शनि चालीसा in Hindi/Sanskrit
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥
॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥ ४॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
पिंगल, कृष्णों, छाया नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥ ८॥
पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥ १२॥
रावण की गतिमति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवाय तोरी ॥ १६॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजीमीन कूद गई पानी ॥ २०॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥ २४॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देवलखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
वाहन प्रभु के सात सजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥ २८॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥ ३२॥
तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥ ३६॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥ ४०॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥
Shani Chalisa in English
॥ Doha ॥
Jai Ganesh Girija Suvan, Mangal Karan Kripal.
Deenan Ke Dukh Door Kari, Keejai Nath Nihaal.
Jai Jai Shri Shanidev Prabhu, Sunahu Vinay Maharaj.
Karahu Kripa Hey Ravi Tanay, Rakhahu Jan Ki Laaj.
॥ Chaupai ॥
Jayati Jayati Shanidev Dayala.
Karat Sada Bhaktan Pratipala.
Chari Bhuja, Tanu Shyam Virajai.
Mathe Ratan Mukut Chhabi Chhajai.
Param Vishal Manohar Bhala.
Tedhi Drishti Bhrikuti Vikrala.
Kundal Shravan Chamacham Chamke.
Hiy Mal Muktan Mani Damke.
Kar Mein Gada Trishul Kuthara.
Pal Bich Karain Arihin Sanhara.
Pingal, Krishno, Chhaya Nandan.
Yam, Konastha, Raudra, Dukhbhanjan.
Sauri, Mand, Shani, Dash Nama.
Bhanu Putra Pujahin Sab Kama.
Jaa Par Prabhu Prasann Hwain Jaahi.
Rankahun Raav Karain Kshan Maahin.
Parvatahu Trin Hoi Niharat.
Trinahu Ko Parvat Kari Daarat.
Raaj Milat Ban Ramahin Deenhay.
Kaikeyi Hun Ki Mati Hari Leenhay.
Banahu Mein Mrig Kapata Dikhai.
Matu Janaki Gayi Churai.
Lakhanhin Shakti Vikal Karidara.
Machiga Dal Mein Haahakara.
Ravan Ki Gati Mati Baurai.
Ramchandra Son Bair Badhai.
Diyo Keet Kari Kanchan Lanka.
Baji Bajrang Bir Ki Danka.
Nrip Vikram Par Tuhi Pagu Dhara.
Chitra Mayur Nigli Gai Haara.
Haar Naulakha Lagyo Chori.
Haath Pair Darvay Tori.
Bhari Dasha Nikrisht Dikhayo.
Telihin Ghar Kolhu Chalvayo.
Vinay Raag Deepak Mahan Keenhay.
Tab Prasann Prabhu Hwai Sukh Deenhay.
Harishchandra Nrip Naari Bikani.
Aaphun Bhare Dom Ghar Pani.
Taise Nal Par Dasha Sirani.
Bhoonji Meen Kood Gayi Pani.
Shri Shankarhin Gahyo Jab Jayi.
Parvati Ko Sati Karai.
Tanik Vilokat Hi Kari Risa.
Nabh Udi Gayo Gaurisut Seesa.
Pandav Par Bhai Dasha Tumhari.
Bachi Draupadi Hoti Ughari.
Kaurav Ke Bhi Gati Mati Marayo.
Yudh Mahabharat Kari Darayo.
Ravi Kahan Mukh Mahan Dhari Tatkala.
Lekar Koodi Parayo Patala.
Shesh Devalakhi Vinati Layi.
Ravi Ko Mukh Te Diyo Chhudai.
Vahan Prabhu Ke Saat Sajana.
Jag Diggaj Gardabh Mrig Swana.
Jambuk Singh Aadi Nakh Dhari.
So Phal Jyotish Kahat Pukari.
Gaj Vahan Lakshmi Grih Aavai.
Hay Te Sukh Sampatti Upjaavai.
Gardabh Haani Karai Bahu Kaja.
Singh Siddhakar Raj Samaja.
Jambuk Buddhi Nasht Kar Darai.
Mrig De Kasht Pran Sanharai.
Jab Aavahin Prabhu Swaan Sawari.
Chori Aadi Hoy Dar Bhaari.
Taisahi Chari Charan Yeh Nama.
Swarn Lauh Chandi Aru Tama.
Lauh Charan Par Jab Prabhu Aavai.
Dhan Jan Sampatti Nasht Karavai.
Samta Tamra Rajat Shubhkaari.
Swarn Sarva Sarva Sukh Mangal Bhaari.
