- – भजन में प्रभु से सेवा और शरण की प्रार्थना की गई है, जिसमें भक्त अपना जीवन प्रभु को समर्पित करना चाहता है।
- – भक्त निरंतर प्रभु की सेवा में रहना चाहता है और उनकी कृपा एवं संरक्षण की कामना करता है।
- – जीवन की सीमित सांसों के बीच प्रभु के चरणों में शरण लेकर शांति और मोक्ष की इच्छा व्यक्त की गई है।
- – भजन में प्रभु के अवतार लेने पर उन्हें अपना सेवक बनाने की विनम्र याचना की गई है।
- – यह भजन श्री शिवनारायण वर्मा द्वारा रचित है, जो भक्तिभाव से ओतप्रोत है।
प्रभू जग में अवतार जब लीजियेगा,
मुझे अपना सेवक बना लीजियेगा।
तर्ज – अजी रूठ कर अब कहाँ।
सदा करना चाहूँ में सेवा तुम्हारी,
हमेशा रहूँ मै ऱजा में तुम्हारी,
यही आरजू है प्रभू बस हमारी,
पनाह दीजियेगा शरण लीजियेगा,
प्रभू जग मे अवतार जब लीजियेगा,
मुझे अपना सेवक बना लीजियेगा।
सदा तेरे दर का रहूँ मे भिखारी,
प्रभू चाकरी मै करूँ बस तूम्हारी,
शरण चाहता हूँ प्रभू मै तुम्हारी,
करम कीजियेगा करम कीजियेगा,
प्रभू जग मे अवतार जब लीजियेगा,
मुझे अपना सेवक बना लीजियेगा।
है छोटी सी विनती ये साँसे भी है कम,
प्रभू तेरे दर पर ही निकले मेरा दम,
तो मरने का मुझको न होगा कोई ग़म,
चरण मेरे सिर से लगा दीजियेगा,
प्रभू जग मे अवतार जब लीजियेगा,
मुझे अपना सेवक बना लीजियेगा।
प्रभू जग में अवतार जब लीजियेगा,
मुझे अपना सेवक बना लीजियेगा।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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