- – यह गीत होली के त्योहार की खुशियों और रंगों का वर्णन करता है, जिसमें सांवरे रंग की विशेष भूमिका है।
- – गीत में प्रेम और आकर्षण की भावना प्रकट होती है, जहां मोपे (गाल) पर रंग डालने की बात कही गई है।
- – गीत की भाषा और शैली में पारंपरिक लोक संगीत की झलक मिलती है, जो राजस्थान और उत्तर भारत की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है।
- – होली के रंगों और उत्सव के बीच प्रेमी की बेचैनी और भावनाओं को सुंदरता से व्यक्त किया गया है।
- – गीत के स्वर श्री चित्र विचित्र महाराज जी के हैं, और इसे कृष्णकांत जी शास्त्री (बरसाना धाम) ने प्रस्तुत किया है।

रंग डार गयो री मोपे सांवरा,
मर गयी लाजन हे री मेरी बीर,
मैं का करूँ सजनी होरी में,
रंग डार गयो री मोपे साँवरा।।
मारी तान के ऐसी मोपे पिचकारी,
मारी तान के ऐसी मोपे पिचकारी,
मेरो भीज्यो तन को चीर,
मैं का करूँ सजनी होरी में,
रंग डार गयो री मोपे साँवरा।।
रंग डारी चुनर कोरी रे,
रंग डारी चुनर कोरी रे,
मेरे भर गयो नैनन अबीर,
मैं का करूँ सजनी होरी में,
रंग डार गयो री मोपे साँवरा।।
मेरो पीछा ना छोड़े ये होरी में,
मेरो पीछा ना छोड़े ये होरी में,
एक नन्द गाँव को अहीर,
मैं का करूँ सजनी होरी में,
रंग डार गयो री मोपे साँवरा।।
पागल के ‘चित्र विचित्र’ संग,
पागल के ‘चित्र विचित्र’ संग,
होरी भई यमुना के तीर,
मैं का करूँ सजनी होरी में,
रंग डार गयो री मोपे साँवरा।।
रंग डार गयो री मोपे सांवरा,
मर गयी लाजन हे री मेरी बीर,
मैं का करूँ सजनी होरी में,
रंग डार गयो री मोपे साँवरा।।
स्वर – श्री चित्र विचित्र महाराज जी।
प्रेषक – कृष्णकांत जी शास्त्री (बरसाना धाम)