Jo Yeh Shani Charitra Nit Gaavai.
Kabahun Na Dasha Nikrisht Satavai.
Adbhut Nath Dikhavai Leela.
Karan Shatru Ke Nashi Bali Dheela.
Jo Pandit Suyogya Bulvaai.
Vidhivat Shani Grah Shanti Karai.
Peepal Jal Shani Divas Chadavat.
Deep Daan Dai Bahu Sukh Pavat.
Kahat Ram Sundar Prabhu Dasa.
Shani Sumirat Sukh Hot Prakasha.
॥ Doha ॥
Paath Shanishchar Dev Ko, Ki Hon Bhakt Taiyaar.
Karat Paath Chalis Din, Ho Bhavsagar Paar.
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शनि चालीसा का अर्थ
॥ दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥
व्याख्या:
इस दोहे में श्री गणेश और पार्वती के पुत्र गणेशजी का आह्वान किया जा रहा है। साथ ही शनिदेव की वंदना करते हुए उनसे दीन-दुखियों के कष्ट दूर करने की प्रार्थना की जा रही है। भक्तों का यह निवेदन है कि शनिदेव कृपा करें और उनकी लाज रख लें।
1. जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
व्याख्या:
यहाँ शनिदेव की महिमा का गुणगान किया जा रहा है। उन्हें हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करने वाला और दयालु बताया गया है। शनिदेव की कृपा से भक्तों का उद्धार होता है और उनका जीवन सुखी बनता है।
2. चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥
व्याख्या:
इस चौपाई में शनिदेव का दिव्य स्वरूप वर्णित है। उनका शरीर श्याम (काला) रंग का है और उनके चार हाथ हैं। उनके सिर पर रत्नों से सजा हुआ मुकुट विराजमान है, जो उनकी तेजस्विता और शक्ति को प्रदर्शित करता है।
3. परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
व्याख्या:
शनिदेव का मुखमंडल अत्यंत विशाल और मनोहर है। लेकिन जब उनकी दृष्टि टेढ़ी होती है, तब वह विकराल रूप धारण कर लेती है, जो उनके प्रकोप को दर्शाता है। यह टेढ़ी दृष्टि किसी के लिए अशुभ हो सकती है।
4. कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥
व्याख्या:
शनिदेव के कानों में चमचमाते हुए कुण्डल (बाली) हैं, और उनके हृदय पर मोतियों की माला सुशोभित हो रही है। यह उनके रूप और वैभव को और अधिक अद्वितीय बनाता है।
5. कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
व्याख्या:
शनिदेव के हाथों में गदा, त्रिशूल और कुठार (कुल्हाड़ी) हैं। वह पल भर में अपने शत्रुओं का संहार करने की क्षमता रखते हैं। उनका यह रूप न्याय और दंड का प्रतीक है।
6. पिंगल, कृष्णों, छाया नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥
व्याख्या:
इस चौपाई में शनिदेव के विभिन्न नामों का वर्णन किया गया है। उन्हें पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन (छाया के पुत्र), यम, कोणस्थ, रौद्र, और दुखभंजन के नाम से जाना जाता है। हर नाम उनके अलग-अलग गुणों और शक्तियों को प्रकट करता है।
7. सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
व्याख्या:
शनिदेव को सौरी, मन्द और शनि के नाम से भी पुकारा जाता है। वह सूर्य के पुत्र हैं और उनकी पूजा से हर प्रकार के कार्य सफल होते हैं। शनिदेव का आशीर्वाद मिलते ही सभी प्रकार की बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।
8. जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥
व्याख्या:
यहाँ कहा गया है कि शनिदेव जिस पर प्रसन्न होते हैं, उसे क्षण भर में राजा बना सकते हैं, चाहे वह कितना भी गरीब क्यों न हो। शनिदेव की कृपा से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
9. पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
व्याख्या:
शनिदेव की दृष्टि इतनी शक्तिशाली है कि वह बड़े से बड़े पर्वत को तृण (घास) बना देते हैं, और तृण (घास) को पर्वत के समान भारी बना देते हैं। यह उनकी अद्भुत शक्ति को दर्शाता है।
10. राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
व्याख्या:
यहाँ रामायण का संदर्भ दिया गया है कि जब भगवान राम को राज्य मिल रहा था, तब शनिदेव ने कैकेई की बुद्धि को भ्रमित कर दिया, जिससे राम को वनवास जाना पड़ा।
11. बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥
