संतोषी माता चालीसा in Hindi/Sanskrit
॥ दोहा ॥
बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार ।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार ॥
भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम ।
कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम ॥
॥ चौपाई ॥
जय सन्तोषी मात अनूपम ।
शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा ।
वेश मनोहर ललित अनुपा ॥
श्वेताम्बर रूप मनहारी ।
माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन ।
दर्शन से हो संकट मोचन ॥ 4 ॥
जय गणेश की सुता भवानी ।
रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया ।
सब पर करो कृपा की छाया ॥
नाम अनेक तुम्हारे माता ।
अखिल विश्व है तुमको ध्याता ॥
तुमने रूप अनेकों धारे ।
को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥ 8 ॥
धाम अनेक कहाँ तक कहिये ।
सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी ।
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥
कलकत्ते में तू ही काली ।
दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती ।
भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥ 12 ॥
ज्वाला जी में ज्वाला देवी ।
पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥
नगर बम्बई की महारानी ।
महा लक्ष्मी तुम कल्याणी ॥
मदुरा में मीनाक्षी तुम हो ।
सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥
राजनगर में तुम जगदम्बे ।
बनी भद्रकाली तुम अम्बे ॥ 16 ॥
पावागढ़ में दुर्गा माता ।
अखिल विश्व तेरा यश गाता ॥
काशी पुराधीश्वरी माता ।
अन्नपूर्णा नाम सुहाता ॥
सर्वानन्द करो कल्याणी ।
तुम्हीं शारदा अमृत वाणी ॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में ।
दुःख दारिद्र सब मेटो पल में ॥ 20 ॥
जेते ऋषि और मुनीशा ।
नारद देव और देवेशा ।
इस जगती के नर और नारी ।
ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी ॥
जापर कृपा तुम्हारी होती ।
वह पाता भक्ति का मोती ॥
दुःख दारिद्र संकट मिट जाता ।
ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता ॥ 24 ॥
जो जन तुम्हरी महिमा गावै ।
ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै ॥
जो मन राखे शुद्ध भावना ।
ताकी पूरण करो कामना ॥
कुमति निवारि सुमति की दात्री ।
जयति जयति माता जगधात्री ॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन ।
जो व्रत करे तुम्हारा पावन ॥ 28 ॥
गुड़ छोले का भोग लगावै ।
कथा तुम्हारी सुने सुनावै ॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी ।
फिर प्रसाद पावे शुभकारी ॥
शक्ति-सामरथ हो जो धनको ।
दान-दक्षिणा दे विप्रन को ॥
वे जगती के नर औ नारी ।
मनवांछित फल पावें भारी ॥ 32 ॥
जो जन शरण तुम्हारी जावे ।
सो निश्चय भव से तर जावे ॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे ।
निश्चय मनवांछित वर पावै ॥
सधवा पूजा करे तुम्हारी ।
अमर सुहागिन हो वह नारी ॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा ।
भवसागर से उतरे पारा ॥ 36 ॥
जयति जयति जय संकट हरणी ।
विघ्न विनाशन मंगल करनी ॥
हम पर संकट है अति भारी ।
वेगि खबर लो मात हमारी ॥
निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता ।
देह भक्ति वर हम को माता ॥
यह चालीसा जो नित गावे ।
सो भवसागर से तर जावे ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
संतोषी माँ के सदा बंदहूँ पग निश वास ।
पूर्ण मनोरथ हो सकल मात हरौ भव त्रास ॥
॥ इति श्री संतोषी माता चालीसा ॥
Santoshi Mata Chalisa in English
॥ Doha ॥
Bandau Santoshi Charan Riddhi-Siddhi Datar
