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षटतिला एकादशी कथा in Hindi

नारद मुनि एक बार भगवान विष्णु के पास गए और उनसे षटतिला एकादशी व्रत के महत्व और उसकी कथा के बारे में पूछा। भगवान विष्णु ने नारद मुनि को बताया कि प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी, जो भगवान विष्णु की भक्त थी और सभी व्रत-पूजन करती थी, लेकिन वह कभी किसी को दान नहीं देती थी।

एक दिन भगवान विष्णु भिक्षा मांगने उसके घर गए। ब्राह्मणी ने उन्हें मिट्टी का एक पिंड दे दिया। भगवान विष्णु उसे अपने साथ बैकुंठ ले गए।

कुछ समय बाद ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और वह बैकुंठ पहुंची। वहां उसे एक खाली कुटिया और एक आम का पेड़ मिला। निराश होकर उसने भगवान विष्णु से पूछा कि उसने जीवनभर पूजा की, फिर भी उसे खाली कुटिया क्यों मिली?

भगवान विष्णु ने कहा कि उसने कभी दान नहीं दिया, इसलिए उसे खाली कुटिया मिली। उन्होंने ब्राह्मणी को उपाय बताया कि जब देव कन्याएं उससे मिलने आएं तो वह षटतिला एकादशी व्रत विधान पूछकर ही द्वार खोले।

ब्राह्मणी ने वैसा ही किया और षटतिला एकादशी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न और धन से भर गई।

सीख

इस कथा से हमें दान का महत्व समझना चाहिए। षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

षटतिला एकादशी कथा Video

Shattila Ekadashi Vrat Katha in English

Once, Narad Muni visited Lord Vishnu and asked him about the significance and story of the Shattila Ekadashi fast. Lord Vishnu narrated to Narad Muni that in ancient times, there lived a widow who was a devout worshiper of Lord Vishnu. She observed various fasts and performed rituals but never gave charity to anyone.

One day, Lord Vishnu himself went to her house in the guise of a beggar. The woman, instead of food, offered him a lump of clay. Lord Vishnu accepted it and returned to his abode in Vaikuntha.

After some time, the widow passed away and reached Vaikuntha, where she found a small, empty cottage and a mango tree. Disappointed, she asked Lord Vishnu why, despite her lifelong devotion, she received only an empty cottage.

Lord Vishnu explained that since she had never practiced charity, she was given an empty abode. He advised her that when the divine maidens came to meet her, she should ask them about the Shattila Ekadashi Vrat before opening the door.

Following his advice, the widow inquired about the Shattila Ekadashi fast and observed it accordingly. The power of the vrat filled her cottage with food and wealth.

Lesson

This story teaches us the importance of charity. It is considered especially auspicious to donate food on the day of Shattila Ekadashi.

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षटतिला एकादशी व्रत कब है

षटतिला एकादशी 2025 में शनिवार, 25 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और तिल का विशेष महत्व होता है। व्रतधारी तिल से स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का भोजन, तिल का दान और तिल मिश्रित जल का सेवन करते हैं। यह व्रत पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

षटतिला एकादशी व्रत का पारण कब है

षटतिला एकादशी व्रत 2025 में 25 जनवरी, शनिवार को मनाया जाएगा। व्रत का पारण (व्रत खोलने का समय) 26 जनवरी 2025, रविवार को प्रातः 7:12 बजे से 9:21 बजे तक है।

द्वादशी तिथि 26 जनवरी को रात्रि 8:54 बजे समाप्त होगी, इसलिए पारण इसी दिन उपरोक्त समय में करना उचित है।

षटतिला एकादशी के फल

पापों का नाश: षटतिला एकादशी को पापहारिणी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत, पूजा और दान करने से समस्त पापों का नाश होता है।

मोक्ष की प्राप्ति: षटतिला एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सुख-समृद्धि: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

ग्रहदोषों का नाश: षटतिला एकादशी का व्रत करने से ग्रहदोषों का नाश होता है।

मनोकामना पूर्ति: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

अन्य फल

  1. आरोग्य लाभ
  2. विद्या प्राप्ति
  3. शत्रुओं पर विजय
  4. भयमुक्ति
  5. संतान प्राप्ति

षटतिला एकादशी व्रत का महत्त्व

धार्मिक महत्व

  • षटतिला एकादशी को पापों का नाश करने वाली एकादशी माना जाता है।
  • इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • मान्यता है कि इस दिन व्रत, पूजा और दान करने से समस्त पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति और वैभव बना रहता है।
  • ग्रहों की अशुभ स्थिति और ग्रहदोषों से मुक्ति मिलती है।
  • भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

आध्यात्मिक महत्व

  • षटतिला एकादशी का व्रत आत्मा को शुद्ध करने और मन को शांत करने का उत्तम अवसर प्रदान करता है।
  • इस दिन व्रत, पूजा और दान करने से इंद्रिय-नियंत्रण और वैराग्य की वृद्धि होती है।
  • मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

सामाजिक महत्व

  • षटतिला एकादशी का व्रत दान-पुण्य करने का अवसर प्रदान करता है।
  • इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने से पुण्य प्राप्त होता है।
  • समाज में भाईचारा और प्रेम बढ़ता है।

वैज्ञानिक महत्व

  • षटतिला एकादशी के दिन व्रत रखने से शरीर और मन स्वस्थ रहते हैं।
  • तिल का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
  • तिल में प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
  • तिल का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और पाचन क्रिया मजबूत होती है।

षटतिला एकादशी पूजाविधि

दशमी तिथि

  • दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त से पहले स्नान कर भोजन ग्रहण करें।
  • घर की साफ-सफाई करें और पूजा स्थान को स्वच्छ रखें।
  • एकादशी के व्रत का संकल्प लें।

एकादशी तिथि

प्रातःकाल

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थान को गंगाजल और स्वच्छ जल से धो लें।
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
  • भगवान विष्णु को आसन, दीप, नैवेद्य, फूल, फल, इत्यादि अर्पित करें।
  • “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करें।
  • भगवान विष्णु की आरती गाएं।
  • तिल से बनी मिठाई, लड्डू आदि का भोग लगाएं।
  • प्रसाद ग्रहण करें।

दोपहर

  • दोपहर में भी भगवान विष्णु की पूजा करें और भोग लगाएं।
  • गाय, दान-पुण्य करें।
  • व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
  • शाम को भगवान विष्णु की आरती गाएं।

रात्रि

  • रात्रि में भोजन ग्रहण न करें।
  • फलाहार या दूध का सेवन कर सकते हैं।
  • भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करें।

द्वादशी तिथि

प्रातःकाल

  • सूर्योदय से पहले स्नान करें।
  • भगवान विष्णु की पूजा करें और भोग लगाएं।
  • व्रत का पारण करें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
  • गाय, दान-पुण्य करें।

कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • षटतिला एकादशी के दिन दान करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
  • तिल का दान, गाय का दान, अन्न का दान, वस्त्र का दान, इत्यादि कर सकते हैं।
  • इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते समय “विष्णु सहस्रनाम” का पाठ भी कर सकते हैं।
  • यदि आप एकादशी का व्रत पूर्ण रूप से नहीं रख सकते हैं तो आप केवल एकादशी तिथि के दिन निर्जला व्रत रख सकते हैं।

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