व्याख्या:
वन में मारीच के मृग रूपी कपट के कारण माता सीता का हरण हुआ। यह घटना भी शनिदेव के प्रभाव के रूप में देखी जा सकती है।
12. लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥
व्याख्या:
लंका युद्ध के दौरान लक्ष्मण पर शक्ति अस्त्र का प्रहार हुआ जिससे वह विकल हो गए। इससे राम के दल में हाहाकार मच गया था।
13. रावण की गतिमति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
व्याख्या:
रावण की बुद्धि शनिदेव के कारण भ्रमित हो गई थी और उसने भगवान राम से शत्रुता मोल ली। यह शनिदेव का प्रभाव था जिसने रावण को गलत दिशा में धकेल दिया।
14. दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥
व्याख्या:
शनिदेव ने रावण की स्वर्ण लंका को कीट (तिनका) के समान बना दिया और हनुमान जी के पराक्रम से लंका का विनाश हुआ। शनिदेव के प्रभाव से रावण की ताकत क्षीण हो गई।
15. नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
व्याख्या:
राजा विक्रमादित्य के समय शनिदेव ने अपना प्रभाव डाला। विक्रमादित्य का नौलखा हार चित्र मयूर ने निगल लिया। यह शनिदेव के दंड का परिणाम था।
16. हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवाय तोरी ॥
व्याख्या:
यहाँ बताया जा रहा है कि राजा विक्रमादित्य के नौलखा हार की चोरी हो गई थी और उन पर शनिदेव की कठोर दशा का प्रभाव पड़ा। उनके हाथ-पैर तक टूट गए थे, जो यह दर्शाता है कि शनिदेव के क्रोध से कोई भी बच नहीं सकता।
17. भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
व्याख्या:
शनिदेव की बुरी दशा के कारण राजा विक्रमादित्य को बहुत कष्ट सहना पड़ा। उन्हें तेली के घर कोल्हू चलाने का काम करना पड़ा, जो कि उनकी स्थिति की निकृष्टता को दर्शाता है।
18. विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
व्याख्या:
जब राजा विक्रमादित्य ने शनिदेव से प्रार्थना की और विनय के साथ दीपक राग गाया, तब शनिदेव उन पर प्रसन्न हो गए और उन्हें सुख-शांति प्रदान की। यह दर्शाता है कि शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए विनम्रता और श्रद्धा महत्वपूर्ण हैं।
19. हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
व्याख्या:
राजा हरिश्चंद्र पर भी शनिदेव की दशा आई थी, जिसके कारण उन्हें अपनी पत्नी तक को बेचना पड़ा और स्वयं डोम के घर में पानी भरने का काम करना पड़ा। यह दर्शाता है कि शनिदेव की दशा किसी को भी कितना बड़ा कष्ट दे सकती है।
20. तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजीमीन कूद गई पानी ॥
व्याख्या:
राजा नल पर भी शनिदेव की दशा आई, जिससे उनका जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। उनके कष्ट का वर्णन इस प्रकार है कि जैसे मछली पानी से बाहर कूद गई हो और फिर से पानी में लौट गई हो। यह दशा के खत्म होने का संकेत है।
21. श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥
व्याख्या:
एक समय शनिदेव भगवान शिव के पास गए, और उनके प्रभाव से माता पार्वती को सती होना पड़ा। यह शनिदेव की शक्ति का एक और उदाहरण है, जिससे महान देवता भी प्रभावित होते हैं।
22. तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥
व्याख्या:
जब शनिदेव ने भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को देखा, तो उनके क्रोध से कार्तिकेय का सिर आकाश में उड़ गया। यह शनिदेव की दृष्टि की तीव्रता को दर्शाता है, जिससे किसी को भी क्षति हो सकती है।
23. पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥
व्याख्या:
महाभारत काल में पाण्डवों पर भी शनिदेव की दशा आई थी, जिसके कारण उन्हें कष्ट सहना पड़ा। लेकिन द्रौपदी का चीरहरण होने से बच गया, यह शनिदेव की कृपा से ही संभव हो पाया।
24. कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥
व्याख्या:
कौरवों की गति और बुद्धि को भी शनिदेव ने भ्रमित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप महाभारत का युद्ध हुआ। यह युद्ध विनाशकारी था, और शनिदेव का प्रभाव इसमें महत्वपूर्ण था।
25. रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥
