मुख्य बिंदु
- – यह गीत भगवान भोलेनाथ और उनके भक्तों के बीच के गहरे संबंध को दर्शाता है, जहाँ भोलेनाथ भक्तों की डोर को अपने हाथों में थामे हैं।
- – भोलेनाथ अपनी मर्जी से भक्तों को कभी धीरे तो कभी जोर से अपनी ओर खींचते हैं, जो उनकी इच्छा और भक्त की जरूरत पर निर्भर करता है।
- – भक्त भोलेनाथ की डोरी से बंधकर जीवन की मुश्किलों से उबरते हैं और उनके प्रेम में नृत्य करते हैं।
- – यह डोरी कमजोर नहीं है, बल्कि भगवान और भक्त के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है।
- – गीत में यह संदेश है कि भगवान की मर्जी के बिना कुछ भी संभव नहीं, इसलिए भक्तों को उनके हाथों की डोरी पर भरोसा रखना चाहिए।

भजन के बोल
भोले के हाथों में,
है भक्तो की डोर,
किसी को खींचे धीरे,
और किसी को खींचे जोर,
भोले के हाथो में,
है भक्तो की डोर ॥
मर्जी है इसकी हमको,
जैसे नचाए,
जितनी जरुरत उतना,
जोर लगाए,
ये चाहे जितनी खींचे,
हम काहे मचाए शोर,
किसी को खींचे धीरे,
और किसी को खींचे जोर,
भोले के हाथो में,
है भक्तो की डोर ॥
भोले तुम्हारे जब से,
हम हो गए है,
गम जिंदगानी के,
कम हो गए है,
बंधकर तेरी डोरी से,
हम नाचे जैसे मोर,
किसी को खींचे धीरे,
और किसी को खींचे जोर,
भोले के हाथो में,
है भक्तो की डोर ॥
खिंच खिंच डोरी जो,
संभाला ना होता,
हमको मुसीबत से,
निकाला ना होता,
ये चाहे जितना खींचे,
हम खींचते इसकी ओर,
किसी को खींचे धीरे,
और किसी को खींचे जोर,
भोले के हाथो में,
है भक्तो की डोर ॥
‘बनवारी’ टूटे कैसे,
भक्तो से नाता,
डोर से बंधा है तेरे,
प्रेमी का धागा,
तू रख इसपे भरोसा,
ये डोर नहीं कमजोर,
किसी को खींचे धीरे,
और किसी को खींचे जोर,
भोले के हाथो में,
है भक्तो की डोर ॥
भोले के हाथों में,
है भक्तो की डोर,
किसी को खींचे धीरे,
और किसी को खींचे जोर,
भोले के हाथो में,
है भक्तो की डोर ॥
