैसे वो ब्याहेंगे,
नाजो पली बेटी,
दौलत की दुनिया में,
हो रहा रिश्तो का व्यापार,
कितना दुखी संसार।
पत्थर की दुनिया से निकल के,
देखो माँ इक बार,
कितना दुखी संसार।।
चन्दन थी जो धरती,
बारूद से महकी,
नफरत की फिर ज्वाला,
मेरे देश में दहकि,
बेधड़क बता माँ कब होगा फिर,
दुनिया में अवतार,
कितना दुखी संसार।
पत्थर की दुनिया से निकलके,
देखो माँ इक बार,
कितना दुखी संसार।।
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।