व्याख्या:
यहाँ सूर्यदेव (रवि) और शनिदेव के बीच की घटना का उल्लेख किया गया है, जब शनिदेव ने सूर्यदेव को अपने मुख में रख लिया और फिर पाताल लोक में कूद गए। यह उनकी शक्ति और सूर्य से भी श्रेष्ठ होने का संकेत है।
26. शेष देवलक्खि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
व्याख्या:
शेषनाग (शेष देव) ने शनिदेव से विनती की, जिसके बाद शनिदेव ने सूर्यदेव को अपने मुख से मुक्त किया। यह घटना शनिदेव की दयालुता और न्यायप्रियता को दर्शाती है, जब वे विनती सुनकर प्रसन्न हो जाते हैं।
27. वाहन प्रभु के सात सजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
व्याख्या:
शनिदेव के पास सात प्रकार के वाहन हैं—हाथी (दिग्गज), गर्दभ (गधा), मृग (हरिण), और स्वान (कुत्ता)। हर वाहन शनिदेव के अलग-अलग गुणों और उनके अलग-अलग प्रभावों का प्रतीक है।
28. जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
व्याख्या:
शनिदेव के वाहन जैसे जम्बुक (लोमड़ी) और सिंह (शेर) नखधारी प्राणी हैं। ज्योतिष शास्त्र में इन वाहनों के प्रभाव के अनुसार व्यक्ति को उसके कर्मों का फल मिलता है।
29. गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥
व्याख्या:
अगर शनिदेव हाथी (गज) की सवारी पर आते हैं, तो व्यक्ति के घर में लक्ष्मी (धन) का आगमन होता है। अगर वह घोड़े (हय) पर आते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
30. गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
व्याख्या:
अगर शनिदेव गधे (गर्दभ) की सवारी पर आते हैं, तो वह व्यक्ति के जीवन में हानि करते हैं। लेकिन अगर वह सिंह (शेर) की सवारी पर आते हैं, तो व्यक्ति को राजा के समान सम्मान और सफलता प्राप्त होती है।
31. जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
व्याख्या:
अगर शनिदेव लोमड़ी (जम्बुक) की सवारी पर आते हैं, तो व्यक्ति की बुद्धि नष्ट हो जाती है और वह निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता है। अगर वह मृग (हरिण) की सवारी पर आते हैं, तो व्यक्ति को शारीरिक कष्ट और प्राण संकट का सामना करना पड़ता है।
32. जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥
व्याख्या:
अगर शनिदेव कुत्ते (स्वान) की सवारी पर आते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में चोरी और अन्य प्रकार की भयावह घटनाएँ होती हैं। शनिदेव की यह दशा भय और चिंता का कारण बनती है।
33. तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
व्याख्या:
शनिदेव के चरणों के चार नाम होते हैं—स्वर्ण (सोना), लौह (लोहा), चाँदी और तामा (तांबा)। हर चरण का अपना अलग प्रभाव होता है, जो व्यक्ति के जीवन पर अलग-अलग प्रकार के असर डालता है।
34. लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
व्याख्या:
अगर शनिदेव अपने लौह (लोहा) चरण पर आते हैं, तो व्यक्ति के धन, परिवार और संपत्ति का नाश हो जाता है। शनिदेव की इस दशा में व्यक्ति को भारी कष्ट सहना पड़ता है।
35. समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी ॥
व्याख्या:
अगर शनिदेव ताम्र (तांबे) या रजत (चाँदी) के चरण पर आते हैं, तो यह व्यक्ति के लिए शुभ होता है। लेकिन अगर वह स्वर्ण (सोने) के चरण पर आते हैं, तो यह सर्वाधिक मंगलकारी होता है और व्यक्ति को हर प्रकार का सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
36. जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
व्याख्या:
जो व्यक्ति प्रतिदिन शनिदेव के इस चरित्र का पाठ करता है, उस पर शनिदेव की कठोर दशा कभी नहीं आती और उसे कष्टों से मुक्ति मिलती है।
37. अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
व्याख्या:
शनिदेव अद्भुत लीला करने वाले देवता हैं। वह अपने भक्तों के शत्रुओं को कमजोर कर देते हैं और उनके प्रभाव से शत्रु हार मान लेते हैं।
38. जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
व्याख्या:
अगर कोई व्यक्ति योग्य पंडित से शनिदेव की विधिपूर्वक शांति कराता है, तो उसकी दशा शांत हो जाती है और उसे सुख-शांति प्राप्त होती है।
39. पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
व्याख्या:
शनिदेव के दिन (शनिवार) पर पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करने और दीपदान करने से व्यक्ति को अनेक प्रकार के सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
40. कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥
व्याख्या:
रामजी के सुंदर दास यह कह रहे हैं कि जो भी व्यक्ति शनिदेव का स्मरण करता है, उसके जीवन में सुख और प्रकाश फैलता है।
॥ दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥
व्याख्या:
शनिदेव के इस चालीसा का जो भक्त 40 दिनों तक नियमित पाठ करता है, वह सभी दुखों से मुक्त होकर भवसागर को पार कर लेता है।
शनिदेव की दृष्टि का महत्व
शनिदेव की दृष्टि बहुत ही विशेष और प्रभावशाली मानी जाती है। उनकी टेढ़ी दृष्टि किसी भी व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसी कारण कई धार्मिक ग्रंथों में यह वर्णित है कि उनकी सीधी दृष्टि भीषण हो सकती है, इसलिए शनिदेव का सीधा सामना करने से बचना चाहिए। शनिदेव की टेढ़ी दृष्टि का प्रभाव यह होता है कि व्यक्ति को जीवन में कठिनाइयाँ और संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
ग्रह शांति और पीपल पूजा
शनि ग्रह से संबंधित समस्याओं का समाधान करने के लिए पीपल का वृक्ष महत्वपूर्ण होता है। शनिदेव को पीपल से अत्यधिक प्रेम है, और इसीलिए शनिवार को पीपल के पेड़ को जल चढ़ाना शुभ माना जाता है। पीपल के नीचे दीपक जलाना और शनिदेव की स्तुति करना उनकी कृपा पाने का एक उत्तम साधन माना गया है।
सात वाहनों का अर्थ
शनिदेव के सात वाहन होते हैं, जिनके आधार पर उनके प्रभाव की अलग-अलग व्याख्या की जाती है। प्रत्येक वाहन का व्यक्ति के जीवन पर अलग-अलग प्रभाव होता है:
- गज (हाथी): लक्ष्मी और धन की प्राप्ति।
- हय (घोड़ा): सुख और संपत्ति की वृद्धि।
- गर्दभ (गधा): कार्यों में हानि और कष्ट।
- सिंह (शेर): राजा के समान सम्मान और शक्ति।
- जम्बुक (लोमड़ी): बुद्धि का नाश।
- मृग (हरिण): प्राण संकट और शारीरिक कष्ट।
- स्वान (कुत्ता): चोरी और अन्य विपत्तियों का भय।
शनि की दशा का प्रभाव
शनिदेव की दशा यदि व्यक्ति के जीवन में आती है तो वह भयंकर कष्ट लेकर आती है। चाहे वह राजा हो या कोई सामान्य व्यक्ति, शनिदेव की दशा सभी पर समान रूप से प्रभाव डालती है। राजा हरिश्चंद्र, राजा नल और राजा विक्रमादित्य जैसे महान व्यक्तियों पर भी शनिदेव की दशा का प्रभाव पड़ा, जिससे उन्हें अत्यधिक कष्ट उठाने पड़े।
शनि ग्रह शांति उपाय
यदि किसी पर शनिदेव की दशा है, तो उसे शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए। जैसे:
- शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करें और जल चढ़ाएं।
- शनि चालीसा का नियमित पाठ करें।
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन तेल का दान और दीपक जलाना लाभकारी माना जाता है।
- अन्न, वस्त्र और अन्य जरूरतमंद वस्तुओं का दान शनिदेव की कृपा पाने का महत्वपूर्ण उपाय है।
शनि की कृपा और प्रसन्नता के संकेत
यदि शनिदेव प्रसन्न होते हैं, तो व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसका जीवन सुखद और संपन्न हो जाता है। वह गरीब से अमीर बन सकता है, और उसकी सभी बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं। शनिदेव का आशीर्वाद व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से बचाता है और उसकी रक्षा करता है।
शनि चालीसा के नियमित पाठ के लाभ
- धन और संपत्ति में वृद्धि: जो व्यक्ति शनि चालीसा का नियमित पाठ करता है, उसके जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती।
- संकटों से मुक्ति: शनिदेव के कृपापात्र व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के संकट और कष्ट दूर हो जाते हैं।
- शत्रुओं पर विजय: शनिदेव की कृपा से व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।
- सुख और शांति: शनि चालीसा का पाठ व्यक्ति के जीवन में सुख और शांति लाता है, और उसके जीवन में हर प्रकार की बाधा समाप्त हो जाती है।