मुख्य बिंदु
- – यह भजन भवसागर (जन्म-मरण के संसार) से मुक्ति का कारण बताता है और रविन्द्र बन्धन (अज्ञानता के बंधन) को तोड़ने का आग्रह करता है।
- – गुरुदेव को दया करने वाला बताया गया है जो शरणागत और भीत लोगों का सहारा है।
- – गुरुदेव को विष्णु, शंकर, परब्रह्म और वेदों का स्वरूप माना गया है जो अंधकार को दूर करने वाले और मन के चंचलता को शांत करने वाले हैं।
- – गुरुदेव को नरत्राण (मनुष्यों के उद्धारकर्ता), गुणगान के परायण और मंगलनायक के रूप में पूजा जाता है।
- – भजन में गुरुदेव से अभिमान, प्रभाव और शंका को दूर करने तथा भक्तों की रक्षा करने की प्रार्थना की गई है।
- – अंत में गुरुदेव को ईश्वर, रोग और विकार नाशक बताया गया है, जिनके चरणों में मन स्थिर रहता है और जो भक्तों को मोक्ष प्रदान करते हैं।

भजन के बोल
भवसागर तारण कारण हे ।
रविनन्दन बन्धन खण्डन हे ॥
शरणागत किंकर भीत मने ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥१॥
हृदिकन्दर तामस भास्कर हे ।
तुमि विष्णु प्रजापति शंकर हे ॥
परब्रह्म परात्पर वेद भणे ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥२॥
मनवारण शासन अंकुश हे ।
नरत्राण तरे हरि चाक्षुष हे ॥
गुणगान परायण देवगणे ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥३॥
कुलकुण्डलिनी घुम भंजक हे ।
हृदिग्रन्थि विदारण कारक हे ॥
मम मानस चंचल रात्रदिने ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥४॥
रिपुसूदन मंगलनायक हे ।
सुखशान्ति वराभय दायक हे ।
त्रयताप हरे तव नाम गुणे
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥५॥
अभिमान प्रभाव विमर्दक हे ।
गतिहीन जने तुमि रक्षक हे ॥
चित शंकित वंचित भक्तिधने ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥६॥
तव नाम सदा शुभसाधक हे ।
पतिताधम मानव पावक हे ॥
महिमा तव गोचर शुद्ध मने ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥७॥
Bhakti Bharat Lyrics
जय सद्गुरु ईश्वर प्रापक हे ।
भवरोग विकार विनाशक हे ॥
मन जेन रहे तव श्रीचरणे ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥८॥
