- – यह गीत संत मारी आत्मा और उनके भक्तों की भक्ति और प्रेम को दर्शाता है, जिसमें प्रभु के प्रति समर्पण की भावना प्रकट होती है।
- – “संतों वाली टोगडी” का उल्लेख बार-बार आता है, जो संतों की विशेष पहचान और सम्मान को दर्शाता है।
- – गीत में राम और पीर दोनों के प्रति समान श्रद्धा और सहिष्णुता का संदेश दिया गया है।
- – गीत में ग्रामीण जीवन, सामाजिक और धार्मिक परंपराओं का चित्रण मिलता है, जैसे जाटों और अन्य समुदायों का उल्लेख।
- – गायक प्रकाश माली जी द्वारा प्रस्तुत यह गीत शुद्ध लोक संगीत की छाप छोड़ता है और सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है।
- – यह गीत भक्ति, सांस्कृतिक एकता और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है, जो श्रोताओं को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ता है।

कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे,
दोहा – संत मारी आत्मा,
और मैं संतन की देह,
रोम रोम में रम रिया प्रभु,
जो बादल मेंह।
कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे,
कौन जिनावर जाय,
संतो वाली टोगडी,
अरे साधो वाली टोगडी,
संतो वाली टोगडी ने,
चीतरो लीयो जावे रे हरामी,
चीतरो रे,
टोगडी मत मारे भोला,
साध री रे जियो,
राम सा जियो पीर सा जिओ,
जियो रे भाई जिओ,
कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे।।
अरे गाया चाली गोरी रे राम,
बेसिया पीवण जाय,
संतो वाली टोगडी रे,
सामी काकड जावे,
हरामी चितरो रे,
टोगडी मत मारे भोला,
साध री रे जियो,
राम सा जियो पीर सा जिओ,
जियो रे भाई जिओ,
कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे।।
हाथ में सोने रो चुट्टियों,
रामदेव धणी आवे,
संतो वाली टोगडी ने,
घेर घेर ने लावे,
हरामी चितरा रे,
टोगडी मत मारे भोला,
साध री रे जियो,
राम सा जियो पीर सा जिओ,
जियो रे भाई जिओ,
कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे।।
गांव में जुडीया मे बापजी,
जाट रुपजी बोले,
संतो वाली टोगडी आ,
अमरापुर में बोले,
हरामी चीतरा रे,
टोगडी मत मारे भोला,
साध री रे जियो,
राम सा जियो पीर सा जिओ,
जियो रे भाई जिओ,
कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे।।
कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे,
कौन जिनावर जाय,
संतो वाली टोगडी,
अरे साधो वाली टोगडी,
संतो वाली टोगडी ने,
चीतरो लीयो जावे रे हरामी,
चीतरो रे,
टोगडी मत मारे भोला,
साध री रे जियो,
राम सा जियो पीर सा जिओ,
जियो रे भाई जिओ,
कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे।।
गायक – प्रकाश माली जी।
प्रेषक – SHREE DEV ENTERTAINMENT,
(NATHU KUMAWAT)
9121040117
https://www.youtube.com/watch?v=DcXYlOZpDg8