Dhyan Dharat Hi Hot Nar Dukh Sagar Se Paar
Bhaktan Ko Santosh De Santoshi Tav Naam
Kripa Karahu Jagdamb Ab Aaya Tere Dham
॥ Chaupai ॥
Jai Santoshi Mata Anupam
Shanti Dayini Roop Manoram
Sundar Varan Chaturbhuj Roopa
Vesh Manohar Lalit Anupa
Shvetambar Roop Manhari
Maa Tumhari Chhavi Jag Se Nyari
Divya Swaroopa Ayat Lochan
Darshan Se Ho Sankat Mochan
Jai Ganesh Ki Suta Bhavani
Riddhi-Siddhi Ki Putri Gyani
Agam Agochar Tumhari Maya
Sab Par Karo Kripa Ki Chhaya
Naam Anek Tumhare Mata
Akhil Vishv Hai Tumko Dhyata
Tumne Roop Aneko Dhare
Ko Kahi Sake Charitra Tumhare
Dham Anek Kahan Tak Kahiye
Sumiran Tab Karke Sukh Lahiye
Vindhyachal Mein Vindhyavasini
Koteswar Saraswati Suhasini
Kalkatte Mein Tu Hi Kali
Dusht Nashini Mahakarali
Sambal Pur Bahuchara Kahati
Bhaktjanon Ka Dukh Mitati
Jwala Ji Mein Jwala Devi
Poojat Nitya Bhakt Jan Sevi
Nagar Bambai Ki Maharani
Maha Lakshmi Tum Kalyani
Madura Mein Meenakshi Tum Ho
Sukh Dukh Sabki Sakshi Tum Ho
Rajnagar Mein Tum Jagdambe
Bani Bhadrakali Tum Ambe
Pavagadh Mein Durga Mata
Akhil Vishv Tera Yash Gata
Kashi Puradhishwari Mata
Annapurna Naam Suhata
Sarvanand Karo Kalyani
Tumhi Sharada Amrit Vani
Tumhari Mahima Jal Mein Thal Mein
Dukh Daridra Sab Meto Pal Mein
Jete Rishi Aur Munisha
Narad Dev Aur Devesha
Is Jagati Ke Nar Aur Nari
Dhyan Dharat Hain Maat Tumhari
Jaapar Kripa Tumhari Hoti
Vah Pata Bhakti Ka Moti
Dukh Daridra Sankat Mit Jata
Dhyan Tumhara Jo Jan Dhyata
Jo Jan Tumhari Mahima Gave
Dhyan Tumhara Kar Sukh Pave
Jo Man Rakhe Shuddh Bhavana
Taki Puran Karo Kamana
Kumati Nivari Sumati Ki Daatri
Jayati Jayati Mata Jagdhatri
Shukravar Ka Diwas Suhavan
Jo Vrat Kare Tumhara Paavan
Gud Chhole Ka Bhog Lagave
Katha Tumhari Sune Sunave
Vidhivat Pooja Kare Tumhari
Fir Prasad Pave Shubhkaari
Shakti-Samarth Ho Jo Dhanko
Daan-Dakshina De Vipran Ko
Ve Jagati Ke Nar Au Nari
Manvanchhit Phal Pave Bhari
Jo Jan Sharan Tumhari Jave
So Nishchay Bhav Se Tar Jave
Tumharo Dhyan Kumari Dhyave
Nishchay Manvanchhit Var Pave
Sadhva Pooja Kare Tumhari
Amar Suhagin Ho Vah Nari
Vidhva Dhar Ke Dhyan Tumhara
Bhavsagar Se Utre Para
Jayati Jayati Jai Sankat Harni
Vighn Vinashan Mangal Karni
Hum Par Sankat Hai Ati Bhari
Veg Khbar Lo Maat Hamari
Nishidin Dhyan Tumharo Dhyata
Deh Bhakti Var Ham Ko Mata
Yah Chalisa Jo Nit Gave
So Bhavsagar Se Tar Jave
॥ Doha ॥
Santoshi Maa Ke Sada Bandahun Pag Nish Vas
Poorn Manorath Ho Sakal Maat Harau Bhav Traas
॥ Iti Shri Santoshi Mata Chalisa ॥
संतोषी माता चालीसा PDF Download
संतोषी माता चालीसा का अर्थ
संतोषी माता का चालीसा एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जिसमें माँ संतोषी की महिमा, उनके दिव्य रूप और उनकी कृपा का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह चालीसा उन भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी है, जो श्रद्धा और विश्वास के साथ इसका पाठ करते हैं। संतोषी माता को संतोष की देवी माना जाता है और उनकी पूजा से जीवन के कष्ट, दुख और संकट दूर हो जाते हैं। आइए अब हम इस चालीसा के हर दोहे और चौपाई का विस्तृत रूप से अध्ययन करते हैं।
दोहा
बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥
इस दोहे में भक्त संतोषी माता के चरणों में श्रद्धा अर्पित करता है। माता को रिद्धि-सिद्धि (समृद्धि और सफलता) देने वाली देवी कहा गया है। माता का ध्यान करने से व्यक्ति के सभी दुःख और समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं और वह जीवन के कठिनाइयों के सागर से पार हो जाता है।
भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम।
कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम॥
यहाँ भक्त माता से यह प्रार्थना करता है कि वह अपने नाम से संतोष प्रदान करें। माता को जगदम्ब (समस्त सृष्टि की माता) कहा गया है और भक्त उनसे कृपा की याचना करता है, यह कहते हुए कि वह आपके धाम (स्थान) में आ चुका है।
जय सन्तोषी मात अनूपम
शान्ति दायिनी रूप मनोरम
इस चौपाई में संतोषी माता की प्रशंसा की गई है। उन्हें ‘अनूपम’ (अतुलनीय) और ‘शान्ति दायिनी’ (शांति देने वाली) कहा गया है। उनका रूप अत्यंत सुन्दर और मन को भाने वाला है, जो भक्तों को शांति प्रदान करता है।
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा
वेश मनोहर ललित अनुपा
माता संतोषी का वर्णन किया गया है कि उनका रूप सुन्दर है और वे चतुर्भुज (चार भुजाओं वाली) हैं। उनके वस्त्र और वेश भी अत्यंत मनोहर हैं, जो उनकी अनुपमता को और बढ़ाते हैं।
श्वेताम्बर रूप मनहारी
माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी
यहाँ संतोषी माता के श्वेत वस्त्र (सफेद वस्त्र) पहनने का वर्णन है, जो उनकी दिव्य और मनोहारी छवि को दर्शाता है। उनकी छवि संसार में सबसे अनोखी और अनूठी मानी जाती है।
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन
दर्शन से हो संकट मोचन
माता का स्वरूप दिव्य है और उनके नेत्र (आंखें) आयताकार हैं। उनकी दिव्य दृष्टि से भक्तों के सभी संकट समाप्त हो जाते हैं। उनके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं।
जय गणेश की सुता भवानी
रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी
संतोषी माता को भगवान गणेश की पुत्री कहा गया है। वे रिद्धि और सिद्धि की भी पुत्री हैं और अत्यंत ज्ञानी हैं। उनकी शक्ति और ज्ञान से भक्तों को मार्गदर्शन मिलता है।
अगम अगोचर तुम्हरी माया
सब पर करो कृपा की छाया
माता की माया (शक्ति) अगम और अगोचर है, जिसे समझ पाना बहुत कठिन है। वे सभी पर अपनी कृपा की छाया डालती हैं, जिससे भक्तों के जीवन में सुख और शांति आती है।
नाम अनेक तुम्हारे माता
अखिल विश्व है तुमको ध्याता
संतोषी माता के अनेक नाम हैं और सम्पूर्ण विश्व उनका ध्यान करता है। उनके अनेक रूप और नाम हैं, जिनसे सभी प्राणियों को आनंद और संतोष प्राप्त होता है।
तुमने रूप अनेकों धारे
को कहि सके चरित्र तुम्हारे
माता ने समय-समय पर अनेक रूप धारण किए हैं। उनके चरित्र को कोई भी पूर्ण रूप से वर्णन नहीं कर सकता। उनकी महिमा असीम है और हर रूप में वे भक्तों के संकटों को दूर करती हैं।
धाम अनेक कहाँ तक कहिये
सुमिरन तब करके सुख लहिये
माता के अनेकों धाम (निवास स्थान) हैं, जिनका वर्णन करना बहुत कठिन है। जो व्यक्ति उनका सुमिरन (स्मरण) करता है, वह सुख प्राप्त करता है और उसकी समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं।
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी
संतोषी माता विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी के रूप में निवास करती हैं। वे कोटेश्वर में सरस्वती के रूप में भी पूजित हैं। उनकी यह रूप मनोहारी और भक्तों के लिए कल्याणकारी है।
कलकत्ते में तू ही काली
दुष्ट नाशिनी महाकराली
माता कोलकाता में काली के रूप में पूजित हैं, जहाँ वे दुष्टों का नाश करती हैं। उनका यह रूप अत्यंत भयानक और महाकराली है, जो दुष्टों का संहार करती हैं।
