- – जीवन की हर सांस में श्याम प्रभु का नाम लेकर उनकी भक्ति करनी चाहिए।
- – सांसों को भावों से जोड़कर, उन्हें बाबा को भेंट करना चाहिए।
- – सांसें अस्थायी हैं, इसलिए उनका सदुपयोग कर बाबा को समर्पित करना आवश्यक है।
- – जो सांसें हमें मिली हैं, उनका उपयोग भगवान के नाम और भक्ति में करना चाहिए।
- – सांसों की गिनती नहीं होती, पर हर सांस हमें श्याम से जोड़ती है।
- – सांसों का हार बना कर और भावों को पिरो कर बाबा को अर्पित करना जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।
सांसो का बना के हार,
बाबा को चढ़ा दे।
श्लोक – जीवन की हर साँस में,
लिख दे श्याम प्रभु का नाम,
भावों भरी सांसो की माला,
स्वीकार करेंगे श्याम।
सांसो का बना के हार,
बाबा को चढ़ा दे,
भावों का पिरो के हार,
बाबा को चढ़ा दे।।
सांसो का ठिकाना क्या है,
धोखा दे जाएगी,
इक पल आएगी,
दूजे पल रुक जाएगी,
तेरी साँसों का उपहार,
बाबा को चढ़ा दे,
साँसो का बना के हार,
बाबा को चढ़ा दे।।
जिसने ये बख़्शी सांसे,
उसके ही नाम कर,
परलोक का भी प्यारे,
थोड़ा इंतजाम कर,
हो जायेगा भव पार,
बाबा को चढ़ा दे,
साँसो का बना के हार,
बाबा को चढ़ा दे।।
किसने गिनी है सांसे,
कितनी ये आएगी,
एक सांस बन्दे तुझको,
श्याम से मिलाएगी,
ऐ ‘हर्ष’ तेरे उद्गार,
बाबा को चढ़ा दे,
सांसो का बना के हार,
बाबा को चढ़ा दे।।
सांसो का बना के हार,
बाबा को चढ़ा दे,
भावों का पिरो के हार,
बाबा को चढ़ा दे।।