- – प्रेम की अनुभूति अनंत और अगम होती है, जो व्यक्ति के हर रोम-रोम को संत बनाती है।
- – सच्चा प्रेम केवल बाहरी नहीं, बल्कि हृदय के भीतर गहराई से अनुभव किया जाता है।
- – प्रेम को न तो खरीदा जा सकता है और न ही बेचा जा सकता है; यह केवल हृदय की सच्ची भक्ति से प्राप्त होता है।
- – प्रेम में डूबा व्यक्ति अपने मन में भगवान की छवि बसाता है और जीवन सफल होता है।
- – सच्चे प्रेम में दुख और त्याग शामिल होते हैं, और इसे समझना और निभाना कठिन होता है।
- – प्रेम की सच्चाई को पहचानने वाला ही वास्तविक प्रेमी होता है, जो अपने समर्पण से महान संत बन जाता है।

प्रेम जब अनंत हो गया,
रोम रोम संत हो गया,
देवालय बन गया बदन,
संत तो महंत हो गया।।
प्रेम पंत अति ही अगम,
पार ना पावे कोय,
जा ऊपर हरी कृपा करे,
ता घट भीतर होय,
प्रेम जब अनंत हों गया,
रोम रोम संत हो गया।।
प्रेम ना बाड़ी उपजे,
प्रेम ना हाट बिकाय,
राजा परजा जो रुचे,
शीश दिए ले जाए,
प्रेम जब अनंत हों गया,
रोम रोम संत हो गया।।
प्रेम करो घनश्याम सो,
मन में छवि बसाय,
हरी चरणन भक्ति मिले,
जनम सफल होय जाय,
प्रेम जब अनंत हों गया,
रोम रोम संत हो गया।।
लाली मेरे लाल की,
जित देखू तित लाल,
लाल ही ढूंडन मैं गई ,
मैं भी हो गई लाल,
प्रैम जब अनंत हो गया,
रोम रोम संत हो गया।।
जो मैं ऐसो जानती,
प्रीत करे दुःख होय,
नगर ढिंढोरा पीटती,
प्रीत ना करीयो कोय,
प्रैम जब अनंत हो गया,
रोम रोम संत हो गया।।
प्रेम प्रेम सब कोई कहे,
प्रेम ना जाने कोय,
शीश काट हाथई धरो,
प्रेम कहावे सोय,
प्रैम जब अनंत हो गया,
रोम रोम संत हो गया।।
प्रेम जब अनंत हो गया,
रोम रोम संत हो गया,
देवालय बन गया बदन,
संत तो महंत हो गया।।
