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सेठ रे सांवरिया की लीला निराली भजन – Seth Re Sanwariya Ki Leela Nirali Bhajan – Hinduism FAQ

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  • – यह कविता भगवान कृष्ण (सांवरा) की अद्भुत और अनोखी लीला का वर्णन करती है, जो भक्तों के घर जाती है।
  • – यशोदा माता और कान्हा (कृष्ण) के बीच की ममता और खेल-तमाशे को दर्शाया गया है, जिसमें कान्हा की शरारतें और लीला का उल्लेख है।
  • – गोकुल की गलियों में कान्हा की मस्ती और कुम्भ के घड़े में छुपने की घटना को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  • – कविता में भक्तिपूर्ण भावनाओं के साथ कान्हा की लीला को निराली और अद्भुत बताया गया है, जो भक्तों के हृदय में गहराई से बसती है।
  • – सुरदास की वाणी और पंडित रतनलाल प्रजापति की रचना के माध्यम से कृष्ण की लीला का भव्य चित्रण किया गया है।
  • – यह रचना भक्तों को कृष्ण की दिव्य लीला के प्रति प्रेम और श्रद्धा बढ़ाने का माध्यम है।

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सेठ रे सांवरिया की,
लीला निराली,

भक्तां के घर चल जाई,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।



मात यशोदा लेकर लकड़ी,

काना ने पिटण आई,
नतका ओलबा थुं गणा लावे,
आज छोड़ुलां थने नाही,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।



गोकुल गलियां-गलियां माहीं,

काना ने धुम में मचाई,
खुली रे पोल में जाकर घुसग्यो,
जहां कुम्भ घड़े घड़तारी,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।



केवे रे सांवरों सुण रे प्रजापत,

मारण मैया मने आरी,
मने रे छुपादे थारा रे घड़ा में,
भुंलु नहीं गुण जस थारी,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।



पीछा करती आई यशोदा,

सांवरा ने देखियो कई भाई,
केवे प्रजापत नहीं वो माता,
प्रेमा भगती छाई,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।

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केवे रे सांवरों सुण रे प्रजापत,

माता गई के नाही,
चली गई मां तो निकाल मने थुं,
इतनी देर कां लगाई,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।



ऐसे रे कैसे कैया निकालु,

थारी वो मार बचाई,
मै जो मांगु थुं मने देदे,
देदे वचन थुं साईं,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।



लख रे चौरासी सुं मने ऊबारो,

औरी वंश हमारी,
गार उठाते बैलियां ने तारो,
कथा सुणे जो हमारी,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।



बोल दियो है सेठ सांवरो,

मटकी सुं बाहर कराई,
सुरदास की श्रीमुख वाणी,
‘रतन’ भजन में गाई,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।



सेठ रे सांवरिया की,

लीला निराली,
भक्तां के घर चल जाई,
कानुडा थारी,
अजब लीला है न्यारी।।

गायक व रचना – पंडित रतनलाल प्रजापति।
सहयोगी – श्री प्रजापति मण्डल चौगांवडी़।


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