सम्बल पुर बहुचरा कहाती
भक्तजनों का दुःख मिटाती
संतोषी माता को सम्बलपुर में बहुचरा देवी के नाम से जाना जाता है। वहाँ वे भक्तजनों के सभी दुखों का नाश करती हैं और उन्हें सुख प्रदान करती हैं।
ज्वाला जी में ज्वाला देवी
पूजत नित्य भक्त जन सेवी
माता संतोषी को ज्वाला जी में ज्वाला देवी के रूप में पूजा जाता है। यहाँ माता की पूजा नित्य (प्रतिदिन) भक्तों द्वारा की जाती है, जो सेवा भाव से उनका ध्यान और स्मरण करते हैं। ज्वाला देवी का रूप अद्भुत है, जो हर पल भक्तों के संकटों को हरने वाली है।
नगर बम्बई की महारानी
महा लक्ष्मी तुम कल्याणी
संतोषी माता मुंबई में महालक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्हें बम्बई की महारानी कहा गया है। उनका यह रूप भक्तों को समृद्धि और कल्याण प्रदान करता है। महालक्ष्मी का आशीर्वाद जीवन में धन, सुख और शांति का संचार करता है।
मदुरा में मीनाक्षी तुम हो
सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो
मदुरै में माता मीनाक्षी के रूप में विराजमान हैं। वे सुख-दुख की साक्षी हैं, जो हर व्यक्ति के जीवन के उतार-चढ़ाव को देखती और उनकी सहायता करती हैं। मीनाक्षी देवी का यह रूप अत्यंत पूजनीय है और भक्तों के लिए कल्याणकारी है।
राजनगर में तुम जगदम्बे
बनी भद्रकाली तुम अम्बे
राजनगर में संतोषी माता भद्रकाली के रूप में पूजित हैं। वे जगदम्बा (संपूर्ण संसार की माता) हैं, जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके जीवन के सभी संकटों का नाश करती हैं। भद्रकाली का यह रूप अत्यंत शक्तिशाली और मंगलकारी है।
पावागढ़ में दुर्गा माता
अखिल विश्व तेरा यश गाता
पावागढ़ में माता दुर्गा के रूप में विराजमान हैं। यहाँ उनका यश सम्पूर्ण विश्व में गाया जाता है। उनकी शक्ति और महिमा का कोई अंत नहीं है। माता दुर्गा की पूजा से भक्तों को जीवन में विजय और शांति प्राप्त होती है।
काशी पुराधीश्वरी माता
अन्नपूर्णा नाम सुहाता
काशी में संतोषी माता अन्नपूर्णा के रूप में पूजित हैं। अन्नपूर्णा देवी को अन्न (खाद्य) की देवी माना जाता है। उनके आशीर्वाद से भक्तों को कभी भी भुखमरी या अभाव का सामना नहीं करना पड़ता। उनका नाम ही सुख और समृद्धि का प्रतीक है।
सर्वानन्द करो कल्याणी
तुम्हीं शारदा अमृत वाणी
माता सभी को आनंद और कल्याण प्रदान करती हैं। उन्हें शारदा देवी (ज्ञान और संगीत की देवी) के रूप में भी पूजा जाता है। उनकी अमृतमयी वाणी से भक्तों को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। शारदा देवी का आशीर्वाद जीवन में शांति और प्रसन्नता लाता है।
तुम्हरी महिमा जल में थल में
दुःख दारिद्र सब मेटो पल में
संतोषी माता की महिमा जल, थल और आकाश में व्याप्त है। वे सर्वव्यापी हैं और उनकी शक्ति से भक्तों के सभी दुख और दारिद्र्य पल भर में समाप्त हो जाते हैं। माता की कृपा से जीवन में सुख और समृद्धि का संचार होता है।
जेते ऋषि और मुनीशा
नारद देव और देवेशा
यहाँ यह वर्णन किया गया है कि सभी ऋषि, मुनि, देवता और यहां तक कि नारद मुनि भी संतोषी माता की महिमा का गुणगान करते हैं। उनकी कृपा से ही सभी देवताओं को शक्ति और मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
इस जगती के नर और नारी
ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी
संतोषी माता का ध्यान संसार के सभी नर और नारी करते हैं। जो भी भक्त सच्चे मन से उनका ध्यान करता है, उसे उनके आशीर्वाद से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
जापर कृपा तुम्हारी होती
वह पाता भक्ति का मोती
