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रोज रोज का ओलमा क्यों ल्यावे म्हारा कानुड़ा – Roj Roj Ka Olma Kyon Lyave Mhara Kanuda – Hinduism FAQ

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  • – यह कविता रोज-रोज की ओलमा (शिकायतों या परेशानियों) को लेकर है, जो कानुड़ा (संभवत: व्यक्ति या पात्र) के जीवन में आती रहती हैं।
  • – कविता में कानुड़ा की बदनामी, गुजरिया के चक्कर में पड़ना, और अन्य समस्याओं का उल्लेख है।
  • – कानुड़ा के जीवन में विभिन्न घटनाएं जैसे गोकुल का कांकड़ में गाय चराना, मटकी फोड़ना, और जमना नदी में गुजरिया का नहाना शामिल हैं।
  • – लेखक प्रकाश जी माली ने इस कविता के माध्यम से कानुड़ा की परेशानियों और सामाजिक जीवन की झलक प्रस्तुत की है।
  • – कविता में स्थानीय भाषा और संस्कृति की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
  • – यह रचना मेहंदवास के लेखक द्वारा लिखी गई है और सिंगर मुकेश बंजारा द्वारा प्रेषित की गई है।

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रोज रोज का ओलमा क्यों,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।



भला घरा को लाडलो,

बदनामी होवे र क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।



गुजरिया का चक्कर में क्यों,

पड़ ग्यो रे म्हारा क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।



गोकुल का कांकड़ में गाया,

चरावे म्हारा क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।



मने एकली देख मटकी,

फोड़े रे म्हारा क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।



जमना नहाती गुजरिया का,

चीर चुरावे क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।



रोज रोज का ओलमा क्यों,

ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।

लेखक – सिंगर प्रकाश जी माली,
मेहंदवास।
प्रेषक -सिंगर मुकेश बंजारा,
बनियानी।
मो.7073387766


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