- – यह कविता भगवान शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा को दर्शाती है, जो संकट के समय में सहारा बनते हैं।
- – महादेव को त्रिभुवन का सबसे बड़ा और मालिक बताया गया है, जो जीवन की नैया को पार लगाते हैं।
- – भगवान शिव को दाता और संकटमोचक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो सभी की झोली भरते हैं।
- – कठिन काल और कलियुग में शिव का ध्यान और भक्ति ही जीवन को सरल बनाती है।
- – कवि अपने आप को शिव का भिखारी मानता है और उनसे आशीर्वाद एवं सहायता की प्रार्थना करता है।
- – “डमरू वाले भोले भाले” शिव के सरल, दयालु और शक्तिशाली स्वरूप का प्रतीक है, जिन पर पूरी श्रद्धा व्यक्त की गई है।

संकट का नजारा है,
अब तू ही सहारा है,
डमरू वाले भोले भाले,
मेने दामन पसारा है।।
तर्ज – एक प्यार का नगमा है
त्रिभुवन में बड़ा सबसे,
महादेव कहाता है,
भव डूबती नैया को,
तू ही पार लगाता है,
मालिक है ज़माने का,
किश्ती का किनारा है,
डमरू वाले भोले भाले,
मेने दामन पसारा है।।
चौखट से तेरी कोई,
खाली नही जाता है,
भरता है सदा झोली,
दाताओ का दाता है,
औरो के लिए अम्रत,
खुद जहर पचाया है,
डमरू वाले भोले भाले,
मेने दामन पसारा है।।
कलि काल में मुश्किल है,
तेरा ध्यान धरु कैसे,
दुश्वार हुआ जीना,
व्रत नेम करू कैसे,
भक्ति ना कोई तप है,
एक नाम तुम्हारा है,
डमरू वाले भोले भाले,
मेने दामन पसारा है।।
तेरे दर का भिखारी हु,
तेरे द्वार पे आया हु,
झोली को मेरी भर दो,
अरमान ये लाया हु,
चेतन हो तुम्ही जग में,
जग तुमसे ही सारा है,
डमरू वाले भोले भाले,
मेने दामन पसारा है।।
संकट का नजारा है,
अब तू ही सहारा है,
डमरू वाले भोले भाले,
मेने दामन पसारा है।।