जिस व्यक्ति पर संतोषी माता की कृपा होती है, वह भक्ति का अनमोल मोती प्राप्त करता है। उसकी भक्ति का स्तर ऊँचा हो जाता है और वह जीवन में संतोष और सुख का अनुभव करता है।
दुःख दारिद्र संकट मिट जाता
ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता
जो भक्त माता संतोषी का ध्यान करता है, उसके जीवन से सभी दुख, दारिद्र्य और संकट मिट जाते हैं। माता की कृपा से उसके जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।
जो जन तुम्हरी महिमा गावै
ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै
जो भक्त संतोषी माता की महिमा गाता है और उनका ध्यान करता है, उसे जीवन में असीम सुख और संतोष प्राप्त होता है। माता उसकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं और उसे संकटों से मुक्त करती हैं।
जो मन राखे शुद्ध भावना
ताकी पूरण करो कामना
जो भक्त सच्चे और शुद्ध मन से संतोषी माता की आराधना करता है, उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। माता उसकी कामनाओं को पूरा करती हैं और उसे जीवन में संतोष प्रदान करती हैं।
कुमति निवारि सुमति की दात्री
जयति जयति माता जगधात्री
माता संतोषी कुमति (बुरी सोच) को दूर करती हैं और सुमति (अच्छी सोच) का आशीर्वाद देती हैं। वे सम्पूर्ण सृष्टि की पालनहार हैं और सभी की रक्षा करती हैं। उनकी जय-जयकार की जाती है क्योंकि वे जगधात्री (सृष्टि की माता) हैं।
शुक्रवार का दिवस सुहावन
जो व्रत करे तुम्हारा पावन
संतोषी माता की पूजा में शुक्रवार का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। जो भक्त शुक्रवार के दिन माता संतोषी का व्रत करते हैं, उन्हें पवित्रता और शांति की प्राप्ति होती है। यह व्रत अत्यंत फलदायी होता है और सभी प्रकार के दुखों को हरने वाला माना जाता है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से जीवन में संतोष आता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
गुड़ छोले का भोग लगावै
कथा तुम्हारी सुने सुनावै
माता संतोषी को प्रसन्न करने के लिए गुड़ और छोले का भोग अर्पित किया जाता है। यह उनका प्रिय भोग माना जाता है। जो भक्त इस भोग को चढ़ाते हैं और साथ ही संतोषी माता की कथा का श्रवण करते हैं या दूसरों को सुनाते हैं, उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और उन्हें माता की कृपा प्राप्त होती है।
विधिवत पूजा करे तुम्हारी
फिर प्रसाद पावे शुभकारी
जो भक्त विधिपूर्वक (पूरे नियम और विधि के साथ) संतोषी माता की पूजा करता है, वह शुभ प्रसाद प्राप्त करता है। माता का प्रसाद अत्यंत शुभकारी होता है, जो भक्तों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाता है। प्रसाद का सेवन जीवन की सभी कठिनाइयों को दूर करता है।
शक्ति-सामरथ हो जो धनको
दान-दक्षिणा दे विप्रन को
धन-संपन्न व्यक्ति जो माता संतोषी की पूजा करते हैं, उन्हें दान-दक्षिणा देने का भी विधान बताया गया है। इस दान से न केवल उनका धन-वैभव बढ़ता है, बल्कि उन्हें माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। विप्र (ब्राह्मणों) को दान देने से धर्म और पुण्य की प्राप्ति होती है, जो जीवन को संतोषमय बनाता है।
वे जगती के नर औ नारी
मनवांछित फल पावें भारी
जो भी भक्त, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, संतोषी माता का व्रत करते हैं और सच्चे मन से उनकी आराधना करते हैं, वे मनवांछित फल प्राप्त करते हैं। माता संतोषी उनकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं और उनके जीवन को खुशियों से भर देती हैं।
जो जन शरण तुम्हारी जावे
सो निश्चय भव से तर जावे
जो भी भक्त संतोषी माता की शरण में आता है, वह निश्चित रूप से भवसागर (जीवन के कष्टों का सागर) से पार हो जाता है। माता उसकी सभी कठिनाइयों को दूर करती हैं और उसे जीवन में शांति और मुक्ति प्रदान करती हैं। उनकी शरण में आने वाले भक्तों को कभी भी किसी संकट का सामना नहीं करना पड़ता।
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे
निश्चय मनवांछित वर पावै
जो कुमारी कन्याएँ संतोषी माता का ध्यान करती हैं, उन्हें निश्चित रूप से मनवांछित वर की प्राप्ति होती है। माता उनकी पूजा से प्रसन्न होती हैं और उनके जीवन में खुशियों का संचार करती हैं। उनका ध्यान करने से कन्याओं की सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
सधवा पूजा करे तुम्हारी
अमर सुहागिन हो वह नारी
जो विवाहित स्त्रियाँ (सधवा) संतोषी माता की पूजा करती हैं, वे अमर सुहाग का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इसका अर्थ है कि उनके पति का जीवन लंबा और सुखमय होगा। माता की कृपा से उनका दांपत्य जीवन सुखी और समृद्ध रहता है।
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा
भवसागर से उतरे पारा
यहाँ विधवा स्त्रियों के लिए यह कहा गया है कि जो विधवा स्त्रियाँ संतोषी माता का ध्यान करती हैं, वे भवसागर (जीवन के दुखों और कठिनाइयों) से पार हो जाती हैं। माता की कृपा से उनके जीवन में संतोष और शांति का आगमन होता है और वे सुखमय जीवन बिताती हैं।
जयति जयति जय संकट हरणी
विघ्न विनाशन मंगल करनी
संतोषी माता को संकट हरणी (संकटों को हरने वाली) कहा गया है। वे सभी प्रकार के विघ्नों और बाधाओं को दूर करती हैं और अपने भक्तों के जीवन में मंगल (शुभ) कार्य करती हैं। उनकी जय-जयकार की जाती है क्योंकि वे अपने भक्तों के सभी दुखों को समाप्त करती हैं और उन्हें सुखी जीवन का वरदान देती हैं।
हम पर संकट है अति भारी
वेगि खबर लो मात हमारी
यहाँ भक्त माता से यह प्रार्थना करता है कि उसके जीवन में अत्यधिक संकट हैं, और वह माता से निवेदन करता है कि वे तुरंत उसकी सहायता करें। भक्त की यह पुकार उसकी गहन भक्ति और श्रद्धा को दर्शाती है, जिसमें वह माँ से सहायता की आशा करता है।
निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता
देह भक्ति वर हम को माता
भक्त दिन-रात संतोषी माता का ध्यान करता है और उनसे प्रार्थना करता है कि वे उसे भक्ति का वरदान दें। माता की भक्ति से जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और भक्तों के जीवन में सुख और संतोष का अनुभव होता है।
यह चालीसा जो नित गावे
सो भवसागर से तर जावे
जो भक्त प्रतिदिन इस चालीसा का पाठ करता है, वह भवसागर से पार हो जाता है। संतोषी माता की कृपा से उसके जीवन के सभी संकट समाप्त हो जाते हैं और वह जीवन में शांति और संतोष प्राप्त करता है।
दोहा
संतोषी माँ के सदा बंदहूँ पग निश वास।
पूर्ण मनोरथ हो सकल मात हरौ भव त्रास॥
इस अंतिम दोहे में भक्त संतोषी माता के चरणों में सदा के लिए अपना सिर झुकाता है। वह माता से प्रार्थना करता है कि उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हों और माता भवसागर के कष्टों को समाप्त कर दें। भक्त की यह प्रार्थना उसकी पूर्ण भक्ति और माता के प्रति उसकी श्रद्धा को दर्शाती है।
इति श्री संतोषी माता चालीसा
यह चालीसा माता संतोषी की महिमा का गुणगान करती है और उनके विभिन्न रूपों, शक्तियों और कृपा का विस्तृत वर्णन करती है। इसे पढ़ने से जीवन में शांति, संतोष और सुख की प्राप्ति होती है। माता संतोषी की पूजा और ध्यान से जीवन के सभी संकट और बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं, और भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।